Friday, September 26, 2025
25.5 C
Surat

रामायण के इंजीनियर नल और नील: रामसेतु निर्माण की कहानी


Last Updated:

Ramayan: भगवान राम जब श्रीलंका पर रावण के लिए युद्ध के निकले तो रास्ते में समुद्र के कारण सवाल खड़ा हुआ कि अब सेना इसको कैसे पार करे, तब वानर सेना के दो उधमी बंदरों ने इंजीनियर बनकर एक खास पुल रामसेतु बनाया.

वो दो उधमी वानर, जो बने रामसेतु के इंजीनियर,लगाए ऐसे पत्थर जो पानी पर तैरते थे

हाइलाइट्स

  • नल और नील ने रामसेतु का निर्माण किया
  • नल और नील को ऋषियों का श्राप वरदान बना
  • रामसेतु 30 मील का पुल 5 दिनों में बना

भगवान राम जब अपनी वानर सेना लेकर लंका पर चढ़ाई करने वाले थे तो रास्ते में एक समुद्र आ गया. लंबा चौड़ा समुद्र. अब ये समस्या थी कि रावण के खिलाफ लड़ाई के लिए राम की ये विशाल सेना कैसे लंका पहुंचे. तब वानर सेना के दो उधमी वानर उनके काम आए. वह उनकी सेना के इंजीनियर बने. कैसे उन्होंने समुद्र के ऊपर ऐसा रास्ता तैयार कर डाला, जो पत्थरों से बना हुआ था. जिसके पत्थर पानी में डूबते ही नहीं थे.

दरअसल दो उधमी वानरों को ऋषि मुनियों द्वारा दिया गया एक शाप आगे जाकर वरदान बन गया. इसी के जरिए उन्होंने वो पुल बना दिया, जिस पर चढ़कर राम की सेना समुद्र पार करके लंका पहुंच सकी. वहां उन्होंने रावण की सेना को हराया. अगर ये दो नटखट वानर नहीं होते तो राम की सेना के लिए लंका तक पहुंचना मुश्किल हो जाता. क्या आपको मालूम है कि ये दोनों बंदर कौन थे और राम के संकटमोचक इंजीनियर बन गए. फिर वो क्यों ऐसा बड़ा निर्माण क्यों नहीं कर पाए.

वानर सेना के दो इंजीनियर वानरों नल और नील ने रामसेतु नहीं बनाया होता है तो श्रीराम के लिए अपनी सेना को लंका तक पहुंचाना मुश्किल हो जाता. नल और नील दोनों रामायण काल के बड़े इंजीनियर थे. उन्होंने जांच मुआयना और सर्वे के बाद समुद्र पर पत्थर बिछाकर ये पुल बांधा था. राम की वानर सेना का जब रावण की हार के बाद युद्ध खत्म हुआ तो उन दोनों ने क्या किया.

राम की विशाल सेना के दो ऐसे वानरों ने इंजीनियर बनकर असंभव को संभव कर दिया, जो बचपन में बहुत उधमी और उत्पाती थे (image generated by leonardo ai)

सेटेलाइट्स की रिपोर्ट्स और मौजूदा जांच-पड़ताल के साथ वैज्ञानिक भी कहते हैं कि रामेश्वर से श्रीलंका तक एक पुल बनाया गया था. क्योंकि समुद्र के पानी के अंदर पत्थरों की एक बड़ी लकीर लंका तक पहुंचती देखी गई.

ये पुल कई किलोमीटर का था. तब इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं होती थी. तब नल और नील जैसे दो वानरों ने ऐसा कैसे कर लिया. वैसे इन वानरों का पिता विश्वकर्मा को माना गया, जिन्हें देवताओं का वास्तुविद् और भवन निर्माण का विशेषज्ञ माना जाता था.

ये पुल कई किलोमीटर का था. तब इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं होती थी. तब नल और नील जैसे दो वानरों ने ऐसा कैसे कर लिया  (generated by leonardo ai)

कौन थे नल और नील
दोनों वानर यानि नल और नील कौन थे. हिंदू महाकाव्य रामायण में, नील को नीला भी कहा गया है. वह राम की सेना में एक वानर सरदार थे. वह राजा सुग्रीव के अधीन वानर सेना के प्रधान सेनापति थे. श्रीराम ने जो युद्ध रावण के खिलाफ लड़ा. उसमें नील सेना का नेतृत्व कर रहे थे.

राम क्यों हो गए थे समुद्र से नाराज
वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि जब श्रीराम समुद्र से रास्ता देने का अनुरोध करते हैं. तो समुद्र की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. राम हो जाते हैं. नाराज होकर समुद्र पर वाण वर्षा करते हैं. ये सूखने लगता है. तब वरुण सामने आकर कहते हैं कि आपकी सेना में दो ऐसे वानर हैं, पुल बना सकते हैं. वो इस कला में एक्सपर्ट हैं. वो अगर समुद्र पर पत्थर रखेंगे तो ये डूबेगा नहीं.

कैसे फिर नल और नील पुल बनाते हैं
नल और नील विश्वकर्मा के पुत्र होने के कारण वास्तुकार की विशेषता रखते थे. इसके बाद फिर पुल का निर्माण शुरू होता है. वानर सेना नल और नील को पत्थर देती जाती है. जिस पर श्रीराम का नाम लिखा जाता है. ये पत्थर समुद्र में डूबते नहीं. दोनों भाई तेजी से लंका तक एक पुल का निर्माण करते हैं. इस पुल को बनाने में पत्थरों के साथ भारी वृक्षों की लकड़ियों का भी इस्तेमाल होता है.

