देवघर: पितृपक्ष शुरू हो चुके हैं. यह समय पितरों के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने का होता है. मान्यता है कि इस दौरान पितर धरती पर आते हैं. लेकिन, बहुत लोगों तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान में अंतर पता नहीं होता. ऐसे में पितरों के निमित्त कर्म में कई बार हम गलती भी कर बैठते हैं. इस मुश्किल को आसान करते हुए देवघर के ज्योतिषाचार्य ने बताया कि किस समय किसे श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना चाहिए.
देवघर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित नंदकिशोर मुद्गल ने Bharat.one को बताया कि 18 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है. पितृपक्ष में अपने पितरों के नाम से तर्पण अवश्य करना चाहिए. क्योंकि, ये 15 दिन पितर धरती पर वास करते हैं. मान्यता है कि इस दौरान पितरों के परिजन जब अपने पूर्वजों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध या पिंडदान करते हैं तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. लेकिन, इसके पहले इन तीनों की विधियों को समझना होगा.
पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का क्या महत्व
श्राद्ध का अर्थ: श्राद्ध का अर्थ होता है कि मृत्यु के पश्चात 10 दिनों के बाद श्रद्धा पूर्वक किया गया कर्म श्राद्ध कहलाता है. इसमें पितरों के निमित्त लोगों को भोजन कराया जाता है एवं अन्य पारंपरिक कर्म किए जाते हैं. श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होते हैं. पितृपक्ष के दौरान पूर्वज की तिथि पर ब्राह्मणों को श्राद्ध भोज कराना चाहिए. इससे पितर प्रसन्न होते हैं.
पिंडदान का अर्थ: पिंडदान का अर्थ होता है पिंड का दान करना यानी मृत पूर्वज को मोक्ष की प्राप्ति देना. इसमें जौ या आटे की गोल आकृति बनाई जाती है, जिसे पिंड कहा जाता है. इसे दान किया जाता है. मान्यता है कि इस भोजन को पितृ गाय, कौवा, कुत्ता, चींटी या देवता के रूप में आकर ग्रहण करते हैं. भोजन के पांच अंश निकाले जाते हैं. इससे पूर्वज मुक्त होते हैं. गया में पिंडदान किया जाता है. जो गया नहीं जा सकते, वे किसी नदी के किनारे या पीपल वृक्ष के नीचे पिंडदान कर सकते हैं.
तर्पण का अर्थ: तर्पण तीन प्रकार के होते हैं देव, ऋषि और मनुष्य. हमें साल भर तर्पण करना चाहिए. अगर साल भर नहीं कर पाते तो कम से कम पितृपक्ष में पितरों के नाम से तर्पण अवश्य करना चाहिए. तर्पण में हाथ में तिल, जल, कुश और अक्षत लेकर पितर से प्रार्थना करते हैं कि वह जल ग्रहण करें. इससे पितृ प्रसन्न होते हैं. पितृपक्ष के दौरान तर्पण क्रिया को घर पर ही किया जा सकता है. इसे करने से पितर प्रसन्न होते हैं. इस सामान्य रूप से कोई भी पुत्र अपने पूर्वजों के लिए कर सकता है.
FIRST PUBLISHED : September 18, 2024, 15:42 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Bharat.one व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.