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देवघर का पथरोल काली मंदिर, मनोकामनाओं का आश्रय, श्रद्धालुओं की पसंदीदा जगह


देवघर: देवघर से लगभग 54 किलोमीटर दूर स्थित पथरोल काली मंदिर, अपनी प्राचीनता और अद्भुत शक्ति के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर 500 साल पुराना है और इसे मां काली का जागृत स्वरूप माना जाता है. श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां मां काली की पूजा अर्चना करने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. दीपावली जैसे खास अवसरों पर इस मंदिर में पूजा का आयोजन धूमधाम से किया जाता है

कालीघाट का स्वरूप
मंदिर की स्थापना का इतिहास भी काफी रोचक है. बताया जाता है कि यहां पहले वेदी की पूजा की जाती थी, लेकिन राजा दिग्विजय सिंह के सपने में मां काली ने उन्हें कोलकाता के कालीघाट से प्रतिमा लाने का आदेश दिया. इसके बाद मां काली की प्रतिमा को डोली में लाकर विधिविधान से स्थापित किया गया. इस प्रकार, पथरोल काली मंदिर का स्वरूप कोलकाता के कालीघाट से मिलता-जुलता है.

श्रद्धालुओं की आस्था
इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. रानी देवी, एक महिला श्रद्धालु, जो पिछले 25 वर्षों से इस मंदिर में पूजा करती आ रही हैं, का कहना है कि मां काली से की गई उनकी हर मनोकामना एक साल के भीतर अवश्य पूरी होती है. उनके अनुभव के अनुसार, यहां आकर श्रद्धालु न केवल मानसिक शांति पाते हैं, बल्कि अपनी कठिनाइयों का समाधान भी खोज लेते हैं.

मनोकामना का संकेत
मंदिर के तीर्थपुरोहित पिंटू आचार्य बताते हैं कि यहां मां काली का जागृत रूप है. श्रद्धालु हर शनिवार और मंगलवार को अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं. फूलास विधि के माध्यम से, श्रद्धालु मां काली से अपनी इच्छा पूरी करने की प्रार्थना करते हैं. जब मां काली उनके द्वारा चढ़ाए गए फूल को गोद से गिरा देती हैं, तब यह संकेत होता है कि उनकी मनोकामना एक साल के भीतर अवश्य पूरी होगी.

फूलास विधि की अनोखी परंपरा
तीर्थपुरोहित के अनुसार, जो फूल मां काली गिरा देती हैं, उसे श्रद्धालु अपने घर ले जाकर तीन दिनों तक उसका पानी ग्रहण करते हैं. इस फूल को पूजा स्थल पर रखना अनिवार्य है. जब मनोकामना पूरी हो जाती है, तो श्रद्धालु उस फूल को वापस मंदिर में चढ़ाते हैं. इस प्रक्रिया को फूलास कहा जाता है, जो न केवल एक धार्मिक कार्य है, बल्कि आस्था और विश्वास का प्रतीक भी है.

विशेष दिन की भीड़
मंदिर में हर दिन भक्तों की भीड़ रहती है, लेकिन विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को यहां भक्तों की संख्या अधिक होती है. यहां के तीर्थपुरोहितों का कहना है कि मां काली का यह जागृत मंदिर है, जहां मनोकामनाएं मांगी जाती हैं और पूर्ण होती हैं. देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु यहां आते हैं, साथ ही विदेशों में रहने वाले मां काली के भक्त भी इस मंदिर की ओर आकर्षित होते हैं.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.

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