बस्ती: रेलवे स्टेशन के समीप स्थित करुआ बाबा का मंदिर लगभग 500 साल पुराना धार्मिक स्थल है, जिसकी स्थापना 1442 ईसवी में बस्ती के राजा पाटेश्वरी प्रसाद नारायण सिंह द्वारा की गई थी. यहां के पुजारी अयोध्या प्रसाद ने बताया कि पहले यह स्थान घने जंगल से घिरा हुआ था और करुआ बाबा की आकाशवाणी के बाद उनकी मूर्ति की स्थापना की गई थी. ऐसा कहा जाता है कि यदि उनकी स्थापना नहीं की गई होती, तो इस रास्ते से किसी का आना-जाना संभव नहीं होता. यह मंदिर श्रद्धालुओं के बीच अत्यधिक मान्यता रखता है और यहां मांगी गई मुरादें पूरी होती हैं. भक्तगण यहां लपसी और पूड़ी का प्रसाद चढ़ाते हैं.
करुआ बाबा मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का इतिहास करुआ बाबा की वीरता से जुड़ा हुआ है. 500 ईसा पूर्व, जब बस्ती के राजा पर बाहरी गद्दारों ने हमला किया, करुआ बाबा, जो कि बस्ती राजा के सेनापति थे, ने अपनी सेना के साथ दुश्मनों का सामना किया. लड़ाई के दौरान, धोखे से उनका सिर काट दिया गया, लेकिन करुआ बाबा बिना सिर के भी लड़ते हुए 500 मीटर दूर जाकर गिरे, जहां आज उनका मंदिर स्थित है. वर्तमान में मंदिर का जीर्णोद्धार पुजारी अयोध्या प्रसाद की पत्नी गौरा देवी द्वारा किया गया. एक समय में, मंदिर का निर्माण अटके रहने के डर से किसी ने इसकी मरम्मत नहीं करवाई थी. लेकिन गौरा देवी ने साहस दिखाते हुए अपने पुत्र को करुआ बाबा की चौखट पर समर्पित कर मंदिर का निर्माण पूरा करवाया. उनके पुत्र को किसी प्रकार की हानि नहीं हुई, जिससे लोगों की आस्था और मजबूत हो गई.
मंदिर की परंपराएं और बदलती मान्यताएं
पहले करुआ बाबा के मंदिर पर छुआछूत की प्रथा थी, क्योंकि मंदिर के पुजारी दलित बिरादरी से संबंध रखते हैं. लेकिन आज यह प्रथा खत्म हो गई है, और सभी जाति-समुदाय के लोग यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. मंदिर का प्रसार 84 कोस तक है, और दूर-दूर से लोग मन्नतें मांगने व मुंडन संस्कार के लिए आते हैं.
प्रसाद और अनुष्ठान
करुआ बाबा के मंदिर में लपसी और पूड़ी मुख्य प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है, जिसे विशेष रूप से सरसों के तेल में बनाया जाता है. पहले यहां बकरों और मुर्गों की बलि भी दी जाती थी, लेकिन अब बलि प्रथा समाप्त हो चुकी है. भक्तगण अब सिर्फ लपसी और पूड़ी का प्रसाद चढ़ाते हैं.
FIRST PUBLISHED : October 20, 2024, 14:18 IST
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