भौगोलिक प्रमाणों से यह पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू मार्ग से आपस में जोड़ता था ( generated by leonardo ai)

30 मील का पुल 5 दिनों में बना
नल और नील 05 दिनों में 30 मील यानि दस योजन का पुल पूरा कर देते हैं. राम और उनकी पूरी सेना इसी से लंका पहुंचती है. फिर युद्ध को जीतने के बाद इसी से वापस लौटती है. हालांकि रामायण के कुछ संस्करणों में इसका मुख्य श्रेय नल को दिया गया है और नील को मुख्य सहायक बताया गया है. लेकिन कुछ रामायणों में कहा गया है कि दोनों भाई मिलकर ये पुल तैयार कर डालते हैं.

एक श्राप जो वरदान बन गया
नल और नील को लेकर एक बात कही जाती है कि दोनों ही बचपन में बहुत शरारती थे. ऋषियों द्वारा पूजी गईं मूर्तियों को पानी में फेंक देते थे.एक उपाय के रूप में ऋषियों ने उन्हें एक श्राप दिया कि वो पानी में जो भी फेकेंगे वो डूबेगा नहीं लिहाजा ऋषियों का ये श्राप उनके लिए वरदान बन गया.

नल और नील नाम के दो वानर समुद्र पर पुल बांधने के लिए राम की सेना के इंजीनियर बने. (image generated by leonardo ai)

हनुमान क्यों हो गए नाराज
राम सेतु बनाते समय हनुमान इन दोनों वानर इंजीनयिरों से नाराज हो गए थे. रामायण के तेलुगु और बंगाली रूपांतरों के साथ-साथ जावानीस छाया नाटक में कहा गया है कि हनुमान को ये खराब लगता है कि नल “अशुद्ध” बाएं हाथ से उनके द्वारा लाए पत्थरों को लेता है. फिर उन्हें समुद्र में रखने के लिए “शुद्ध” दाहिने हाथ का उपयोग करता है. तब राम हनुमान को शांत करते हैं. समझाते हैं कि श्रमिकों की परंपरा बाएं हाथ से लेने और वस्तु को दाईं ओर रखने की है.

लंका में सेना के लिए आवास भी बनाया
कम्ब रामायण ये भी बताती है कि नल लंका में राम की सेना के लिए रहने के लिए अस्थाई आवास भी बनाते हैं. ये रामायण कहती है कि नल रामसेना के लिये सोने और रत्नों के तम्बुओं का एक नगर बनाया, अपने लिए बांस और लकड़ी और घास की क्यारियों का एक साधारण सा घर.

नल और नील ने युद्ध भी लड़ा
रावण और उसकी राक्षस सेना के खिलाफ राम के नेतृत्व में युद्ध में नल और नील दोनों युद्ध लड़ते हैं. रावण के पुत्र मेघनाथ द्वारा चलाए गए बाणों से नल गंभीर तौर पर घायल होते हैं लेकिन बच जाते हैं. फिर कई राक्षसों का वध करते हैं.

युद्ध के बाद नल और नील सुग्रीव के मंत्री बन जाते हैं. वह राज्य के आवास के लिए प्रबंध का काम देखते हैं. (image generated leonardo ai)

युद्ध के बाद वो क्या किया
युद्ध के बाद नल और नील सुग्रीव के मंत्री बन जाते हैं. वह राज्य के आवास के लिए प्रबंध का काम देखते हैं. हालांकि अपने बाद के जीवन में वो वास्तुविद के तौर पर कोई बड़ा काम तो नहीं करते लेकिन मंत्री के तौर पर लगातार उपयोगी सलाह सुग्रीव को देते हैं. बाद में जब श्रीराम अयोध्या में अश्वमेघ यज्ञ करते हैं तो नल और नील दोनों अश्व की रक्षा के लिए उसके साथ जाते हैं. कुछ जगहों पर नील को विश्वकर्मा का पुत्र बताया गया तो नल को उनका साथी लेकिन कुछ जगहों पर दोनों भाई के तौर पर दिखाया गया है.

रावण के खिलाफ युद्ध के बाद नल और नील मुख्य तौर पर किष्किंधा में राजा सुग्रीव के साथ राजकाज के काम में शामिल हो जाते हैं. लेकिन गाहे – बगाहे अयोध्या श्रीराम के पास जरूरी आयोजनों में जाते हैं. हालांकि इसके बाद उन्होंने अपने जीवन में राम सेतु जैसा निर्माण कभी नहीं किया.

ये पुल मन्नार की खाड़ी को पाक जलडमरूमध्य से अलग करता है. कहा जाता है कि 15वीं सदी तक लोग पैदल इस पुल से दूरी पार कर लेते थे. बाद में तूफानों ने इसे गहरा कर दिया. ये भी कहा जाता है कि इसे एक चक्रवात ने तोड़ नहीं दिया. इस सेतु का पहले उल्लेख सबसे वाल्मीकि की रामायण में हुआ.

homeknowledge

वो दो उधमी वानर, जो बने रामसेतु के इंजीनियर,लगाए ऐसे पत्थर जो पानी पर तैरते थे

Hot this week

Topics

Aaj ka Rashifal 27 September 2025 todays horoscope । 27 सितम्बर 2025 का दैनिक राशिफल

आज का मेष राशिफल (Today’s Aries Rashifal) गणेशजी कहते...
spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img