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क्या हैं पारसियों की वो 5 परंपराएं, जिससे ताल्लुक रखते थे रतन टाटा, क्यों गिद्धों के सामने रख देते हैं शव


हाइलाइट्स

मृत्यु के बाद शव को गिद्धों के लिए रख दिया जाता है इसे दान मानते हैंतमाम रीतिरिवाजों में प्रकृति का भरपूर ध्यान रखा जाता हैक्या है टॉवर ऑफ साइलेंस, जो मुंबई में 57 एकड़ में बना है

भारत में पारसी धर्म के लोग फारस से भागकर गुजरात पहुंचे थे. तब से वो यहीं के स्थायी वाशिंदे बन गए. भारत में उन्होंने खासकर बिजनेस और इंडस्ट्री सेक्टर बड़ी धाक जमाई. इस धर्म के ज्यादातर लोग हालांकि दुनियाभर में फैले हुए हैं लेकिन भारत में ही बहुतायत में रहते हैं. हालांकि उनकी जनसंख्या लगातार कम होती जा रही है.

पारसियों का रहन-सहन खास होता है. परंपराएं अलग. उनकी कई परंपराएं अनोखी और विचित्र भी हैं. खासकर पारसी निधन के बाद जो अंतिम संस्कार करते हैं, उसको दुनिया में सबसे विचित्र मानते हैं. जानते हैं कि पारसियों की 05 परंपराएं वो कौन सी हैं, जो अलग और खास हैं.

1. टॉवर ऑफ़ साइलेंस
सबसे खास परंपराओं में एक टॉवर ऑफ़ साइलेंस या दखमा है, जहां मृत शरीर को गिद्धों के सामने छोड़ दिया जाता है. यह प्रथा इस विश्वास से उपजी है कि वायु, जल और अग्नि के तत्व पवित्र हैं. उन्हें दफ़नाने या दाह संस्कार से प्रदूषित नहीं किया जाना चाहिए. सड़े हुए पक्षियों के सामने शव का जाना दान का कार्य माना जाता है, क्योंकि यह इन पक्षियों को पोषण प्रदान करता है और शरीर को बिना किसी प्रदूषण के प्रकृति में वापस जाने की अनुमति देता है.

पारसी धर्म के लोगों का मानना ​​है कि जैसे ही सांस शरीर से बाहर निकलती है, शरीर अशुद्ध हो जाता है. शव को दफनाने के बजाय, पारसी लोग पारंपरिक रूप से उसे एक विशेष रूप से निर्मित मीनार ( दोखमा या ‘मौन की मीनार’) पर रख देते थे, ताकि वह सूर्य के प्रकाश में रहे. गिद्ध जैसे शिकारी पक्षी उसे खा सकें. मुंबई में इसके लिए 57 एकड़ में फैली हुए एक क्षेत्र को इसके लिए बनाया गया है. जहां शव को गोलाकार बड़ी सी मीनार में ऊपर रखने का काम किया जाता है.

ये इलाका ऊचे पेड़ों से घिरा है. इसे जंगल की तरह बनाया गया है. इसमें काफी मोर हैं. इस शांत वातावरण में भारत के मुंबई के पारसी ज़ोरोस्ट्रियन अंतिम संस्कार करते हैं. अब गिद्ध कम होते जा रहे हैं जो पारसियों के लिए चिंता का विषय भी है.

अंतिम संस्कार की प्रथा को दोखमेनाशिनी कहते हैं. इसमें मृतकों को एक ऊंची, गोलाकार संरचना में ले जाया जाता है, जिसकी छत पर तीन संकेंद्रित छल्ले होते हैं. बीच में एक केंद्रीय अस्थि-कुंड होता है. इसे दखमा कहा जाता है. और यहां शवों को मौसम और सड़े हुए पक्षियों के माध्यम से सड़ने के लिए खुले में रखा जाता है. गिद्ध मृतकों के मांस को खाते हैं. अधिकांश लोग इसे “आसमान दफन” के रूप में जानते हैं. मुंबई में ” साइलैंस ऑफ टॉवर” 300 साल पुराना गोलाकार टॉवर है, जिसे डूंगरवाड़ी कहा जाता है.

