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महाभारत : पांडव कैसे रखते थे कठिन व्रत, क्या खाते थे, पांचों भाइयों में किसके लिए कठिन होता था उपवास


हाइलाइट्स

पांडव भाई बहुत कठिन उपवास रखते थेभीम को जरूर व्रत रखने में दिक्कत होती हैव्रत तोड़ने के समय उनका भोजन कैसा होता था

व्रत रखना प्राचीन भारतीय परंपरा का अनिवार्य हिस्सा रहा है. पहले तो हमारे जीवन में हर खासमौके, त्योहार और महत्वपूर्ण दिनों पर उपवास रखा ही जाता था. क्या आपको मालूम है कि महाभारत काल में पांडव कैसे उपवास रखते थे. अपना व्रत कैसे तोड़ते थे. उस दिन उनका आहार क्या होता था. क्या उस दौर में भी नवरात्र का व्रत होता था.

इस खबर में हम आपको ये भी बताएंगे कि पांचों पांडव भाइयों में किसे व्रत रखने में सबसे ज्यादा दिक्कत होती थी. उसने कई बार व्यास ऋषि से शिकायत भी की कि इतने कठिन व्रत क्यों रखे जाते हैं, इसमें क्या रास्ता निकल सकता है.

वैसे तो पहले हम आपको बता दें कि पांडवों ने महाभारत में नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से उपवास नहीं किया था, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन उन्होंने एकादशी जैसे अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक अवसरों पर कठोर उपवास प्रथाओं का पालन किया. हालांकि नवरात्रि के दौरान उपवास की अवधारणा हिंदू परंपराओं में हमेशा से प्रचलित है.

पांडव भाइयों के लिए सबसे कठिन व्रत निर्जला एकादशी का होता था. (image generated by meta ai)

किस दिन उपवास रखते थे
पांडव भाई विशेष रूप से एकादशी के दिन उपवास करते थे. उनका सबसे उल्लेखनीय उपवास निर्जला एकादशी है, इसका ना केवल खास महत्व है बल्कि पालन करने के लिए कठोर दिशा-निर्देश भी होते हैं.

सबसे कठिन व्रत क्या होता था
निर्जला एकादशी का उपवास ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के दौरान होता है, आमतौर पर मई के अंत या जून की शुरुआत में. यह सबसे चुनौतीपूर्ण उपवासों में एक होता है. इसमें व्रत करने वाले एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक यानि 24 घंटे तक भोजन और पानी दोनों का परहेज करते हैं. पांडव ऐसा ही व्रत रखते थे.

भीम को क्यों दिक्कत होती थी
जब भी ये पांडव भाई रखते थे तो सबसे ज्यादा दिक्कत भीम को होती थी. जो अपनी भारी भरकम खुराक और पेटू होने के लिए जाने जाते थे. इसका जिक्र महाभारत में भीम और उनके दादा श्रील व्यासदेव के बीच बातचीत में मिलता है. श्रील व्यासदेव को वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता है. ये व्रत वो सभी महर्षि व्यासदेव के निर्देश के आधार पर ही रखते थे.

व्रत खोलने के बाद आमतौर पर सभी पांडव भाई और द्रौपदी साधारण भोजन ही करते थे. (image generated by meta ai)

भीम ने उनसे अपनी बड़ी खुराक के कारण जमकर भूख लगने और इससे व्याकुल हो जाने की समस्या के बारे में बताया था. उन्हें तब भी वेदव्यास यानि महर्षि व्यास से ये सुनना पड़ा था कि ये खास व्रत उन्हें किसी तरह रखना ही चाहिए. क्योंकि इससे खास आध्यात्मिक लाभ होते हैं.

भगवान कृष्ण का ध्यान करते थे
इस दिन पांडव भगवान कृष्ण पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए प्रार्थना और ध्यान में लीन होते थे. वे अपने आध्यात्मिक संबंध को बढ़ाने के लिए पवित्र नामों का जाप करते थे और अनुष्ठान करते थे. इसमें वो पानी तक का सेवन नहीं करते थे.

व्रत को अगले दिन कैसे तोड़ते थे
इस उपवास को पारंपरिक रूप से द्वादशी में सूर्योदय के बाद साधारण भोजन के साथ तोड़ा जाता है, जिसमें आमतौर पर फल या हल्के शाकाहारी व्यंजन शामिल होते थे. नियमित खाने की आदतों में वापस आने के लिए भारी या गरिष्ठ भोजन से परहेज किया जाता है यानि इसमें तरह तरह के स्वादिष्ठ व्यंजनों से परहेज किया जाता था.
हिंदू धर्म में अब भी ये मान्यता है कि जो लोग पूरी ऋद्धा और आस्था से इस व्रत को करते हैं, वो पाप से मुक्त हो जाते हैं. आध्यात्मिक तरक्की मिलती है.

पांडव सामान्य तौर पर व्रत के बाद क्या खाते थे
महाभारत और अन्य ग्रंथों में जो संदर्भ इसे लेकर आया है, उसके अनुसार युधिष्ठिर इस व्रत के बाद पायसम यानि खीर पसंद करते थे, जो चीनी या गुड़ के साथ दूध में उबले चावल से बना एक मीठा व्यंजन होता था.
साथ में शशकुली खाई जाती थी, जो चावल या जौ से बना एक गोल पाई होती थी, जिसे मीठा करके घी में तला जाता है, जिसका उल्लेख भगवद गीता में किया गया है.
कृषर भी खाई जाती थी, जो खीर की तरह की मिठाई होती थी लेकिन पूरी तरह से मसले हुए चावल के साथ इलायची और केसर जैसे मसालों के साथ बनती थी. वो समवाय भी खाते थे, ये गेहूं के आटे और दूध से बनी मिठाई होती थी, जिसे घी में तला जाता है.
कई शाकाहारी व्यंजन पकाए जाते थे. चावल के साथ पकाए गए कीमा जैसे मांसाहारी खाद्य पदार्थ का भी संदर्भ मिलता है.

निर्वासन के दौरान पांडव व्रत खोलने के बाद क्या खाते थे
निर्वासन के दौरान पांडव फल और सब्जियां खाते थे. कभी-कभी मांस के लिए जानवरों का शिकार करते थे. उपवास के बाद खाए जाने वाले भोजन के प्रकार क्षत्रियों (योद्धाओं) के लिए अलग तरह के होते थे.

देवी दुर्गा की पूजा
पांडव देवी दुर्गा सहित उनके दिव्य विभिन्न रूपों की पूजा करते थे. महाभारत में, शक्ति और मार्गदर्शन के लिए दैवीय शक्तियों का आह्वान करने का उल्लेख है, जो नवरात्रि के दौरान की जाने वाली पूजा प्रथाओं के समान है.
पांडव अक्सर अपने जीवन में खासतौर पर संकट के समय में, दैवीय हस्तक्षेप की मांग करते थे. हालाँकि आधुनिक नवरात्रि उत्सवों की तरह उस समय सार्वजनिक उत्सवों का दस्तावेजीकरण दस्तावेजीकरण महाभारत, गीता या अन्य ग्रंथों में नहीं किया गया है.

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