Home Dharma प्रयागराज कुंभ 2025: अखाड़ों और संतों की विदाई की परंपरा

प्रयागराज कुंभ 2025: अखाड़ों और संतों की विदाई की परंपरा

0


Last Updated:

कुंभ जब से शुरू हुआ है तब से यहां एक खास परंपरा रही है. जब साधु-संत और नागा बाबा विदा लेने लगते हैं तो उससे पहले उन्हें कढ़ी-पकौड़ी बनाकर खिलाई जाती है. क्यों होती है ये परंपरा और कौन बनाता है इसे.

Mahakumbh:कुंभ में विदाई से पहले नागा बाबाओं के लिए कौन बनाता है कढ़ी-पकौड़ी

हाइलाइट्स

  • कुंभ में संतों की विदाई से पहले कढ़ी-पकौड़ी खिलाई जाती है
  • नाई और उनके परिवार के लोग कढ़ी-पकौड़ी बनाते हैं
  • जब से कुंभ शुरू हुआ तब से निभाई जा रही ये परंपरा

कुंभ में अखाड़ों और संतों की विदाई हो गई है. इस बार तीसरे शाही स्नान के साथ ही प्रयागराज 2025 महाकुंभ अखाड़ों और नागा साधुओं का जाना शुरू हो गया है. नागा साधु कुंभ में मुख्य रूप से तीन अमृत स्नानों में भाग लेने के लिए आते हैं. बसंत पंचमी में ये आखिरी स्नान हुआ. इसके बाद नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों, हिमालय या अन्य स्थानों पर तपस्या के लिए लौटना शुरू कर देते हैं. बेशक इसके बाद भी कुंभ चलता रहता है लेकिन अखाड़ों, संतों और नागा बाबाओं की वापसी के साथ ही औपचारिक तौर पर इसे अंत मान लिया जाता है. विदाई से पहले साधु-संत कढ़ी चावल चखते हैं. क्या आपको मालूम है कि उनके लिए ये खाना कौन बनाता है.

दरअसल कुंभ मेले में अखाड़ों के संतों की विदाई से पहले कढ़ी पकौड़ी बनाने की परंपरा बहुत पुरानी है. इसे विशेष रूप से नाई (बार्बर) और उनके परिवार के लोग बनाते हैं. नाई अखाड़े के संतों की सेवा में पूरे कुंभ मेले के दौरान रहते हैं. जब संतों की विदाई होती है, तो उनकी ओर से कढ़ी पकौड़ी बनाकर विदाई दी जाती है.

संतगण अपने नाई सेवकों को इस सेवा के लिए आशीर्वाद और उपहार देते हैं. यह परंपरा गुरु-शिष्य और सेवक-स्वामी के रिश्ते की आत्मीयता को भी दिखाती है. कुंभ मेले में हर अखाड़े में यह परंपरा निभाई जाती है. इसे श्रद्धा व भक्ति से पूरा किया जाता है.

कुंभ मेले में अखाड़ों के संतों की विदाई से पहले बनने वाली कढ़ी पकौड़ी बहुत बड़े स्तर पर तैयार की जाती है. इसकी मात्रा मुख्य तौर पर अखाड़े के आकार, उसमें रहने वाले संतों और उनके सेवकों की संख्या पर निर्भर करती है.

(file photo)

कितनी कढ़ी बनाई जाती है
छोटे अखाड़ों में – लगभग 50-100 लीटर कढ़ी बनाई जाती है.
बड़े अखाड़ों में – 200-500 लीटर तक कढ़ी तैयार होती है.
अति विशाल अखाड़ों में – यह मात्रा 1000 लीटर (1 टन) तक भी पहुंच सकती है.

– हर अखाड़े में मौजूद संतों और श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए भोजन की मात्रा तय की जाती है.
– कुंभ मेले में लाखों श्रद्धालु आते हैं, इसलिए यह आयोजन कई बार हजारों लोगों के लिए भी किया जाता है.
– इस प्रकार, यह केवल एक व्यंजन नहीं बल्कि संतों की विदाई का शुभ संस्कार माना जाता है.

कढ़ी पकौड़ी की तैयारी कैसे होती है?
इसे बड़े कड़ाहों (भोजन बनाने के बड़े बर्तन) में लकड़ी या उपलों की आग पर विशुद्ध देसी अंदाज में ही बनाया जाता है.पकौड़ियों के लिए कई क्विंटल बेसन गूंथा जाता है. सैकड़ों किलो तेल में तलकर पकौड़ियां तैयार की जाती हैं. इसमें दही, मसाले, और अन्य पारंपरिक सामग्री डाली जाती है ताकि स्वाद प्राचीन विधि के अनुसार बना रहे. इसे संतों और श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में परोसा जाता है.

भारत में कढ़ी पकौड़ी की शुरुआत कब हुई
कढ़ी पकौड़ी भारत के सबसे पुराने और लोकप्रिय व्यंजनों में एक है. इसका उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों और आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी मिलता है. यह उत्तर भारत, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे कई राज्यों में अलग-अलग तरीकों से बनाई जाती है. माना जाता है कि वैदिक काल (1500-500 ईसा पूर्व) से कढ़ी भारत में बनती रही है.

प्राचीन ग्रंथ क्या कहते है
प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों, जैसे चरक संहिता और सुश्रुत संहिता, में बेसन और दही से बने भोजन का उल्लेख मिलता है. उस समय खट्टे दही और जड़ी-बूटियों का उपयोग पाचन को ठीक रखने के लिए किया जाता था, जो कढ़ी के मूल तत्व हैं.

हर दौर में कैसी होती थी कढ़ी
बौद्ध और मौर्य काल (500 ईसा पूर्व – 200 ईस्वी) में संन्यासी और भिक्षु सरल और पौष्टिक भोजन करते थे, जिसमें दही और बेसन का मिश्रण प्रचलित था.शायद इस काल में कढ़ी जैसा कोई व्यंजन मौजूद रहा होगा. इसके बाद मध्यकालीन भारत (700-1700 ईस्वी) में कढ़ी हिट व्यंजन रही. राजस्थानी और गुजराती भोजन परंपरा में कढ़ी का विशेष महत्व बढ़ा. राजस्थान में पानी की कमी के कारण दही और बेसन आधारित व्यंजन अधिक प्रचलित हुए. मुगल काल में भी कढ़ी पकौड़ी जैसे व्यंजनों को मसालों के साथ अधिक स्वादिष्ट बनाया गया.

अब कढ़ी किस तरह से खाई जाती है
समय के साथ कढ़ी अलग-अलग राज्यों में विभिन्न रूपों में विकसित हुई. राजस्थानी कढ़ी तीखी होती है और बिना प्याज-लहसुन की बनती है. पंजाबी कढ़ी पकौड़ी गाढ़ी, प्याज-लहसुन और मसालों के साथ बनती है. गुजराती कढ़ी हल्की मीठी होती है. महाराष्ट्रीयन कढ़ी हल्दी और नारियल का स्वाद लिए होती है.
ये व्यंजन भारत में कम से कम 2000-3000 साल पुराना माना जा सकता है. आज भी भारतीय खाने में ये सबसे लोकप्रिय व्यंजन है.

homeknowledge

Mahakumbh:कुंभ में विदाई से पहले नागा बाबाओं के लिए कौन बनाता है कढ़ी-पकौड़ी

NO COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Exit mobile version