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भारत में धार्मिक AI चैटबॉट्स से आस्था के अनुभव में बदलाव


धार्मिक AI का उगता सूरज
भारत में ये ट्रेंड तेजी से पकड़ रहा है. राजस्थान के एक बिजनेस स्टूडेंट विकास साहू ने गीताजीपीटी बनाया है. ये एक साइड प्रोजेक्ट था, लेकिन अब ये हिंदू धर्म के भक्तों का चहेता बन गया. भगवद्गीता के 700 श्लोकों पर आधारित ये चैटबॉट आपको कृष्ण का AI वर्जन देता है. पूछिए कोई आध्यात्मिक सवाल, और जवाब आएगा जैसे कृष्ण खुद बोल रहे हों! बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ये टूल लोगों को गीता की गहराई से जोड़ रहा है.

इसी तरह, कोलकाता के 20 साल के रैहान खान ने 2023 के रमजान में कुरानजीपीटी लॉन्च किया. ये ऐप कुरान की आयतों पर सवालों के जवाब देता है, और वैज्ञानिक अमेरिकन की रिपोर्ट कहती है कि ये जल्दी ही लाखों यूजर्स तक पहुंच गया. भारत से बाहर भी ये धूम मचा रहा है. ईसाई ग्रंथों के लिए बाइबल.एआई, बौद्ध शिक्षाओं के लिए बुद्धाबॉट, और यहां तक कि मार्टिन लूथर या कन्फ्यूशियस जैसे ऐतिहासिक व्यक्तियों के चैटबॉट्स भी हैं. भारत में तो शिव जी का AI वर्जन भी आ गया है! दुनिया भर में टेक्स्ट विद जीसस और बाइबल चैट जैसे ऐप्स के मिलियंस डाउनलोड्स हैं, जो कुछ मौकों पर तो एंटरटेनमेंट ऐप्स को भी पछाड़ रहे हैं. ये दिखाता है कि आस्था अब डिजिटल हो रही है, और भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में ये और भी खास है.

ये चैटबॉट्स कैसे काम करते हैं? और क्यों इतने पॉपुलर?

सबसे पहले, ये बड़े लैंग्वेज मॉडल्स (LLM) पर चलते हैं, जो पवित्र ग्रंथों पर ट्रेन किए जाते हैं. सवाल पूछो, तो AI उसी ग्रंथ से श्लोक या व्याख्या निकालकर जवाब देता है – वो भी बातचीत की तरह. गीताजीपीटी में कृष्ण की आवाज में जवाब आता है, कुरानजीपीटी में कुरान की रोशनी में सलाह. पर अगर आप सोच रहे हैं कि ऐसी तकनीक की इस लोकप्रियता का क्‍या राज है? तो वह है व्यक्तिगत स्पर्श और आसानी! व्यस्त जिंदगी में कौन घंटों किताब पढ़ेगा? AI आपके मूड के हिसाब से प्रार्थना बना देगा, चिंतन करवाएगा, यहां तक कि उपदेश भी. चीन में डीपसीक जैसे ऐप्स फॉर्च्यून टेलिंग के साथ AI मिलाते हैं, तो पश्चिम में हेलो जैसे प्लेटफॉर्म्स AI-गाइडेड प्रार्थनाओं के लिए सालाना 70 डॉलर तक लेते हैं.

युवाओं के लिए तो ये परफेक्ट हैं, जो वर्चुअल वर्ल्ड में ज्यादा जीते हैं. भारत के युवा, जो मंदिर जाना भूल जाते हैं लेकिन फोन नहीं छोड़ते, उनके लिए ये टूल आस्था का आसान रास्ता हैं. सोचिए, घर बैठे शिवरात्रि का वर्चुअल अनुभव या गीता के श्लोकों पर चैट!

आस्था के नए द्वार: एआई कैसे बदल रहा है धार्मिक अनुभव?

एआई आस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है. पवित्र ग्रंथ या क‍िसी रस्‍म के बारे में जानना हो, अब सबकुछ कहीं भी, कभी भी उपलब्ध है, वो भी आपकी स्‍पीड से. व्यक्तिगत मार्गदर्शन, इंटरएक्टिव सीखना, और यहां तक कि धार्मिक घटनाओं के वर्चुअल सिमुलेशन! कल्पना कीजिए, स्विट्जरलैंड के चर्च में लगे “एआई जीसस” होलोग्राम को – भारत में भी ऐसा कुछ आ सकता है. ये टूल्स अंतर-धर्म संवाद को बढ़ावा देते हैं. हिंदू, मुस्लिम, ईसाई – सब एक प्लेटफॉर्म पर जुड़ें, विचार साझा करें. खासकर युवाओं या दूर-दराज इलाकों के लोगों के लिए, ये आस्था की शुरुआत का दरवाजा हैं. भारत जैसे देश में, जहां त्योहार और पूजा जीवन का हिस्सा हैं, एआई इन्हें और जीवंत बना सकता है.

सावधान! नैतिक और आध्यात्मिक चुनौतियां भी हैं

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. एआई चैटबॉट्स शास्त्रों को गलत समझ सकते हैं, गलत सलाह दे सकते हैं, या जटिल शिक्षाओं को सरल बना देकर भ्रम फैला सकते हैं. आस्था को कमोडिटी बना देना – जैसे कोई ऐप खरीद लो और भगवान मिल गया – ये जोखिम भरा है. विशेषज्ञ कहते हैं, एआई में सच्ची सहानुभूति, नैतिक निर्णय या आध्यात्मिक बुद्धि नहीं है. तो ये बात हमेशा याद रखनी पड़ेगी क‍ि ये इंसानी मार्गदर्शन का विकल्प नहीं हो सकते. अधिक निर्भरता से अकेलापन बढ़ सकता है, समुदाय के बंधन कमजोर हो सकते हैं. इसलिए, संतुलन बेहद जरूरी है. डिजिटल टूल्स को पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ जोड़ें. भक्ति का असली स्वाद तो मंदिर की घंटियों और सत्संग में है!

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