बूढ़ी दिवाली के खास मौके पर दीपक तो जलाए ही जाते हैं.इसके साथ में जलती हुई मशालें लेकर यह पर्व मनाया जाता है.
Budhi Diwali 2024 : हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा पर्व दीपावली हर साल धूमधाम से मनाया जाता है. कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को यह पर्व आता है. इस वर्ष तिथि को लेकर कुछ असमंजस की स्थिति भी बनी, जिसे बाद में विद्धानों ने सुलझाया लेकिन, क्या आपने किसी को एक महीने बाद दिवाली का पर्व मनाते हुए देखा है? यदि नहीं तो हम आपको बता दें कि ऐसी भी एक जगह है जहां 30 दिनों के बाद बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है.
दरअसल, हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में दिवाली का पर्व मनाया जाना बाकी है. सिरमौर के गिरिपार के कुछ क्षेत्र, शिमला के कुछ गांवों और कुल्लू के निरमंड में 4 दिसंबर दिन बुधवार को बूढ़ी दिवाली मनाई जाएगी. क्या है ये परंपरा और इसकी खासियत? आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से.
कैसे मनाया जाता है बूढ़ी दिवाली का पर्व?
बूढ़ी दिवाली के खास मौके पर दीपक तो जलाए ही जाते हैं. इसके साथ में जलती हुई मशालें लेकर यह पर्व मनाया जाता है. साथ ही लोग अपने यहां के लोक गीत भी गाते हैं और छोटे बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है. इस पर्व को 4 से 5 दिन तक धूमधाम से मनाया जाता है और ट्रेडिशनल डांस के साथ पकवान भी बनाए जाते हैं.
क्यों मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली?
किसी के भी मन में यह सवाल सबसे पहले आता है आखिर क्यों कोई एक महीने बाद दिवाली का पर्व मनाएगा. लेकिन, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर एक महीने बाद पहुंची थी क्योंकि यहां इन दिनों में जबरदस्त बर्फबारी होती है. तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है और लोग दिवाली की अगली अमावस्या को बूढ़ी दिवाली का पर्व मनाते हैं, जिसे गिरिपार में ‘मशराली’ के नाम से जाना जाता है.
बढ़ेचू नृत्य की परंपरा
बूढ़ी दिवाली के इस खास मौके पर यहां अपने क्षेत्रों के प्रसिद्ध और परंपरा से जुड़े नृत्य किए जाते हैं. यहां नाटियां, रासा, विरह गीत भयूरी, परोकड़िया गीत, स्वांग के साथ हुड़क नृत्य किया जाता है. वहीं कुछ गांवों में बढ़ेचू नृत्य भी किया जाता है. जबकि, कुछ गावों में रात में आग जलाकर बुड़ियात नृत्य किया जाता है और लोग एक दूसरे को बधाइ देकर सूखे व्यंजन वितरित करते हैं.
FIRST PUBLISHED : November 13, 2024, 10:02 IST