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How to Light a Lamp for God: घर के मंदिर में दीपक जलाना धार्मिक आस्था और वास्तु दोनों दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है. घी या सरसों के तेल का दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा और शांति आती है.घी का दीपक बाईं ओर, जबकि तेल का दीपक दाईं ओर रखना शुभ माना जाता है. दीपक को उत्तर या ईशान कोण में रखने पर पूजा का प्रभाव बढ़ता है, जबकि दक्षिण और पश्चिम दिशा में दीपक जलाना अशुभ माना जाता है. दीपक की बत्ती पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है.
आमतौर पर देखा जाता है कि हर घर के छोटे मंदिर में पूजा-पाठ के दौरान दीपक जरूर जलाया जाता है. बिना दीपक के पूजा अधूरी रहती है और इससे आराध्य देवी-देवताओं को पूर्ण रूप से प्रसन्नता नहीं मिलती. दीपक न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है बल्कि यह घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को भी बढ़ाता है. वास्तु शास्त्र में दीपक जलाने से जुड़े कई महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करने से पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है. इसी कारण घरों में सुबह-शाम दीपक जलाने की परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है.
भीलवाड़ा नगर व्यास पं. कमलेश व्यास ने कहा कि वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा के दौरान घी या सरसों के तेल का दीपक जलाना आवश्यक माना गया है. रोजाना घर के मंदिर में इन दोनों में से किसी एक का दीपक अवश्य जलाना चाहिए, जिससे परिवार में शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार बढ़ता है. यदि घी का दीपक जलाया जा रहा हो, तो उसे मंदिर के बाईं ओर रखने की सलाह दी जाती है, जबकि तेल का दीपक दाहिनी ओर रखना शुभ फलदायक माना गया है. घी के दीपक में सफेद रुई की बत्ती का उपयोग करना चाहिए, जबकि तेल के दीपक में लाल धागे की बत्ती शुभता प्रदान करती है.
पूजा के समय दीपक को उत्तर दिशा या ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा में रखना सबसे श्रेष्ठ माना गया है. ऐसा करने से घर के सदस्यों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आने की मान्यता है. दीपक की बत्ती का मुख भी सही दिशा में होना चाहिए, जो कि पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखने पर शुभ परिणाम देता है. माना जाता है कि इन दिशाओं में बत्ती रखने से पूजा का प्रभाव बढ़ता है और नकारात्मक ऊर्जा स्वतः दूर होती है.
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वास्तु में कुछ दिशाओं में दीपक जलाने से विशेष रूप से बचने की सलाह दी गई है. दक्षिण दिशा में दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ सकता है, क्योंकि इसे यमराज की दिशा माना गया है. इसी तरह पश्चिम दिशा में भी दीपक जलाना शुभ नहीं माना जाता, क्योंकि यह दिशा स्थिरता और ठहराव का प्रतीक होती है और इसमें दीपक जलाने से अनचाहे परिणाम देखने पड़ सकते हैं. इसलिए पूजा के समय दीपक रखते हुए दिशाओं का ध्यान रखना बेहद जरूरी है, ताकि पूजा का पूरा फल प्राप्त हो और घर में सकारात्मकता बनी रहे.
पूजा करते समय दीपक को भगवान की मूर्ति या चित्र के ठीक सामने रखना उचित नहीं माना गया है. न ही इसे अत्यधिक दूर रखना चाहिए. दीपक को इस प्रकार रखना चाहिए कि उसका प्रकाश भगवान के चरणों तक पहुंचे और पूजा स्थल में प्रकाशमान वातावरण बनाए. इसके साथ ही यदि मंदिर में धातु का दीपक उपयोग किया जा रहा है, तो उसे रोजाना साफ करना आवश्यक है ताकि उस पर जमी कालिख या तेल की परत पूजा की पवित्रता को प्रभावित न करे. साफ-सुथरा दीपक देवत्व और सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है और इससे घर का वातावरण ऊर्जा से भर जाता है.
इन सभी नियमों का पालन करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है और मानसिक शांति भी मिलती है. वास्तु शास्त्र में वर्णित दीपक संबंधी ये परंपराएं न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जीवन में सकारात्मक सोच, पवित्रता और अनुशासन को भी बढ़ावा देती है. दीपक जलाने की प्रक्रिया आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ घर-परिवार में सौहार्द और समृद्धि लाती है. घर के मंदिर में रोजाना दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और मन में श्रद्धा व विश्वास की भावना मजबूत होती है. इसलिए पूजा-पाठ करते समय दीपक के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक माना गया है.
