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Aligarh Latest News: इस्लाम में ज़कात और फ़ितरा सिर्फ इबादत नहीं बल्कि इंसानियत की मिसाल हैं. ज़कात साहिबे माल पर साल में एक बार जरूरी है, जबकि फ़ितरा रमज़ान के बाद ईद के मौके पर अदा किया जाता है. इस रिपोर्ट में हम जानेंगे कि ज़कात और फ़ितरा कितनी मिक़दार में और किस तरह अदा किए जाते हैं.
अलीगढ़: इस्लाम धर्म में ज़कात और फ़ितरा दोनों ही बेहद अहम इबादत और इंसानियत की राह के फराइज हैं. ज़कात साहिबे माल यानी जिनके पास संपत्ति है, उनके लिए साल में एक बार अनिवार्य है. वहीं फ़ितरा रमज़ान के बाद ईद के मौके पर दिया जाता है ताकि रोज़े और इबादत में हुई कमी की भरपाई हो सके और गरीबों तक मदद पहुंचाई जा सके.
ज़कात कैसे निकाली जाती है
मौलाना इफराहीम हुसैन बताते हैं कि ज़कात निकालने के लिए यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह सीधे जरूरतमंदों तक पहुंचे. यदि साहिबे माल ज़कात नहीं देता है, तो उसका पूरा माल खराब माना जाता है.
फ़ितरा का महत्व और मात्रा
फ़ितरा रमज़ान के बाद ईद के मौके पर दिया जाता है. इसका मकसद है रोज़े और इबादत में रह गई कोताहियों की भरपाई करना और जरूरतमंदों की मदद करना.
मौलाना इफराहीम हुसैन के अनुसार फ़ितरा की तय मात्रा लगभग 3 किलो गेहूं के बराबर होती है. यह हर उस साहिबे माल पर है जिसके पास अपनी जरूरत और खर्चे पूरे करने के बाद भी कुछ बचत हो. फ़ितरा की इस परंपरा का उद्देश्य समुदाय में भाईचारा बढ़ाना और ज़रूरतमंदों के लिए सहारा बनना है.
सीमा नाथ पांच साल से मीडिया के क्षेत्र में काम कर रही हैं. मैने साह टाइम्स, उत्तरांचल दीप, न्यूज अपडेट भारत के साथ ही Bharat.one ( नेटवर्क 18) में काम किया है. वर्तमान में मैं News 18 (नेटवर्क 18) के साथ जुड़ी हूं… और पढ़ें