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आज मनाया जा रहा प्रकृति पर्व करमा, टोकरी में जावा भर बहनें भाई की लंबी उम्र की करती हैं कामना, जानें क्या है Jahva, महत्व


हाइलाइट्स

करमा पर्व हर साल भादो माह के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इस एकादशी को जिसे पद्मा एकादशी, भादो एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.

What Is Karma Puja 2024 : झारखंड राज्य का दूसरा सबसे प्रमुख त्योहार करमा पर्व आज बड़े ही श्रद्धा भाव और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इस पर्व पर करमा वृक्ष की पूजा का बड़ा महत्व है. इसके अलावा महिलाएं अपने भाइयों की सुख-समृद्धि और लंबी उम्र के लिए पूरे दिन का उपवास रखती है. पीएम मोदी आज झारखण्ड के रांची पहुंचे, जहां उनका स्वागत एक महिला ने जावा लगाकर किया, जिसके उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि “आज सुबह, जब मैं रांची एयरपोर्ट पहुंचा, तो एक बहन ने करमा त्योहार का प्रतीक ‘जावा’ देकर मेरा स्वागत किया. इस त्योहार में बहनें अपने भाई की कुशलता की प्रार्थना करती हैं.” इस पर्व में हर गांव में पूजा पाठ किया जाता है. जावा की स्थापना की जाती है. नृत्य करके आपस में खुशिया बांटी जाती हैं. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से इस पर्व के बारे में विस्तार से.

कब मनाया जाता है करमा पर्व?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, करमा पर्व हर साल भादो माह के शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इस एकादशी को जिसे पद्मा एकादशी, भादो एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. करमा पर्व के मौके पर आदीवासी पूजा करके अच्छी फसल की कामना करते हैं. इसके अलावा बहनें अपने भाइयों की सलामती और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं.

किस तरह होती है करमा पर्व की पूजा ?
झारखण्ड के प्रमुख त्योहार करमा पर्व का आयोजन पाहन करते हैं. इस की पूजा के लिए आंगन के बीच में करम पेड़ की शाखा लगाते हैं. इसके लिए एक गीत गाया जाता है. अब करमा के वृक्ष से डाल को कुल्हाड़ी से काटा जाता है और ये ध्यान रखा जाता है कि ये डाल जमीन पर नहीं गिरे. करमा पर्व के दिन गांव के सभी लोग अपने-अपने खेत-खलिहान और घर में करमा के छोटे-छोटे डाल लगाते हैं. ये पर्व धान की बुआई के बाद मनाया जाता है.

इन अनाजों का लगाते हैं भोग
करम का पेड़ रोपने के बाद पूजा के दौरान गांव के सभी बड़े-बूढ़े, माता-बहने पूजा देखने और सुनने के लिए एकत्रित होते हैं. इस दौरान करम वृक्ष के चारों तरफ आसन लगाकर बैठ जात हैं. प्रकृति को आराध्य देव मानकर पूजा की जाती है. भोग के रूप में अंकुरित ज्वार, कोदो, चना, गेहूं, उड़द, जौ, मकई, और गुड़ दिया जाता है. जिसे करम देव को अर्पित कर वहां मौजूद लोगों में प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है. इस दौरान करमा और धरमा की कहानी भी सुनी जाती है. इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि जीवन में खुशियां पाने के लिए कर्म और धर्म दोनों की जरूरत होती है. जब तक दोनों नहीं होते, किसी का विकास नहीं हो सकता.

रात भर चलता है नाच गाने का सिलसिला
करम वृक्ष की पूजा के बाद वहां मौजूद लोग एक दूसरे का हाथ पकड़ कर रात भर नाचते गाते हैं. जिसकी गूंज आस-पास के गांव में भी सुनी जा सकती है. करमा पर्व के बासी दिन यानी अगले दिन नवांखानी अर्थात नया अन्न ग्रहण करने की परंपरा है. करमा पर्व तक गोड़ाधान पक जाता है और तब घर में पहला अनाज आता है. उस खुशी में भी करमा पर्व मनाया जाता है.

करमा पर्व का महत्व
बहनें करमा पर्व के दिन भाई की सलामती के लिए उपवास करती हैं. इस दिन नाखून कटवाकर स्नान करती हैं और अपने पैरों में आलता लगाती है. इसके अलावा रंग-बिरंगे नये कपड़े पहने जाते हैं और खूब श्रृंगार किया जाता है.

क्या है जावा?
इस दिन लड़कियां सुबह से प्रसन्न रहती हैं, जावा डाली (ज्वारे) को कच्चे धागे में गूंथे हुए फूलों की माला से सजाती हैं. इसके अलावा वे करम राजा से बिछड़ने का दुःख भी मनाती हैं साथ ही ये लोक गीत भी गाती हैं. करमा पर्व पर पूरे दिन नृत्य का कार्यक्रम चलता है. शाम तक सभी लोग नौ बार नृत्य के लिए निश्चित स्थान पर जावा-डाली लाकर उसके आस-पास नृत्य करती हैं.

लोक गीत
आज रे करम राजा घरे दुआरे ।

काल रे करम राजा कांसाई नदीर धारे ।।

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