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महाभारत: जरासंध ने 18 बार हराया था श्रीकृष्ण को, भीम ने ऐसे किया वध


Mahabharat: भगवान श्रीकृष्ण जो भी करते थे उसके पीछे एक उद्देश्य होता था. महाभारत में भी कई कहानियां हैं जहां लोगों को भगवान श्रीकृष्ण के काम समझ नहीं आए. लेकिन बाद लोगों को समझ में आया कि श्रीकृष्ण क्या सोच रहे थे. ऐसी ही एक कहानी जरासंध को लेकर भी है. जरासंध श्रीकृष्ण के मामा कंस का ससुर था. इस नाते वह उनकी हर संभव मदद किया करता था. श्रीकृष्ण द्वारा कंस का वध किये जाने के बाद उनको सबसे ज्यादा किसी ने परेशान किया तो वह था जरासंध. उसने कृष्ण और बलराम को मारने के लिए मथुरा पर 18 बार आक्रमण किया.

जरासंध जब भी कृष्ण पर आक्रमण करता, उसे हार का मुंंह देखना पड़ता. लेकिन वह फिर सेना जुटाता और ऐसे राजाओं को अपने साथ जोड़ता जो श्रीकृष्ण के खिलाफ थे. उसके बाद वह फिर हमला बोल देता. हर बार श्रीकृष्ण पूरी सेना को मार देते, लेकिन जरासंध को छोड़ देते  कृष्ण के बड़े भाई बलराम को यह बात अजीब लगती. आखिर में एक युद्ध के बाद बलराम से रहा नहीं गया और उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछ ही लिया, “बार-बार जरासंध हारने के बाद पृथ्वी के कोनों-कोनों से दुष्टों को अपने साथ जोड़ता है और हम पर आक्रमण कर देता है और तुम पूरी सेना को मार देते हो लेकिन असली अपराधी को ही छोड़ देते हो. आखिर ऐसे क्यों?”

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तब श्रीकृष्ण ने हंसते हुए बलराम को समझाया, “हे भ्राता श्री, मैं जरासंध को बार-बार जानबूझकर इसलिए छोड़ दे रहा हूं ताकि वह जरासंध पूरी पृथ्वी से दुष्टों को अपने साथ जोड़े और मेरे खिलाफ युद्ध छेड़ता रहे ताकि मैं आसानी से एक ही जगह रहकर धरती के सभी दुष्टों को मार सकूं. नहीं तो मुझे इन दुष्टों को मारने के लिए पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाना पड़ता. दुष्टों के संहार का मेरा यह काम जरासंध ने बहुत आसान कर दिया है.” श्रीकृष्ण ने कहा, “जब सभी दुष्टों को मार लूंगा तो सबसे आखिरी में इसे भी खत्म कर ही दूंगा, चिंता न करो भ्राता श्री.”

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कैसे हुआ जरासंध का जन्म
नमिता गोखले की किताब ‘महाभारत: नई पीढ़ी के लिए’ के मुताबिक जरासंध के जन्म की कहानी भी बड़ी दिलचस्प थी. वह मगध के राजा बृहद्रथ का पुत्र था. बृहद्रथ की दो पत्नियां थीं. दोनों की कोई संतान नहीं थी और इससे बृहद्रथ को बहुत दुःख होता था. वह अपना राज्य छोड़कर वन में तपस्या के लिए चले गए. साथ दोनों पत्नियां भी गईं, जो जुड़वा बहनें थीं. वन में उनकी भेंट एक ऋषि से हुई, जो उनकी भक्ति से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने बृहद्रथ को इस आशीर्वाद के साथ एक मायावी आम दिया कि जब उनकी पत्नी इसे खाएगी तो उसे पुत्र होगा. राजा एक सीधे-सादे और न्यायप्रिय व्यक्ति थे. उन्होंने फल को दो बराबर भागों में काटा और अपनी दोनों प्रिय रानियों को एक-एक टुकड़ा दे दिया.

