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गुमला के दुर्गाबाड़ी में मां दुर्गा को 108 थाली में चढ़ाया जाता है भोग, यहीं से हुई थी पूजा की शुरुआत


गुमला: नवरात्रि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, और पूरे देशभर में मां दुर्गा की पूजा धूमधाम से की जाती है. झारखंड के गुमला जिले में भी पिछले 100 सालों से दुर्गा पूजा की परंपरा जीवित है. खास बात यह है कि गुमला में दुर्गा पूजा की शुरुआत जिले के मुख्यालय के पास स्थित श्री दुर्गाबाड़ी मंदिर से हुई थी, जहां आज भी बंगाली रीति-रिवाज के अनुसार सादगी से मां की पूजा की जाती है.

गुमला में दुर्गा पूजा की ऐतिहासिक शुरुआत
गुमला जिले में दुर्गा पूजा की शुरुआत 1921 में हुई थी. यह पूजा सबसे पहले जशपुर रोड के डेली मार्केट के समीप स्थित श्री दुर्गाबाड़ी मंदिर में की गई थी. श्री श्री सनातन दुर्गा पूजा कमेटी के बैनर तले छोटे से खपड़ैल मकान में इस पूजा की शुरुआत की गई थी. धीरे-धीरे इस पूजा ने गुमला जिले के अन्य क्षेत्रों में भी अपनी जगह बनाई, लेकिन दुर्गाबाड़ी की पूजा आज भी अपने ऐतिहासिक महत्व और धार्मिक पवित्रता के लिए जानी जाती है.

बंगाली रीति-रिवाज से होती है पूजा
दुर्गाबाड़ी की खासियत यह है कि यहां आज भी पूरी पूजा बंगाली परंपराओं के अनुसार की जाती है. मूर्ति निर्माण से लेकर साज-सज्जा, रंगाई-पुताई और ढाक बजाने तक की सभी प्रक्रियाएं बंगाल से आए कलाकारों द्वारा संपन्न की जाती हैं. यहां की मां दुर्गा की मूर्ति बनाने का काम उन मूर्तिकारों की चौथी पीढ़ी करती है, जिनके पूर्वजों ने यहां पहली बार मूर्ति बनाई थी. इसी तरह, ढाक बजाने वाले भी बंगाल से आते हैं, और उनकी पांचवीं पीढ़ी आज भी इस पवित्र कार्य को निभा रही है.

108 थाली में मां दुर्गा को चढ़ाया जाता है भोग
दुर्गाबाड़ी की एक विशेष परंपरा यह है कि महाअष्टमी के दिन मां दुर्गा को विशेष भोग चढ़ाया जाता है. यह भोग 108 थालियों में चढ़ाया जाता है, जिसे पूरी शुद्धता और परंपरागत तरीके से तैयार किया जाता है. भोग बनाने का काम दीक्षित और उपवासी महिलाएं करती हैं, जो पूरे नवरात्र उपवास करती हैं. लकड़ी के चूल्हे पर पूरी, हलुआ, चावल, दाल, विभिन्न प्रकार की सब्जियां, फल, और मिठाई जैसे व्यंजन बनाकर मां को अर्पित किए जाते हैं. इसके साथ ही, मां दुर्गा की विशेष आरती की जाती है और बली की परंपरा निभाई जाती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते हैं.

सिंदूर खेला की परंपरा
दुर्गाबाड़ी में विजयदशमी के दिन एक और महत्वपूर्ण परंपरा निभाई जाती है जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है. इस दिन महिलाएं मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर और मिठाई खिलाकर सुख, शांति और समृद्धि की कामना करती हैं. साथ ही, एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर इस परंपरा को पूरा करती हैं. यह एक विशेष और भावनात्मक क्षण होता है, जब महिलाएं मां दुर्गा को विदाई देती हैं और अपने जीवन में समृद्धि की कामना करती हैं. इस दिन यहां बड़ी संख्या में महिलाएं एकत्र होती हैं, और यह दृश्य बेहद मनमोहक होता है.

दुर्गाबाड़ी का सांस्कृतिक महत्व
दुर्गाबाड़ी न केवल गुमला जिले में, बल्कि पूरे झारखंड में अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है. यहां की पूजा-आराधना की परंपराएं आज भी जीवित हैं और हर साल सैकड़ों भक्त इस ऐतिहासिक स्थल पर मां दुर्गा के दर्शन करने आते हैं. यह स्थल आज भी बंगाली रीति-रिवाजों और परंपराओं के आधार पर दुर्गा पूजा को जीवित रखे हुए है, और यहां का 108 थालियों वाला विशेष भोग इसे और भी खास बनाता है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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