धृतराष्ट्र पत्नी गांधारी की दासी पर आसक्त हो गए थेधृतराष्ट्र का ये दासी पुत्र धर्म और न्याय के रास्ते पर चलने वाला थाद्रौपदी के चीरहरण का उसने किया था विरोध
महाभारत में दासियों से दो पुत्र हुए. एक विदुर थे और दूसरे थे युयुत्सु, जिनके पिता धृतराष्ट्र थे. जब गांधारी गर्भवती थीं, तब वह एक दासी के करीब आ गए और युयुत्सु का जन्म हुआ. उसकी ना दुर्योधन से बनती थी और ना ही कौरवों से. जब महाभारत की लड़ाई हुई तो वह पांडवों की ओर आ गए. फिर युधिष्ठिर के राजा होने पर उनके मंत्री भी बने.
हालांकि कहना चाहिए कि महाभारत काल में दासियों की सामाजिक स्थिति नीची ही होती थी. उनके साथ संबंधों को अक्सर गुप्त रखा जाता था. उन्हें वैध नहीं माना जाता था. कई बार राजाओं या उच्च वर्ग के पुरुषों द्वारा दासियों के साथ संबंध वंशवृद्धि के लिए किए जाते थे. हालांकि धृतराष्ट्र का मामला अलग ही था.
दासी गांधारी की देखभाल के लिए रखी गई
जब गांधारी गर्भवती थीं, तब उनकी सेवा के लिए एक दासी रखी गई थी. धृतराष्ट्र उस पर आसक्त हो गए. हालांकि महाभारत से जुड़ी कहानियों में उन्हें कामांध कहा गया है. धृतराष्ट्र ने इस दासी के साथ संबंध बना लिए, जिसके परिणामस्वरूप युयुत्सु का जन्म हुआ.

युयुत्सु महाभारत का एक ऐसा पात्र है जिसने महाभारत में धर्म और न्याय का प्रतीक बनकर अपनी पहचान बनाई. वह कृष्ण का भी प्रिय था और युधिष्ठिर का भी. (image generated by Leonardo AI)
युयुत्सु का लालन पालन राजकुमार की तरह हुआ
जब युयुत्सु का जन्म हुआ तो गांधारी को धृतराष्ट्र का रवैया बहुत नागवार गुजरा लेकिन युयुत्सु का जन्म हो चुका था, लिहाजा उनका पालन-पोषण राजकुमार की तरह हुआ. उन्हें राजकुमार की तरह सम्मान, शिक्षा और अधिकार मिला, क्योंकि वे धृतराष्ट्र के पुत्र थे. हालांकि, कौरवों के अन्य पुत्रों की तुलना में उन्हें हमेशा ही थोड़ा अलग माना जाता था.
दुर्योधन और कौरव हमेशा खराब व्यवहार करते थे
लेकिन युयुत्सु के संबंध बचपन से ही कौरवों से कभी अच्छे नहीं रहे. दुर्योधन और उसके भाई हमेशा उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते थे. फिर युयुत्सु को अधर्म के काम पसंद नहीं थे. वह अक्सर उनका विरोध करते थे. युयुत्सु ने तब भी दुर्योधन और कौरवों का विरोध किया था, जब पांसे के खेल में कपट करने के बाद भरी सभा में द्रौपदी के चीरहरण की कोशिश की गई थी.

युयुत्सु ने महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर के शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि उसने अपने कौरव भाइयों को युद्ध से रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं माने. (image generated by Leonardo AI)
दुर्योधन से खासकर कभी नहीं बनी
दुर्योधन बहुत अहंकारी था. वह किसी को भी अपने से श्रेष्ठ नहीं मानता था. युयुत्सु के साथ भी हमेशा दुर्व्यवहार करता था. कौरवों को इसलिए भी उससे इर्ष्या होती थी, क्योंकि वह भी धृतराष्ट्र का पुत्र था. उसे भी राजकुमार जैसा सम्मान मिलता था.
महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया
महाभारत युद्ध के समय पहले तो युयुत्सु ने कौरवों का साथ दिया लेकिन फिर युधिष्ठिर के समझाने पर पांडवों का साथ देने का फैसला किया. इससे कौरव बहुत नाराज हो गए. इन कारणों से युयुत्सु और कौरवों के बीच हमेशा तनावपूर्ण संबंध रहे.
हालांकि युयुत्सु को कौरवों के दल में सबसे बुद्धिमान माना जाता था. ना केवल उसने महाभारत युद्ध का विरोध किया था बल्कि पांडवों को उनका राज्य लौटाने की बात भी की थी. वह ऐसा धृतराष्ट्र का बेटा था, जो हमेशा ही दुर्योधन के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाता था लेकिन हर दुर्योधन और कौरव उसको चुप करा देते थे.
पांडवों की जीत में खास भूमिका निभाई
युयुत्सु ने पांडवों का साथ इसलिए भी दिया क्योंकि वह धर्म और न्याय में विश्वास रखते थे. उन्हें दुर्योधन के अधर्म के काम पसंद नहीं थे. युयुत्सु ने महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने युद्ध के दौरान पांडवों की सेना के लिए रसद और हथियारों की व्यवस्था की.
महाभारत के 18 जीवितों में शामिल
18 दिन चले इस महायुद्ध में केवल 18 योद्धा ही जीवित बचे. दुर्योधन का ये सौतेला भाई भी इस महायुद्ध के बाद जीवित बच गया. महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद पांडवों को हस्तिनापुर का राजपाट मिला. तब युधिष्ठिर ने राजपाट संभाला और राजा बने. तब उन्होंने युयुत्सु को अपना मंत्री बनाया. युयुत्सु को बहुत शांत और न्यायप्रिय बताया गया है.
बाद में परीक्षित के संरक्षक बने
जब युधिष्ठिर राजपाट त्यागकर महाप्रयाण करने लगे तो उन्होंने परीक्षित को राजा बनाया. तब युयुत्सु को ही परीक्षित का संरक्षक बनाया गया. युयुत्सु ने इस दायित्व को भी जीवन के आखिरी समय तक पूरी निष्ठा से निभाया. जब गांधारी और धृतराष्ट्र की जंगल की भयंकर आग में मृत्यु हो गई तो युयुत्सु ने ही उनका अंतिम संस्कार किया.
FIRST PUBLISHED : January 7, 2025, 18:32 IST