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दो हिस्सों में पैदा हुआ बच्चा
आम खाने के बाद राजा की दोनों पत्नियां गर्भवती हो गईं, लेकिन बच्चों के जन्म के बाद राजा की खुशी डर में बदल गई. दोनों रानी ने एक आंख, एक हाथ, एक पैर आदि के साथ आधे बच्चे को जन्म दिया था. रात को जब रानियां सो रही थीं, तब दाई ने दोनों आधे बच्चों को काले कपड़े में लपेटा और शहर के फाटक के बाहर रख आई. उसी रात जरा नाम की एक राक्षसी भोजन की खोज में घूम रही थी. उसकी नजर बच्चों पर पड़ी. उसने जैसे ही दोनों बच्चों को उठाया वे चमत्कारिक रूप से जुड़ गए. आंख से आंख मिल गईं, हाथ से हाथ, पैर से पैर. अब जरा के हाथों में एक सुंदर-स्वस्थ बच्चा था. जरा अपनी आंतरिक शक्तियों से जान गई कि ये बच्चा राजा बृहद्रथ का है. उसने बच्चे को मारने की जगह राजा को वापस लौटाने का फैसला किया. जरा राजा बृहद्रथ के पास गई और पूरी घटना सुनाई. राजा बहुत प्रसन्न हुए और अपने बेटे का नाम जरासंध रखने का निर्णय लिया, जिसका अर्थ है “वह जिसे जरा ने जोड़ा हो.“

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भीम और अर्जुन ने बनाया चुनौती देने का मन
वनवास से लौटने के बाद पांडवों ने इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी बनाया और एक भव्य महल बनवाया. पांडवों की नई राजधानी देखने आए नारद मुनि ने युधिष्ठिर को ‘राजसूय यज्ञ’ करने की सलाह दी. नारद मुनि के जाने के बाद युधिष्ठिर ने अपने भाइयों और कृष्ण से परामर्श किया. कृष्ण ने कहा, “एक राजा है जिसे पराजित करना कठिन होगा. उसका नाम है जरासंध, जो गिरिव्रज में शासन करता है. मेरे मामा कंस का विवाह जरासंध की पुत्रियों से हुआ था. कंस को मारने के कारण वह मुझे अपना दुश्मन मानता है.  मेरा जरासंध से युद्ध में 18 बार आमना-सामना हो चुका है. जरासंध के कारण ही हमें मथुरा से द्वारका भागना पड़ा.” कृष्ण की बात सुनकर युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ का विचार त्यागने का मन बना लिया. लेकिन भीम और अर्जुन जरासंध को चुनौती देने के पक्ष में थे. आखिरकार मन ना होने के बावजूद युधिष्ठिर उनकी बात मान गए.

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जरासंध से लड़ने गए अर्जुन, भीम और कृष्ण
युधिष्ठिर के राजी होने के बाद कृष्ण, अर्जुन और भीम मगध के लिए प्रस्थान कर गए. तीनों सरयू नदी पार कर मिथिला से होते हुए और फिर गंगा नदी पार करके मगध पहुंचे. जरासंध की राजधानी में पहुंचने से पहले उन्होंने स्नातकों की तरह वेश धारण किया, अर्थात ब्राह्मण छात्र जिन्होंने अभी-अभी अपनी शिक्षा पूरी की है. नगरवासियों ने उन्हें देखा और आश्चर्य में एक-दूसरे से फुसफुसाए कि न जाने ये कौन हैं. छद्मवेशधारी पांडव और कृष्ण ने जरासंध के महल में प्रवेश मुख्य द्वार से नहीं, बल्कि चतुराई से दीवार फांदकर किया. अंदर आकर उन्होंने राजा से मिलने की मांग की. जरासंध अपनी प्रार्थना में डूबा था. पर उसने अतिथियों को जलपान कराने का निर्देश दिया और उनसे प्रतीक्षा करने का अनुरोध किया. अतिथियों ने जलपान से इनकार कर दिया और अधीरता से उसकी प्रतीक्षा करने लगे.

