Bhairav Jayanti 2025: हिंदू धर्म में भैरव बाबा, जिन्हें काल भैरव भी कहा जाता है, भगवान शिव के सबसे रहस्यमय और शक्तिशाली स्वरूपों में से एक माने जाते हैं. वो न्याय के रक्षक, भय को दूर करने वाले और समय और मृत्यु के स्वामी हैं. पुराने मान्यताओं के अनुसार, भैरव बाबा का जन्म भगवान शिव की प्रचंड तांडव शक्ति से हुआ था, इसी कारण उन्हें अत्यंत उग्र और शक्तिशाली देवता माना जाता है. हर साल पौष मास के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार को भैरव जयंती श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई जाती है. इस साल 2025 में यह पावन पर्व 21 दिसम्बर को मनाई जाएगी. इस दिन देश भर के भैरव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, आरती और अनुष्ठान किए जाते हैं. लेकिन आज हम आपको दिल्ली के एक ऐसे खास और प्राचीन भैरव मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी कहानी इसे और भी अद्भुत बनाती है. दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में स्थित यह भैरवनाथ मंदिर न सिर्फ अपनी धार्मिक मान्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके इतिहास से जुड़ी कथा भी लोगों को हैरान कर देती है. मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं गदाधारी भीम ने की थी.

पुस्तक: श्री भैरव चालीसा
दिल्ली में भैरव मंदिर की स्थापना की कथा
दिल्ली में स्थित भैरव मंदिर से जुड़ी मान्यता बेहद रोचक और पौराणिक है. कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना वाराणसी के प्रसिद्ध बटुक भैरव से जुड़ी हुई है और इसे महाभारत काल में पांच पांडवों में से एक भीमसेन ने स्थापित किया था. स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के समय भीमसेन काशी से भैरव बाबा को अपने साथ हस्तिनापुर ले जा रहे थे. भीम ने भैरव बाबा से यह वचन लिया था कि वो उन्हें पूरे रास्ते अपने कंधे पर उठाए रखेंगे और बीच में कहीं भी नीचे नहीं रखेंगे. बाबा इस शर्त पर भीम के साथ चल पड़े. लेकिन जब भीम दिल्ली क्षेत्र तक पहुंचे, तो उन्हें बहुत तेज प्यास लग गई. प्यास बुझाने के लिए भीम ने कुछ पल के लिए भैरव बाबा को अपने कंधे से उतार दिया. जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, उनका दिया हुआ वचन टूट गया. इसके बाद जब भीम ने दोबारा भैरव बाबा को उठाने की कोशिश की, तो वे उन्हें हिला तक नहीं पाए. तभी भैरव बाबा ने अपनी दिव्य शक्ति का परिचय देते हुए वहां स्थित एक कुएं की मुंडेर पर स्थायी रूप से विराजमान होने का निर्णय लिया. भीमसेन ने बहुत विनती और प्रार्थना की कि बाबा उनके साथ चलें, लेकिन भैरव बाबा अपने निर्णय पर अडिग रहे. मान्यता है कि उसी स्थान पर भैरव बाबा ने स्थायी निवास कर लिया और यहीं से दिल्ली के इस प्राचीन भैरव मंदिर की स्थापना मानी जाती है. तभी से यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बना हुआ है, जहां आज भी भक्त भैरव बाबा की कृपा पाने के लिए दूर-दूर से आते हैं.
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
भैरव बाबा को न्याय के रक्षक, अपार शक्ति के प्रतीक और भय से मुक्ति दिलाने वाले देवता माना जाता है. उनका स्वरूप भक्तों के लिए जितना उग्र माना जाता है, उतना ही करुणामय और रक्षक भी है. मंदिर में विराजमान बाबा भैरवनाथ की मूर्ति विशेष रूप से आकर्षक मानी जाती है, जिसमें उनकी बड़ी और तेजस्वी आंखें भक्तों का ध्यान सहज ही अपनी ओर खींच लेती हैं. भैरव जयंती के अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. ऐसा विश्वास है कि इस पावन दिन बाबा भैरव की पूजा करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और घर में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है. इस दिन बाबा को शराब, रोठ, दूध और इमरती का भोग लगाया जाता है. भक्त पूरी श्रद्धा, आस्था और भक्ति भाव के साथ बाबा का आशीर्वाद पाने के लिए लंबी कतारों में खड़े नजर आते हैं.

बाबा भैरवनाथ की मूर्ति
दिल्ली में कहां स्थित है यह मंदिर और कौन करता है इसकी देखरेख?
दिल्ली का प्राचीन बटुक भैरों मंदिर चाणक्यपुरी इलाके में नेहरू पार्क के पास, विनय मार्ग पर स्थित है. यह मंदिर हजारों साल पुराना है, हालांकि इसका वर्तमान स्वरूप अभी भी नए के तरह दिखाई देता है. इसका कारण यह है कि समय-समय पर मंदिर की मरम्मत और सुधार किया जाता रहा है, जिससे इसकी संरचना सुरक्षित और सुव्यवस्थित बनी रहे. इस पवित्र मंदिर की देखरेख का दायित्व पुरोहित राजेंद्र कुमार शर्मा जी संभालते हैं. भैरव जयंती के अवसर पर भक्तों की सुविधा का यहां विशेष ध्यान रखा जाता है. दर्शन के दौरान किसी तरह की असुविधा न हो, इसके लिए मंदिर परिसर में उचित व्यवस्थाएं की जाती हैं. साथ ही भैरव जयंती के दिन विशाल भंडारे का आयोजन भी होता है, ताकि बाबा का कोई भी भक्त प्रसाद से वंचित न रहे और सभी श्रद्धालु प्रेम और भक्ति के साथ इस पर्व में शामिल हो सकें.








