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Sundarkand Path: कलयुग में हनुमान जी को जागृत देवता माना जाता है. माना जाता है कि रोजाना सुंदरकांड का पाठ करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं. ऐसे में सुंदरकांड की कुछ चौपाई का खास महत्व है. आइए जानते हैं.
दरअसल संतों का ऐसा कहना है कि अगर आप कोई भी चौपाई अथवा दोहे का अनुसरण कर रहे हैं, तो उसका फल आपको तभी प्राप्त होगा जब आप उसका अर्थ समझ रहे हो. ऐसी स्थिति में रामचरितमानस के सुंदरकांड में एक दोहा है ‘करि जतन भट कोटिन्ह बिकट तन नगर चहुँ दिसि रच्छहीं,
कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं, एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही, रघुबीर सर तीरथ सरीरन्हि त्यागि गति पैहहिं सही’ सुंदरकांड के इस दोहे में लंका की रक्षा और राक्षसों की गतिविधियों का वर्णन किया गया है. जिसके बारे में राम कचहरी चारों धाम मंदिर के महंत शशिकांत दास विस्तार से बताते हैं.
कहुँ महिष मानषु धेनु खर अज खल निसाचर भच्छहीं, एहि लागि तुलसीदास इन्ह की कथा कछु एक है कही…अर्थात लंका के राक्षस ऐसे हैं जो भैंस मनुष्य गए जैसे जीव जंतु को खा रहे हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन राक्षसों की कथा संक्षेप में बताई है.
शशिकांत दास बताते हैं कि रामचरितमानस के सुंदरकांड से लिया गया यह दोहा लंका में राक्षस गतिविधि और प्रभु राम की भक्ति के महत्व को दर्शाता है. इस दोहे का अनुसरण करने से प्रभु राम के साथ पवन पुत्र हनुमान की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है.