करवाचौथ का त्योहार भारतीय संस्कृति में सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास होता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और खुशहाल जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और पूरी विधि-विधान से पूजा करती हैं. सजने-संवरने से लेकर चांद को अर्घ्य देने तक, करवाचौथ की हर रस्म में एक खास तरह की भावनात्मक जुड़ाव होता है. आमतौर पर महिलाएं समूह में एकत्र होकर करवा बदलने की रस्म करती हैं, लेकिन अगर आप किसी कारणवश अकेली हैं, तो आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है. रीवा के पंडित आचार्य कृष्णेंद्र ने इस समस्या का सरल और धार्मिक समाधान बताया है.
अकेले करवाचौथ की पूजा कैसे करें?
कई कामकाजी महिलाएं या वे जो अपने परिवार से दूर रहती हैं, अकेलेपन की वजह से करवाचौथ की पूजा करने में असमंजस में पड़ जाती हैं. अगर आप भी इस बार अकेले पूजा कर रही हैं और करवा बदलने के लिए कोई सखी उपलब्ध नहीं है, तो पंडित जी के अनुसार, आप मां गौरी को अपनी सखी के रूप में स्वीकार कर सकती हैं.
मां गौरी को सखी मानकर करें करवा बदलने की रस्म
रीवा के पंडित आचार्य कृष्णेंद्र के अनुसार, अकेले करवाचौथ की पूजा करने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप पहले मिट्टी से मां गौरी की मूर्ति बना लें. यह मूर्ति आपकी सखी के रूप में होगी, जिसे आप पूरे विधि-विधान से पूजेंगी. पूजा शुरू करने से पहले मां गौरी से प्रार्थना करें और उन्हें अपनी सखी के रूप में स्वीकार करें. यह प्रार्थना करते हुए कहें:
“हे मां गौरी, आज आप ही मेरी सखी हैं और मेरे इस व्रत को सफल बनाने में मेरी सहायता करें. मैं अपने सुहाग की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए आपके श्री चरणों में यह पूजा अर्पित कर रही हूं.”
इस प्रार्थना के बाद, आप अपनी पूजा की सामग्री को मां गौरी की ओर से मां करवा को समर्पित करें. अपने लिए जो पूजा सामग्री चढ़ा रही हैं, वही सामग्री मां गौरी के लिए भी अर्पित करें. इसके बाद, अपने करवा के साथ-साथ मां गौरी का करवा भी बदलें. इस तरह आप अकेले होने के बावजूद करवा बदलने की रस्म पूरी कर सकती हैं.
करवा का विसर्जन और अगले दिन की विधि
पंडित जी के अनुसार, पूजा के अगले दिन आप मां गौरी के करवा को स्नान कराएं और उसकी पूजा करें. इसके बाद, उसे किसी नदी या जलाशय में विसर्जित कर दें. अपना करवा आप अपनी सास को दे सकती हैं या फिर उसे पूजन स्थल पर रख सकती हैं. इस तरह आपकी पूजा विधिपूर्वक पूरी होगी और आपका व्रत सफल माना जाएगा.
करवाचौथ: सुहागिनों के लिए विशेष दिन
करवाचौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं. यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र, स्वस्थ जीवन और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है.
व्रत की तैयारी में महिलाएं सजने-संवरने के साथ-साथ पूजा की पूरी तैयारी करती हैं. इस दिन का महत्व केवल पूजा और व्रत तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह पति-पत्नी के बीच के प्रेम और समर्पण का प्रतीक होता है.
अकेले भी कर सकती हैं विधिपूर्वक पूजा
कई बार स्थिति ऐसी होती है कि महिलाएं अपने परिवार से दूर या किसी अन्य कारण से अकेली होती हैं. ऐसे में रीवा के पंडित आचार्य कृष्णेंद्र द्वारा बताए गए इस समाधान को अपनाकर आप बिना किसी चिंता के अपने करवाचौथ की पूजा विधिपूर्वक कर सकती हैं.
मां गौरी को सखी मानकर करवा बदलने की यह रस्म न केवल धार्मिक दृष्टि से उचित है, बल्कि यह आपको मानसिक संतोष भी प्रदान करती है कि आपने अपनी परंपराओं का पालन करते हुए व्रत पूर्ण किया है.
FIRST PUBLISHED : October 19, 2024, 11:01 IST