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नागौर बुटाटी धाम: लकवे के इलाज के लिए प्रसिद्ध मंदिर


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Butati Dham Nagaur Rajasthan : प्रसिद्ध संत चतुरदास महाराज मंदिर में इन दिनों लकवा से ग्रस्त मरीजों की संख्या काफी देखी जा रही है. दावा है कि इस मंदिर में लकवा के मरीज ठीक हो जाते हैं.

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संत

संत चतुरदास जी महाराज मंदिर 

हाइलाइट्स

  • बुटाटी धाम में लकवा के मरीज ठीक होते हैं.
  • 7 दिन की आरती और परिक्रमा से लकवा ठीक होता है.
  • मंदिर में इलाज बिल्कुल फ्री किया जाता है.

नागौर: लकवे से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए प्रसिद्ध संत चतुरदास महाराज मंदिर में इन दिनों भक्तों की भीड़ बढ़ रही है. लोगों का दावा है, कि इस मंदिर में लकवा से ग्रस्त मरीज को 7 दिन रोका जाता है. सुबह शाम नियमित रूप से आरती एवं परिक्रमा करने के बाद, भभूत ग्रहण करने से लकवे के मरीजों की तकलीफ खत्म हो जाती है. यह मंदिर संपूर्ण भारत में बुटाटी धाम के नाम से प्रसिद्ध है

लकवे से पीड़ित लोग पहुंच रहे हैं मंदिर
वहीं इसको लेकर पुजारी मुकेश वैष्णव ने बताया कि मंदिर में श्रद्धालुओं का सुबह से ही भक्तों के आने का सिलसिला शुरू हो जाता है, जो देर शाम तक चलता है. भक्तों के लिए किसी को परेशानी नहीं आए इसके लिए मंदिर प्रशासन की ओर से यात्रियों के लिए चरण दर्शन व परिक्रमा के बारे में लाउडस्पीकर से लगातार सूचना दी जाती है. मंदिर पुजारी ने दावा किया, कि लकवे से पीड़ित लोगों के परिजन लगातार मंदिर में पहुंच रहे हैं और आरती में शामिल हो रहे हैं.

बुटाटी धाम के नाम से प्रसिद्ध है मंदिर 
वहीं, अध्यक्ष देवेंद्र सिंह ने बताया, कि नागौर के बुटाटी धाम में संत चतुरदास जी महाराज का मंदिर है. इस मंदिर को लेकर मान्‍यता है कि इस मंदिर में सात दिन तक आरती-परिक्रमा करने से पैरालिसिस के मरीज ठीक होकर जाते हैं. लोगों का दावा है कि सात दिन बाद लकवा ठीक हो जाता है या बहुत हद तक सुधार होते हुए देखा गया है. यह मंदिर संपूर्ण भारत में बुटाटी धाम के नाम से प्रसिद्ध है.

7 दिन रोका जाता है मंदिर
मंदिर प्रबंधन कमेटी ने बताया कि बुटाटी धाम में इलाज बिल्कुल फ्री किया जाता है. यहां पर लकवा से ग्रस्त मरीज को 7 दिन रोका जाता है और सुबह शाम नियमित रूप से आरती एवं परिक्रमा करने के बाद भभूत ग्रहण करने से लकवे के मरीजों की तकलीफ खत्म हो जाती है. लोगों के आस्था के चलते यहां देश भर से मरीजों का तांता लगा रहता है.

ऐसे लगानी होती है परिक्रमा
मंदिर प्रबंधन कमेटी के अनुसार इस मंदिर में सुबह की आरती के बाद पहली परिक्रमा मंदिर के बाहर और शाम की आरती के बाद दूसरी परिक्रमा मंदिर के अंदर लगानी होती है. ये दोनों परिक्रमा मिलाकर पूरी एक परिक्रमा कहलाती है. सात दिन तक मरीज को इसी प्रकार परिक्रमा लगानी होती है.

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रहस्यों से भरा है यह मंदिर, यहां पैरालिसिस के मरीज हो जाते हैं ठीक! जानें

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