उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में स्थित नैमिषारण्य, भारत के प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है। इसे ‘तपस्थली’ और ‘तीर्थों का राजा’भी कहा जाता है. इसी पवित्र भूमि पर स्थित देवदेवेश्वर धाम एक ऐसा शिव मंदिर है, जो अपनी दिव्यता, पौराणिक महत्ता और चमत्कारी परंपराओं के कारण प्रसिद्ध है. श्रद्धालु मानते हैं कि यह मंदिर द्वापर युग में स्थापित हुआ था. यहां भगवान शिव स्वयं विराजमान हैं. देश विदेश से लोग भगवान शिव की आराधना करने के लिए आते हैं.इस मंदिर की मानता है कि हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है.
धार्मिक मान्यता और आस्था
देवदेवेश्वर धाम में पूजा-अर्चना करने से रोग, दुख और बाधाओं का नाश होता है. भक्तों का विश्वास है कि यहाँ जल चढ़ाने मात्र से भगवान शिव प्रसन्न होकर मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं.सावन के महीने में यहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं और रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप एवं शिवपुराण पाठ करते हैं.
मंदिर की विशेषता
देव देवेश्वर धाम की विशेषता है. यह दुनिया का एकमात्र ऐसा शिव धाम है जहां भगवान शिव अकेले निवास करते हैं. यहां माता पार्वती और नंदी विराजमान नहीं है.
नैमिषारण्य का धार्मिक परिप्रेक्ष्य
नैमिषारण्य स्वयं हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ है. कहा जाता है कि यहाँ 88,000 ऋषियों ने सप्तऋषि यज्ञ किया था.स्कंद पुराण और महाभारत में नैमिषारण्य का विस्तार से उल्लेख है. इसी भूमि पर व्यास मुनि ने महाभारत का पाठ किया था.इसलिए देवदेवेश्वर धाम का इस क्षेत्र में होना इसकी पवित्रता को और भी बढ़ा देता है.
सावन माह का मेला
इस दौरान लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करने आते हैं. पूरा क्षेत्र “हर हर महादेव” के जयघोष से गूंज उठता है. भक्ति संगीत, भजन मंडलियाँ, रुद्राभिषेक और झांकियाँ इस पर्व को भव्य बनाती हैं.
महाशिवरात्रि उत्सव
इस दिन मंदिर को फूलों से सजाया जाता है. रातभर भक्त उपवास रखते हैं और शिवलिंग पर दूध, शहद, बेलपत्र चढ़ाते हैं. यह माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव स्वयं इस धाम में प्रकट होते हैं.







