Owl Hunting in Diwali: जैसे ही दीपावली नज़दीक आती है, उल्लुओं की जान पर खतरा मंडराने लगता है. यह खतरा प्राकृतिक कारण से नहीं, बल्कि इंसानी अंधविश्वास का परिणाम है. हर साल दिवाली के मौके पर कुछ लोग तंत्र-मंत्र और सिद्धि पाने के लालच में उल्लुओं की बलि देते हैं, जिससे यह संकटग्रस्त प्रजाति और मुश्किलों में घिरती जा रही है. इस समस्या के समाधान के लिए वन विभाग ने अलर्ट जारी करते हुए जंगलों में गश्त तेज़ कर दी है. उत्तराखंड वन विभाग में प्रधान मुख्य वन संरक्षक वाइल्डलाइफ रंजन कुमार मिश्रा से लोकल18 ने बातचीत की. इस दौरान उन्होंने इसके पीछे की वजहों को भी बताया और वन विभाग इससे कैसे निपट रहा है इसकी भी जानकारी दी.
अंधविश्वास की बलि चढ़ते उल्लू
भारत में जागरूकता अभियानों के बाद भी अंधविश्वास की जड़ें अब भी गहरी हैं. दीपावली के दौरान यह अंधविश्वास चरम पर होता है. खासकर तब जब मां लक्ष्मी के वाहन माने जाने वाले उल्लुओं का शिकार तांत्रिक साधनाओं के लिए बढ़ जाता है. उत्तराखंड समेत कई राज्यों के जंगलों में वन विभाग ने अलर्ट जारी कर दिया है ताकि इन मासूम पक्षियों की जान बचाई जा सके.
तंत्र विद्या में करते हैं उल्लू का इस्तेमाल
अंधविश्वासी तांत्रिक मानते हैं कि उल्लू की बलि देने से धन-संपत्ति और वशीकरण जैसी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं. इसके नाखून, पंख, चोंच और आंखों का इस्तेमाल तंत्र विद्या में किया जाता है, जिसके कारण दिवाली के दौरान इनकी मांग काफी बढ़ जाती है. यही वजह है कि अवैध शिकार और तस्करी के मामले भी बढ़ने लगते हैं.
खतरे में उल्लू की 16 प्रजातियां
दुनियाभर में उल्लू की 250 प्रजातियां हैं, जिनमें से 50 को विलुप्ति का खतरा है. भारत में 36 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 16 प्रजातियों का अवैध व्यापार में इस्तेमाल होता है. इनमें ब्राउन हॉक उल्लू, चित्तीदार उल्लू और एशियाई बैरड़ उल्लू जैसे नाम प्रमुख हैं. इन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित किया गया है और इनके व्यापार पर प्रतिबंध है.
वन विभाग तस्करी को लेकर बेहद अलर्ट
लोकल18 से बातचीत के दौरान उत्तराखंड वन विभाग के पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ रंजन कुमार मिश्रा ने कहा कि मान्यताओं के अनुसार, उल्लू मां लक्ष्मी जी का वाहन है. लेकिन कुछ लोगों के मन में गलतफहमी होती है कि उल्लू का इस्तेमाल तंत्र विद्या में होता है. मां लक्ष्मी जी के वाहन के संरक्षण के लिए मैंने विभाग को अलर्ट कर दिया है. इसके साथ ही कई क्षेत्रों में जागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है. यदि कोई फिर भी उल्लू को लेकर इन गतिविधियों में रहता है तो कठोरदण्ड के कई प्रावधान हैं.
किसानों के लिए फायदेमंद होता है उल्लू
उल्लू सिर्फ अंधविश्वास का शिकार नहीं है, बल्कि वह पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है. किसान इसे अपना मित्र मानते हैं, क्योंकि यह कीटों और छोटे जीवों को नियंत्रित करके फसलों को बचाता है. उल्लू का जीवनकाल करीब 25 साल होता है और वह पूरे जीवनकाल में छोटे जीवों जैसे चूहे, मेंढक और कीड़ों को खाकर पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखता है.
FIRST PUBLISHED : October 22, 2024, 10:02 IST
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