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जरासंध ने भीम से युद्ध की भरी हामी
जरासंध आधी रात के बाद अपनी पूजा से उठा और तीनों को देखकर सवाल किया- तुम्हारे शरीर छात्रों और पुजारियों की तरह नरम नहीं लगते. तुम्हारे कंधों पर धनुष के भार के चिह्न हैं. तुम तो अस्त्र चलाने वाले लोग लगते हो. आखिर तुम तीनों हो कौन? इस पर कृष्ण ने कहा, “वास्तव में हम तुम्हारे शत्रु हैं. मैं कृष्ण हूं और ये पांडव भाई अर्जुन और भीम हैं. हम तुम्हें चुनौती देते हैं तुम हममें से जिससे चाहो लड़ सकते हो.” जरासंध ने उनकी ओर तिरस्कार से देखा और उपहास उड़ाते हुए कहा, “मैं तुम्हें पहले ही अठारह बार पराजित कर चुका हूं और अब तुम्हारे साथ फिर लड़ने के लिए तैयार नहीं हूं. अर्जुन अभी भी एक बालक की तरह दिखता है. केवल भीम ही इतना बड़ा और शक्तिशाली है कि मुझसे मुकाबला कर सकता है. मैं उसी से युद्ध करूंगा.”

भीम-जरासंध के बीच चली 14 दिन लड़ाई 
भीम और जरासंध के बीच मल्लयुद्ध शुरू हो गया. दोनों ने एक-दूसरे को आंका. भीम ने जरासन्ध पर छलांग लगाई और उसे चित करने का प्रयास किया, लेकिन वह आसानी से बच गया. दिन-रात की परवाह किए बिना दोनों 14 दिन तक लड़ते रहे. फिर भीम ने बाजी मारनी शुरू कर दी थी. जैसे ही जरासंध थकने लगा भीम ने उसे हवा में उठा लिया और सौ बार घुमाकर जमीन पर पटक दिया. इसके बाद भीम ने उसे फिर पकड़ा और उसके पैरों को तब तक जोर से खींचता रहा जब तक कि जरासंध के शरीर के दो हिस्से नहीं हो गए. कृष्ण और अर्जुन ने आश्चर्य से देखा कि राजा बीच से दो भागों में बंट गया था. हालांकि दोनों हिस्से चमत्कारिक रूप से एक-दूसरे की ओर वापस खिंचे, रक्त, त्वचा और मांसपेशियां मिलकर फिर एक हो गए और जरासंध फिर उठ खड़ा हुआ.

भीम ने इस तरह किया जरासंध का वध
कृष्ण यह देख पूरा मामला समझ गए. उन्होंने पास के पेड़ से एक पत्ता तोड़ा. भीम का ध्यान आकर्षित करके उन्होंने पत्ते को दो भागों में फाड़ा और दोनों टुकड़ों को विपरीत दिशाओं में फेंक दिया. भीम समझ गए कि कृष्ण उसे क्या बताना चाह रहे हैं. अपनी सारी शक्ति इकट्ठी कर वह एक बार फिर जरासंध पर टूट पड़े. भीम ने उसके पैर पकड़े और उसे बीच से फाड़ दिया. फिर जरासंध के खंडित शरीर के दोनों हिस्सों को एक-दूसरे से जितना संभव हो सके, दूर फेंक दिया. उसके शरीर के दोनों हिस्से थोड़ी देर के लिए तड़पे और फिर ठंडे हो गए. इस तरह सबसे शक्तिशाली राजा जरासंध की मृत्यु हुई.

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जरासंध अगर महाभारत में होता तो क्या होता?
जरासंध अगर महाभारत के युद्ध में होता तो इसका परिणाम कुछ और हो सकता था. लेकिन श्रीकृष्ण जानते थे कि महाभारत का युद्ध होना है. इसलिए उन्होंने महान योद्धाओं में एक जरासंध को भी खत्म करने की युक्ति सोच ली थी. क्योंकि जरासंध को किसी और तरीके से नहीं मारा जा सकता था. क्योंकि दो टुकड़ों में होने के बाद भी वह जुड़कर जिंदा हो जाता था. इसलिए विपरीत दिशा में फेंके जाने के कारण उसके शरीर के टुकड़े फिर से जुड़ नहीं पाए.

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