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पितृ अमावस्या 21 सितंबर को है, पंडित श्याम बाबू भट्ट के अनुसार इस दिन श्राद्ध तर्पण से पूर्वज तृप्त होते हैं और परिवार में सुख शांति आती है, पंचवली देना भी जरूरी है.
श्राद्ध कर्म और कर्मकांड के विशेषज्ञ पंडित श्याम बाबू भट्ट बताते हैं कि पितृ अमावस्या को पितरों का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. जिन लोगों को अपने माता-पिता या पूर्वजों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, वे भी इस दिन श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं. साथ ही भूले-बिसरे पितरों का श्राद्ध भी विशेष रूप से इसी दिन किया जाता है.
पंडित श्याम बाबू भट्ट के अनुसार पितृ अमावस्या के दिन घर पर भी विधिवत तर्पण किया जा सकता है. शास्त्रों में तर्पण की विधि विस्तार से बताई गई है, जिसके अनुसार श्रद्धापूर्वक पूर्वजों का स्मरण कर तर्पण करने से पुण्य फल प्राप्त होता है. उन्होंने बताया कि यदि किसी की कुंडली में पितृ दोष, गुरु चांडाल योग या ग्रहण दोष जैसे योग बने हों, तो इस दिन विशेष उपाय करना चाहिए. इस तिथि पर ज्ञात और अज्ञात सभी पितरों के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण श्रेष्ठ माना जाता है. बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु तिथि याद नहीं रहती. ऐसे में शास्त्रों में सर्वपितृ अमावस्या को ही समाधान बताया गया है. इस दिन किए गए कर्मकांड सभी दिवंगत आत्माओं को शांति और मोक्ष प्रदान करते हैं.
पूजा विधि और विशेष नियम
पंडित भट्ट ने बताया कि पितृ अमावस्या के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान और ध्यान करना चाहिए. इसके बाद पितृ स्थान की शुद्धि कर पितरों का स्मरण और पूजा करनी चाहिए. फिर विधिपूर्वक तर्पण करना चाहिए. इस दिन पंचवली देना विशेष रूप से जरूरी माना गया है. पंचवली का अर्थ है तर्पण के बाद बनाए गए भोजन में से एक भाग गाय के लिए, एक कुत्ते के लिए, एक कौए के लिए, एक अतिथि के लिए और एक हिस्सा देवताओं के लिए अलग रखना.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ अमावस्या के दिन किया गया श्राद्ध कर्म न केवल पूर्वजों को तृप्त करता है, बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि और शांति का मार्ग भी प्रशस्त करता है. इसलिए इस विशेष तिथि पर हर व्यक्ति को श्रद्धा और समर्पण भाव से अपने पितरों का स्मरण अवश्य करना चाहिए.

नाम है आनंद पाण्डेय. सिद्धार्थनगर की मिट्टी में पले-बढ़े. पढ़ाई-लिखाई की नींव जवाहर नवोदय विद्यालय में रखी, फिर लखनऊ में आकर हिंदी और पॉलीटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया. लेकिन ज्ञान की भूख यहीं शांत नहीं हुई. कल…और पढ़ें
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