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यहां आधी रात को जागता है पूरा गांव, देवता निकलते हैं भ्रमण पर, लेकिन नहीं देख सकतीं महिलाएं

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Unique Tradition: नीलगिरि के सुंडट्टी गांव में आलमलाई रंगनाथर मंदिर का वार्षिक उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. इस परंपरा में सुबह 3 बजे विशेष अनुष्ठान होता है, जिसमें देवता की पूजा और गाय के दूध से अभिषेक शामिल …और पढ़ें

आधी रात को जागता पूरा गांव, देवता निकलते भ्रमण पर,लेकिन नहीं देख सकतीं महिलाएं

नीलगिरि का आलमलाई रंगनाथर मंदिर उत्सव

नीलगिरि: दक्षिण भारत का तमिलनाडु देश का एक ऐसा राज्य है, जो अपनी प्राचीन परंपराओं, समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और अनोखी रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है. यहां के मंदिर, त्यौहार और परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं और आज भी लोग इन्हें पूरे श्रद्धा भाव से निभाते हैं. बता दें कि नीलगिरि जिले में कोटागिरी के पास बसे सुंदर और प्राकृतिक दृश्यों से घिरे सुंडट्टी गांव में एक अनूठी परंपरा वर्षों से निभाई जा रही है. यहां आलमलाई रंगनाथर मंदिर का वार्षिक उत्सव बेहद धूमधाम से मनाया जाता है. हर साल इस उत्सव में सुबह 3 बजे विशेष अनुष्ठान होता है. मंदिर से भगवान को पूरे विधि-विधान के साथ गांव में लाया जाता है.

देवता की पारंपरिक पूजा
बता दें कि गांव के युवा पारंपरिक रीति-रिवाजों से देवता की पूजा करते हैं और फिर उन्हें मंदिर में वापस ले जाते हैं. इस दौरान पारंपरिक नृत्य, गीत और भव्य अन्नदान का आयोजन होता है.

गाय के दूध से अभिषेक
इस उत्सव की शुरुआत उस गाय के दूध से देवता के अभिषेक से होती है, जिसने हाल ही में बछड़े को जन्म दिया हो. इसके बाद ही मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खोले जाते हैं.

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पूर्वजों की परंपरा, बिना बदलाव जारी
यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और इसे बिना किसी बदलाव के निभाया जाता है.

महिलाएं नहीं देख सकतीं
हालांकि, इस उत्सव की एक अनोखी मान्यता यह है कि देवता को ले जाते और वापस लाते समय महिलाएं उन्हें नहीं देख सकतीं. केवल पुरुष ही इस प्रक्रिया में भाग लेते हैं.

नृत्य और उत्सव का समापन
बता दें कि उत्सव की समाप्ति पर भक्त नृत्य और गीतों के साथ आनंदित होते हैं. आलमलाई रंगनाथर मंदिर का यह उत्सव पूरे क्षेत्र में बेहद प्रसिद्ध है.

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