पारसी धर्म की कई परंपराएं विचित्र हैं तो कई एकदम अनोखी. (image generated leonardo ai)

2. नवजोत समारोह
नवजोत समारोह एक बच्चे को पारसी धर्म में दीक्षा देने का प्रतीक है. इस अनुष्ठान के दौरान, बच्चे सुद्रेह नामक एक पवित्र शर्ट और कुस्ती नामक एक डोरी पहनते हैं. इस समारोह में प्रार्थना और आशीर्वाद शामिल हैं, जो समुदाय में उनके प्रवेश और उनके धर्म के प्रति उनकी जिम्मेदारियों का प्रतीक है.

पारसी धर्म में नवजोत समारोह के दौरान बच्चे को दीक्षा देने का कार्यक्रम (Parsi Religion and its culture facebook ac)

3. अनोखी शादी की प्रथाएं
पारसी शादियों में अलग-अलग रस्में शामिल होती हैं, जैसे कि समारोह की शुरुआत में जोड़े को चादर से अलग किया जाता है. वे एक रस्म निभाते हैं जिसमें वे एक-दूसरे पर चावल फेंकते हैं, जो प्रभुत्व का प्रतीक है. समारोह में हिंदू रीति-रिवाजों के समान एक शुद्धिकरण स्नान भी शामिल है, जो उनकी परंपराओं में सांस्कृतिक प्रभावों के मिश्रण को दिखाता है.

4. नवरोज़ मनाना
नवरोज़, या पारसी नव वर्ष, विभिन्न रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है जो बाहरी लोगों को अजीब लग सकते हैं. परिवार एक-दूसरे से मिलते हैं, मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं और पारंपरिक पोशाक पहनते हैं. आने वाले वर्ष के लिए समृद्धि और स्वास्थ्य का संकेत देने के लिए ‘S’ से शुरू होने वाली सात प्रतीकात्मक वस्तुओं वाली “हफ़्त सिन” नामक एक विशेष मेज तैयार की जाती है.

5. चांदी के ‘सेस’ का उपयोग
पारसी महिलाओं के बीच एक अनूठी परंपरा है जिसमें वे परिवार की एकता और ताकत के प्रतीक अनुष्ठान वस्तुओं से भरी एक चांदी की प्लेट ले जाती हैं जिसे ‘सेस’ कहा जाता है. इस प्लेट में आग, पानी, पौधे और जानवरों का प्रतिनिधित्व करने वाली वस्तुएं शामिल होती हैं, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता से उनके संबंध पर जोर देती हैं.

अनुष्ठान वस्तुओं से भरी एक चांदी की प्लेट ले जाती हैं जिसे ‘सेस’ कहा जाता है

पारसी क्यों नदी और झरनों में नहाने से बचते हैं
उनके लिए पानी पूजनीय है. शुद्धिकरण अनुष्ठानों में इसका उपयोग किया जाता है. पारसी प्राकृतिक जल स्रोतों को प्रदूषित करने से बचते हैं. नदियों या झरनों में सीधे स्नान की बजाय अपने अनुष्ठानों के लिए उनसे पानी निकालना पसंद करते हैं.

भारत क्यों आए थे पारसी
पारसी इस्लामी साम्राज्य के उदय के दौरान प्राचीन फ़ारस धार्मिक उत्पीड़न से बचकर भागे थे. उन्होंने भारत में शरण ली. बताया जाता है कि वो 8वीं से 10वीं बड़ी नावों और जहाजों से भारत के गुजरात में समुद्र तट पर पहुंचे.

कितना पुराना है पारसी धर्म
पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में एक है. ये पैगंबर जरथुस्त्र की शिक्षाओं पर आधारित है, जो 3000 से 3500 साल पहले रहते थे. ये कई राजवंशों में फारस में प्रमुख धर्म था.

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