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लड़कियां बनती हैं दूल्हा-दुल्हन, खेलती हैं पाति, गणगौर चौथ का दिन होता है सबसे खास

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Gangaur 2025: खंडवा और निमाड़ क्षेत्र में गणगौर महोत्सव पारंपरिक ‘पाती खेल’ और फूलपाती झांकियों के साथ उल्लासपूर्वक मनाया जाता है. यह पर्व ग्रामीण संस्कृति, लोकगीतों और सामाजिक एकता का अनूठा संगम है.

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इस खेल में गांव के सभी घरों में पहुंचा जाता है 

हाइलाइट्स

  • निमाड़ में गणगौर महोत्सव उल्लासपूर्वक मनाया गया.
  • पाती खेल में लड़कियों ने लड़कों का रूप धारण किया.
  • फूलपाती झांकियों ने महोत्सव को और मनोरम बनाया.

गणगौर का पर्व: निमाड़ की मिट्टी में जब रंग-बिरंगे कपड़े, लोक गीतों की गूंज और कन्याओं की हंसी मिलती है, तब वहां का लोक पर्व गणगौर अपने पूरे शबाब पर होता है. यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि परंपरा, आस्था और संस्कृति का उत्सव है, जिसमें गांव से लेकर शहर तक हर कोई पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ भाग लेता है.

गणगौर का पर्व विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है, जहां महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. लेकिन इस पर्व को खास बनाता है यहां की एक अनोखी परंपरा – ‘पाती खेल’, जिसे केवल निमाड़ की धरती ही अपने दिल से निभा सकती है.

‘पाती खेल’ में लड़कियां लड़कों का रूप धारण कर खेलती हैं. इसमें दूल्हा-दुल्हन की झांकी निकाली जाती है, सिर पर कलश रखकर बालिकाएं गणगौर माता के लिए फूल और जल चढ़ाती हैं. यह जल गंगाजल के समान पवित्र माना जाता है और उसी से ईसर-गणगौर को स्नान करवाया जाता है. इस आयोजन के दौरान पारंपरिक लोकगीत, झालरिया और कबाड़े—सब एक साथ गूंजते हैं.

फूलपाती आयोजन इस पर्व की एक और शानदार झलक है, जहां महिलाएं सजी-धजी बारात की तरह बाना निकालती हैं. बैंड-बाजों की धुन, सजावटी झांकियां और धणियर राजा व रणुबाई की स्तुति इस आयोजन को और भी मनोरम बना देती हैं.

रंजना परदेशी, जो वर्षों से इस परंपरा से जुड़ी हैं, बताती हैं कि “गणगौर चौथ का दिन सबसे खास होता है, जब पाती खेल पूरे हर्षोल्लास से आयोजित होता है. छोटी बच्चियों को देवी-देवताओं के रूप में सजाया जाता है और यही बचपन की मासूमियत, इस पर्व को जीवंत बनाती है.”

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