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पूर्णिया के पंडित मनोत्पल झा के अनुसार, बहती नदियों में सिक्का डालने की परंपरा प्राचीन काल से है. तांबे के सिक्के पानी को शुद्ध करते हैं और धार्मिक आस्था के साथ वैज्ञानिक महत्व भी रखते हैं.

बहते नदी के पानी मे सिक्का डालने से मिलता अनेको लाभ
हाइलाइट्स
- बहती नदियों में सिक्का डालने की परंपरा प्राचीन काल से है
- तांबे के सिक्के पानी को शुद्ध करते हैं
- सिक्का डालने से मां लक्ष्मी और सूर्यदेव की कृपा मिलती है
पूर्णिया : धार्मिक मान्यता के अनुसार बहती नदियों में सिक्का फेंकना एक आम प्रथा बन गई है. जो खासकर जब लोग धार्मिक स्थल की तरफ जाते हैं इस दौरान अगर यात्रा के समय कहीं लोगों को कोई बहती नदीं दिख जाय तो लोग इस बहती नदी में सिक्का जरूर डालते हैं. हालांकि अलग-अलग लोगों की अपनी मान्यताएं हैं.
लेकिन सच में क्या आप जानते हैं कि अगर कोई व्यक्ति नदी पार करता है तो बहती नदी में सिक्का क्यों फेंकते हैं. इसका आगे की क्या वजह है. चलिए हम आपको विस्तार से बताते हैं. पूर्णिया के पंडित मनोत्पल झा कहते हैं कि नदी में सिक्का डालने की परंपरा प्राचीन काल से चलती आ रही है. जब पुराने समय में सिक्के तांबे के हुआ करते थे और तांबा पानी को शुद्ध करने के सहायक होता है. इसलिए नदियों में तांबे के सिक्के डालने की परंपरा शुरू हुई. जिससे पानी शुद्ध भी बना रहे.
मां लक्ष्मी की बनी रहती है कृपा
इसके अलावा नदियों को पवित्र मानकर उनकी पूजा की जाती थी क्योंकि अधिकांश नदियां स्वच्छ जल का मुख्य स्रोत थी. इसलिए उनमें तांबे के सिक्के डालना न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ना है इसके अलावा वैज्ञानिक महत्व है. उन्होंने कहा बहते नदी में सिक्का डालने से धन की देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती है. वहीं सूर्यदेव की कृपा बनी रहती है. साथ ही साथ पितरों का भरपूर आशीर्वाद मिलता रहता है.
बहते नदी में सिक्का डालने से मिलता धन लाभ
लोग जब अपनी यात्रा करते हैं तो लोगों को यात्रा के दौरान कई चीजें याद रहती हैं. ऐसे में लोग यात्रा के दौरान जब कहीं बहती नदी देख लें तो वह अपनी पर्स से 1 रुपए का सिक्का निकालकर नदी में डाल देते हैं. सिक्का डालने से मां का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है.
यदि हम इस परंपरा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो पुराने जमाने में तांबे के सिक्के प्रचलन में थे। तांबा एक महत्वपूर्ण धातु है, जो पानी को शुद्ध करने में सहायक होती है। जब लोग बहती नदी में तांबे के सिक्के फेंकते थे, तो वे धीरे-धीरे घुलकर जल में मिल जाते थे, जिससे पानी के स्वास्थ्यवर्धक गुण बने रहते थे। यह एक तरह से प्राकृतिक जल शुद्धिकरण प्रक्रिया थी।