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मां नैना देवी मंदिर वह स्थान है जहां माता सती के नयन गिरे थे, और यह आस्था का केंद्र है जहां भक्त मां से दृष्टि, ज्ञान और शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. अगर आप नवरात्रि में मां नैना देवी के दर्शन करने जा रहे हैं तो बता दें कि वहां कुछ नए नियम लागू हो गए हैं. इन नियमों को ध्यान में रखते हुए ही आप नैना देवी के मंदिर जाएं और दर्शन करें…

Maa Naina Devi Darshan New Rules : शारदीय नवरात्रि चल रहे है और हर तरफ माता के जयकारे सुनाई दे रहे हैं. नवरात्र के इस पावन पर्व पर मंदिर में भक्तों का काफी उत्साह देखने को मिल रहा है और हर कोई माता की कृपा पाने के लिए मंदिर, शक्तिपीठ आदि माता के धार्मिक स्थलों पर सुबह से ही दर्शन करने के लिए पहुंच रहे हैं. अगर आप नवरात्रि के पावन अवसर पर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ श्री नैना देवी जी के मंदिर जा रहे हैं तो यह खबर आपके लिए है. नैना देवी के मंदिर में कुछ नियमों बदलाव किए गए हैं, आप इन्हीं नियमों को जानकर माता के दर्शन करें.
मां नैना देवी का मंदिर अत्यंत प्राचीन और शक्तिपीठों में प्रमुख है. यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. यह स्थान त्रिकूट पर्वत पर है और इसे भक्तों की आस्था का त्रिकूट धाम भी कहा जाता है. इस वर्ष नवरात्रों के दौरान प्रशासन और मंदिर न्यास द्वारा सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखते हुए मंदिर परिसर में नारियल चढ़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है. मंदिर में भारी भीड़ और सुरक्षा जोखिम को देखते हुए यह कदम उठाया गया है. जो भी श्रद्धालु माता नैना देवी के दर्शन के लिए उनके दरबार में नारियल लेकर आते हैं, उन्हें मुख्य द्वार पर रोककर नारियल ले लिया जाता है और बाहर निकलने के समय वापस दे दिया जाता है.

सुविधा और सुरक्षा को ध्यान रखा गया
मंदिर के पुजारी मनीष शर्मा का कहना है कि नारियल को मुख्य द्वार पर श्रद्धालुओं से ले लिया जाता है और उन्हें निकासी द्वार के पास प्रसाद के रूप में लौटाया जाता है. यह व्यवस्था श्रद्धालुओं और मंदिर परिसर की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है. उन्होंने बताया कि नवरात्र मेला के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु आने के कारण सुरक्षा उपायों को और कड़ा करना आवश्यक हो गया है. यह नियम पूरी तरह से श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा दोनों को ध्यान में रखकर बनाया गया है.
नैना देवी के साथ काली माता की मूर्ति भी स्थापित
शक्ति परंपरा के अनुसार, जब भगवान शिव माता सती का मृत शरीर लेकर घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनका भार कम करने के लिए सुदर्शन चक्र चलाया. माता सती की आंखें (नयन) इसी स्थान पर गिरी थीं, इसीलिए इस स्थान का नाम पड़ा नैना देवी. इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. मंदिर के गर्भगृह में माता की दो आंखें (नयन) और उनके साथ महाकाली और काली माता की मूर्ति स्थापित हैं. यहां देवी को शक्ति रूप में और बाईं ओर भगवान गणेश तथा दाईं ओर भगवान कालभैरव के रूप में विराजमान माना जाता है.

इसे शक्ति की माना जाता है जाग्रत पीठ
कहते हैं कि गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों से युद्ध से पहले यहां देवी का आशीर्वाद प्राप्त किया था. यह स्थान हिमाचल के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है और इसे शक्ति की जाग्रत पीठ माना जाता है. मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों के साथ-साथ रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है. मंदिर प्रशासन ने बताया कि इस प्रकार की व्यवस्था हर साल नवरात्र मेला के दौरान लागू की जाती है ताकि बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने पर भी किसी प्रकार की अप्रिय घटना न हो. सुरक्षा के साथ-साथ श्रद्धालुओं को उनके धार्मिक अधिकारों का भी सम्मान सुनिश्चित किया गया है.
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें