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दशहरा पर जाएं रावण के गांव, सिद्ध शिवलिंग के करें दर्शन, हर मनोकामना होती है पूरी!


Ravana ka gaon Bisrakh: दशहरा पर भारत में बुराई और अहंकार के प्रतीक रावण का पुतला जलाया जाता है और अच्छाई की जीत का शुभ संदेश दिया जाता है. लेकिन रावण की एक अच्छाई भी थी कि वह बेहद विद्वान और भगवान शिव का परम भक्त था. उसकी यही अच्छाई उसके पैतृक गांव में आज भी देखने को मिलती है. यही वजह है कि दशहरा के दिन बहुत सारे लोग रावण के गांव जाकर वहां के मंदिर में मौजूद उस सिद्ध शिवलिंग के दर्शन करते हैं, जिसके सामने बैठकर रावण ने कठिन तपस्या की थी और भगवान शिव को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त किए थे.

आपको बता दें कि रावण का यह गांव दिल्ली-एनसीआर में ही है. इसका नाम है बिसरख. यह गांव ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 1 के पास में है. जहां न केवल महाबली रावण का जन्म हुआ था बल्कि रावण के पिता विश्रवा भी यहीं पैदा हुए थे. इसी गांव में रावण की जन्मस्थली पर एक मंदिर बना हुआ है, जिसे रावण का मंदिर कहा जाता है. लेकिन सबसे खास बात है कि इस मंदिर में रावण की मूर्ति नहीं लगी है, बल्कि अष्टधातुओं से बनी वह अष्टकोणीय शिवलिंग है, जिसकी पूजा रोजाना रावण करता था.

रावण के गांव ब‍िसरख में अष्‍टकोणीय श‍िवलिंग..
रावण के गांव ब‍िसरख में अष्‍टकोणीय श‍िवलिंग..

हालांकि युवावस्था में रावण कुबेर से सोने की लंका लेने के लिए यहां से रवाना हो गया था और फिर यहां कभी लौटकर नहीं आया था, लेकिन बचपन से युवावस्था तक उसका जीवन यहीं बीता था. यह गांव काफी बड़ा नहीं है लेकिन समृद्ध है. दिलचस्प है कि जिस रावण को पूरी दुनिया बुराई और अत्याचार का प्रतीक मानती है, इस गांव के लोग उसी रावण को पूजते हैं और उसके जैसा विद्वान बालक पाने की कामना करते हैं.

शिवलिंग का दर्शन करने की है मान्यता
गांव के लोग और मंदिर के पुजारी कहते हैं कि रावण के इस गांव में बना अष्टकोणीय शिवलिंग चमत्कारी है. यहां रावण ने भी तपस्या की थी और अब यहां बहुत सारे लोग इस मंदिर में अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और सैकड़ों बार ऐसा हुआ है कि उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है और वे यहां शिवलिंग पर रद्राभिषेक करने आते हैं, भंडारा करते हैं. बेहद प्राचीन इस शिवलिंग की मान्यता दूर-दूर तक है.

इस गांव में नहीं जलता रावण का पुतला
दशहरा पर पूरे देश में रावण सहित अन्य राक्षसों के पुतले जलाए जाते हैं लेकिन बिसरख ऐसा गांव है जहां अभी तक कभी रावण दहन नहीं किया गया है. यहां पुराने समय से चली आ रही मान्यता के अनुसार यहां पर रामलीला का आयोजन भी नहीं किया जाता है, क्योंकि रामलीला में आखिर में रावण का वध होता है. इस दिन यहां रावण को बेटा मानकर याद किया जाता है.

मंदिर में पुजारी रहे रामदास बताते हैं कि भले ही यहां दर्शन करने के लिए काफी लोग आते हैं और देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी एक बार यहां दर्शन करने आए थे लेकिन अभी तक यहां रावण का मंदिर पूरी तरह नहीं बनाया जा सका है. जबकि मंदिर में जहां पर शिवलिंग है, वह मंदिर बना हुआ है. गांव के लोग अक्सर इस मंदिर में रावण की बड़ी प्रतिमा लगाने की मांग करते हैं, हालांकि अभी तक ऐसा नहीं हो सका है.

वे कहते हैं कि रावण में बुराई थीं लेकिन उसकी विद्वता का मुकाबला कोई नहीं कर सकता था. इसके अलावा वह भगवान भोलेनाथ का ऐसा परम भक्त था कि ऐसा कठिन तप कर पाना देवताओं के भी वश की बात नहीं थी.

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