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काली मंदिर में जब से हुई पूजा कोसी नदी ने बदल ली अपनी धारा, स्वप्न में मां ने दिए थे दर्शन


अररिया जिले के भरगामा प्रखंड स्थित जयनगर गांव का दक्षिण कालिका मंदिर अपनी गौरवशाली परंपरा और ऐतिहासिकता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है. इस काली मंदिर में पिछले 350-500 वर्षों से निरंतर पूजा-अर्चना हो रही है. पंडित तारानंद झा के अनुसार, इस मंदिर में पूजा की शुरुआत रामकृष्ण परमहंस और महिषी संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं के सानिध्य में गांव के बबुआ झा ने की थी. कहा जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है और श्रद्धालुओं को विशेष सुख और शांति की अनुभूति होती है.

350 वर्षों से पूजा का अनवरत क्रम
जयनगर का यह मंदिर भरगामा प्रखंड मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां सालभर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन खासकर अमावस्या की रात को श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. दीपावली के अवसर पर यहां श्यामा पूजा के बाद हजारों छागरों की बलि दी जाती है. पहले सैकड़ों पाड़े की भी बलि दी जाती थी, लेकिन अब कान काटकर उन्हें छोड़ दिया जाता है. मन्नत पूरी होने पर माता को पाड़े की बलि चढ़ाई जाती है. इस मंदिर का वर्णन ताम्र पत्र में दर्ज है, जो इसकी ऐतिहासिकता को प्रमाणित करता है.

16वीं शताब्दी से चली आ रही परंपरा
मंदिर के पुजारी पंडित ताराकांत झा ने बताया कि वह पिछले 40 वर्षों से इस मंदिर में पूजा करा रहे हैं और उन्हें इस मंदिर के लगभग 350 वर्षों के इतिहास की जानकारी है. उनके पिता स्वर्गीय वैद्यनाथ झा के अनुसार, इस मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई थी. पहले यहां घास-फूस की झोपड़ियों में पूजा होती थी, लेकिन अब पक्के मंदिर में विधिवत पूजा की जाती है. करीब 60 साल पहले यहां टीन की छत के नीचे पूजा होती थी.

1985 में हुआ मंदिर का जीर्णोद्धार
ग्रामीणों के अनुसार, 1985 में इस मंदिर का भव्य जीर्णोद्धार किया गया. इसमें बासा के तत्कालीन अध्यक्ष वजिन्द्र नारायण सिंह की अहम भूमिका रही. इसके अलावा, गांव के अन्य लोगों ने भी इस कार्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

मां काली के स्वप्न से शुरू हुई पूजा
ग्रामीणों के अनुसार, जयनगर गांव के बबुआ झा कोलकाता कोर्ट में जाते थे. उस समय गांव से होकर कोसी नदी बहती थी, जिससे हर साल बाढ़ से गांव तबाह हो जाता था. एक रात बबुआ झा को मां काली ने स्वप्न में दर्शन दिए और गांव में दक्षिण काली की पूजा करने को कहा. इसके बाद कोलकाता के दक्षिणेश्वरी काली मंदिर से मूर्ति लाकर रामकृष्ण परमहंस और संत लक्ष्मीनाथ गोसाई के सानिध्य में पूजा की शुरुआत हुई. तब से कोसी नदी ने अपनी धारा बदल ली और आज तक इस मंदिर में निर्बाध रूप से पूजा होती आ रही है.

काली पूजा से पूर्व इस मंदिर में नौ दिनों तक नवाह संकीर्तन का आयोजन होता है, जिसमें मैथिली भाषा में एक से बढ़कर एक गीतों से वातावरण भक्तिमय हो जाता है.

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