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Navratri 2025 : संत बाबा कारू स्थान, महपुरा गांव सहरसा में दुर्गा पूजा पर लाखों श्रद्धालु दूध चढ़ाते हैं, जिससे दूध की धारा कोशी नदी में मिलती है. यह मंदिर 17वीं सदी से प्रसिद्ध है.
सहरसा: बिहार के सहरसा जिले के महपुरा गांव में स्थित संत बाबा कारू स्थान एक अद्भुत धार्मिक स्थल है. यहां दुर्गा पूजा के अवसर पर विशेष पूजा होती है और मंदिर में दूध का चढ़ावा के साथ दूध की धारा बहती है. यह मंदिर कोशी नदी के किनारे है और दुर्गा पूजा के 2 दिनों सप्तमी और अष्टमी को लाखों श्रद्धालु दूध चढ़ाते हैं. इस अनुष्ठान की वजह से मंदिर से दूध की धारा बहती है, जो कोशी नदी में मिल जाती है. यही कारण है कि इसे बिहार का इकलौता ऐसा मंदिर माना जाता है. जहां दुर्गा पूजा के दौरान दूध की बड़ी मात्रा धारा की तरह बहती है.
यह मंदिर 17वीं सदी से जुड़ा हुआ माना जाता है. बाबा कारू खिरहर नामक संत की तपस्या और साधना से यह पवित्र स्थल प्रसिद्ध हुआ था. कहा जाता है कि बाबा कारू ने इस क्षेत्र के लोगों की भलाई और सुरक्षा के लिए कठिन तपस्या की थी. उनकी आस्था से प्रेरित होकर यह मंदिर स्थापित हुआ था, जहां श्रद्धालु उनकी पूजा करते हैं और नवरात्रि में खासकर दूध चढ़ाते हैं. दूध चढ़ाने का यह अनुष्ठान पूरे क्षेत्र की धार्मिक आस्था का केंद्र है और कई जिलों से श्रद्धालु इस मौके पर यहां पहुंचते हैं.
दूध का चढ़ावा और खीर प्रसाद
स्थानीय पुजारी मिथलेश खिरहर ने बताया कि यहां 2 दिनों में लगभग 4000 लीटर दूध का चढ़ावा होता है. यहां चढ़ाए हुए दूध से खीर तैयार की जाती है जो श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है. लोगों की आस्था इस मंदिर से इतनी गहरी जुड़ी हुई है कि बिहार ही नहीं, बल्कि झारखंड सहित अन्य राज्य से भी श्रद्धालु यहां आते हैं. दो दिनों के अंतराल में लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं और बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं.
पशुपालकों की विशेष भागीदारी
इस मंदिर में दूध चढ़ाने के लिए अधिकांश पशुपालक यहां आते हैं। पशुओं से जुड़ा यह मंदिर विभिन्न राज्यों से पशुपालकों को आकर्षित करता है. मंदिर की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है और स्थानीय लोगों में गहरी आस्था का कारण है. दूध की अविरल धारा देखना हर भक्त के लिए अद्भुत अनुभव होता है. त्योहार के दौरान यहां की सड़कों और नदी किनारे श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, जो अपनी मन्नतें मांगते हैं और बाबा कारू को दूध, दही, चुरा, फल आदि चढ़ाते हैं. दूध की यह धारा कोशी नदी में मिलकर उस जल को भी पवित्र कर देती है, जिससे नदी के जल का महत्व और बढ़ जाता है.
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
इस मंदिर का धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी बड़ा महत्व है. यह आस्था और श्रद्धा का जीवंत आधार है जो लोगों को जोड़ती है. स्थानीय प्रशासन और संस्थान भी इस त्योहार के आयोजन में सहयोग करते हैं. ताकि श्रद्धालुओं को सुविधाएं मिल सकें.
बृजेंद्र प्रताप सिंह डिजिटल-टीवी मीडिया में लगभग 4 सालों से सक्रिय हैं. मेट्रो न्यूज 24 टीवी चैनल मुंबई, ईटीवी भारत डेस्क, दैनिक भास्कर डिजिटल डेस्क के अनुभव के साथ संप्रति News.in में सीनियर कंटेंट राइटर हैं. …और पढ़ें
बृजेंद्र प्रताप सिंह डिजिटल-टीवी मीडिया में लगभग 4 सालों से सक्रिय हैं. मेट्रो न्यूज 24 टीवी चैनल मुंबई, ईटीवी भारत डेस्क, दैनिक भास्कर डिजिटल डेस्क के अनुभव के साथ संप्रति News.in में सीनियर कंटेंट राइटर हैं. … और पढ़ें