सागर: पितृपक्ष में पितरों के तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने का धार्मिक महत्व है. सनातन धर्म में लोग बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ इन कार्यों को करते हैं, ताकि उनके पितरों की आत्मा को शांति मिले. इसके लिए लोग अच्छे-अच्छे विद्वान पंडित, प्रसिद्ध नदी और घाट ढूंढते हैं, और उनसे यह कार्य करवाते हैं. ऐसे में खर्च भी तगड़ा होता है.
लेकिन, बुंदेलखंड के सागर में एक ऐसे पंडित हैं, जिनके परिवार में चार पीढ़ियों से श्राद्ध-पिंडदान कराने की परंपरा चली आ रही है, जो रीति रिवाज के साथ हर साल हजारों लोगों का तर्पण-पिंडदान करवाते हैं. इतना ही नहीं इनके द्वारा उन तमाम नियम-संयम का पालन किया जाता है, जो पुष्पांजलि, गया श्राद्ध विवेचन पद्धति, प्रेत मंजरी, गरुण पुराण में बताए गए हैं.
पूरे पितृपक्ष कठिन नियम
सागर के चकरा घाट पर 29 साल से पंडित यशोवर्धन प्रभाकर नारायण प्रसाद जमना प्रसाद जानकी प्रसाद चौबे द्वारा पितृ पक्ष में श्राद्ध-पिंडदान करवाया जाता है. पंडित यशोवर्धन पितृ पक्ष के 15 दिन में न तो बाहर का कुछ खाते हैं, न ही किसी गमी में श्मशान जाते हैं. बाल, नाखून नहीं कटवाते, कुश की चटाई को जमीन पर बिछाकर सोते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं.
सिर्फ 5 रुपये दक्षिणा
पंडित यशोवर्धन चौबे सुबह 5:00 से लेकर दोपहर के 1:00 बजे तक चकरा घाट के विट्ठल मंदिर के पास लगातार श्राद्ध-तर्पण करने आने वाले लोगों को पद्धति के साथ क्रिया करवाते हैं. रोजाना उनके पास हजारों की संख्या में लोग आते हैं. बड़ी बात ये कि यह पंडित केवल 5 रुपये के हिसाब से ही अपनी दक्षिणा लेते हैं. इसे पहले जब इनके पिता प्रभाकर नारायण प्रसाद करवाते थे, तब 5 पैसे दक्षिणा लेते है. हालांकि, अपनी सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा देते हैं.
सरकारी शिक्षक हैं पंडितजी
यशोवर्धन चौबे पेशे से सरकारी शिक्षक हैं. वह संस्कृत के लेक्चरर हैं. लेकिन, पितृपक्ष के दौरान परंपरागत तरीके से उनके परिवार में चले आ रहे कार्य को आगे बढ़ाने के लिए वह समय निकालते हैं. इनके पिता भी व्याख्याता थे.
FIRST PUBLISHED : September 26, 2024, 19:37 IST