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महाभारत युद्ध के खत्म होने के कितने दिनों बाद हुई भीष्म पितामह की मृत्यु, कितनी थी तब उनकी आयु


हाइलाइट्स

भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान पिता से मिला हुआ थामहाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला जबकि भीष्म ने दस दिन ही युद्ध लड़ाभीष्म को ये नाम उत्तराधिकार नहीं लेने और आजीवन ब्रह्मचर्य लेने से मिला

आमतौर पर लोगों को लगता है कि भीष्म पितामह का निधन महाभारत युद्ध के दौरान ही हो गया था लेकिन ऐसा नहीं है. इस विराट युद्ध के बाद भी वह महीने भर से ज्यादा से जिंदा रहे. बाद में उन्होंने खुद अपनी मृत्यु का दिन चुना और प्राण छोड़े. इस दौरान वह कहां रहे और क्या कर रहे थे, इसके बारे में कम लोग जानते होंगे.

गौरतलब है कि जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो भीष्म पितामह को दुर्योधन ने कौरवों की सेना का मुख्य सेनापति बनाया. उनकी अगुवाई में पहले 10 दिन का युद्ध लड़ा गया. युद्ध के दसवें दिन अर्जुन के बाणों से भीष्म पितामह बुरी तरह घायल हो गए. अर्जुन ने इतनी संख्या में तीर चलाए कि भीष्म के बाणों की एक शैय्या बन गई.

कितने दिन चला था महाभारत का युद्ध
महाभारत का युद्ध तो 18वें दिन ही खत्म हो गया लेकिन भीष्म पितामह बाण शैय्या पर घायल लेटे रहे. इस दौरान कौरव और पांडव ही नहीं बल्कि ऋषि मुनिन भी उनसे मिलने वहां आते रहे. उनसे मिलने आने वालों में महाऋषि नारद भी थे. जो अक्सर उनके पास आया करते थे. पांडव भी उनके पास युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद उनकी सेवा के लिए आते रहे. इस तरह हम कह सकते हैं कि भीष्म वो महान योद्धा थे, जिनकी मृत्यु महाभारत में नहीं हुई.

बाणशैय्या पर जितने दिन भीष्म पितामह लेटे रहे, उनके पास मिलने वालों का तांता लगा रहता था. (image generated by leonardo ai)

क्या थी उनकी प्रतिज्ञा
महाभारत के युद्ध में भी वह अर्जुन के बाणों से घायल होकर बाणशैय्या पर नहीं लेटते, अगर उनकी एक प्रतिज्ञा बीच में नहीं आती. उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि युद्ध के मैदान में वह किसी स्त्री के खिलाफ युद्ध नहीं करेंगे. इस कारण जब शिखंडी युद्ध में उनकी ओर बढ़ा, तो भीष्म ने अपने अस्त्र-शस्त्र त्याग दिए. निहत्थे खड़े हो गए. तब अर्जुने ने उनके ऊपर तीरों की बारिश कर दी.

कैसे मिला था उन्हें ये नाम
भीष्म को पितामह, गंगापुत्र और देवव्रत के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने अपने पिता की खुशी के लिए अपने सिंहासन पर आसीन होने के अपने जन्मसिद्ध अधिकार को त्याग दिया. साथ ही आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया. तभी उनके पिता शांतनु का विवाह सत्यवती से हो सका. उनकी इस प्रतिज्ञा ने उन्हें भीष्म बना दिया. पिता शांतनु से उन्हें जब तक चाहें तब तक जीने का वरदान मिला.

बाणों की ये शैय्या उनके लिए तीरों की बौछार करके अर्जुन ने बनाई थी. (image generated by leonardo ai)

बाणों की ये शैय्या उनके लिए तीरों की बौछार करके अर्जुन ने बनाई थी. (image generated by leonardo ai)

बाणशैय्या पर कितनी रातें बिताईं
लिहाजा जब महाभारत के युद्ध में भीष्म बुरी तरह घायल होकर जब बाण शैय्या पर लेटे तो उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे. उसके लिए शुभ दिन का इंतजार किया. उन्होंने बाणों की शैय्या पर 58 रातें बिताईं यानि महाभारत का युद्ध खत्म होने के 50वें दिन उन्होंने इच्छा के अनुसार शरीर त्यागा. उस दिन शुभ उत्तरायण ( शीतकालीन संक्रांति ) था.

क्या किया बाणशैय्या पर लेटे लेटे
क्या आपको मालूम है कि महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद उन्होंने बाण शैय्या पर लेटे लेटे किया क्या. युद्ध के बाद अपनी मृत्युशैया पर रहते हुए उन्होंने युधिष्ठिर को लगातार करीब एक महीने तक राजनेता के कर्तव्य और एक राजा के कर्तव्यों पर गहन और सार्थक बातें बताईं.

उन्हें ये भी बताया कि सही राजधर्म क्या होता है, शासन कैसे किया जाता है, उसमें किन नीतियों का पालन करना चाहिए. युधिष्ठिर लगातार उनके पास राजकाज की शिक्षा लेने के लिए आते रहे थे. महाभारत में कहा गया है कि उन्होंने मृत्यु के बाद मोक्ष हासिल किया.

कितनी बताई जाती है उनकी उम्र
भीष्म पितामह की मृत्यु के समय उनकी उम्र लगभग 128 वर्ष बताई गई है. यह जानकारी महाभारत में दी गई है. हालांकि उस समय की औसत आयु को देखते हुए 200 वर्ष तक जीना सामान्य माना जाता था.

भीष्म अपने समय और इतिहास के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में एक थे. करीब पांच पीढ़ियों के होने के बावजूद भीष्म इतने शक्तिशाली थे कि उस समय कोई भी जीवित योद्धा उन्हें हरा नहीं सकता था. युद्ध की शुरुआत में भीष्म ने किसी भी पांडव को न मारने की कसम खाई थी, क्योंकि वह उनसे बहुत प्यार करते थे, वह उनके दादा थे.

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