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संभल में खुदाई के दौरान मिला कुआं, जागृत अवस्था में है सतयुगकालीन चतुर्मुख कूप, जानें सनातन धर्म में कुएं का महत्व



हाइलाइट्स

संभल में खुदाई के दौरान जागृत अवस्था में चतुर्मुखी कूप मिला.ये कुआं सतयुगकालीन बताया जा रहा है.

Sambhal Satyugkalin Chaturmukhi Well: उत्तर प्रदेश के संभल में प्राचीन कुओं की खोज में प्रशासन को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है. जहां खुदाई में मंगलवार को एक सतयुगकालीन चतुर्मुख कुआं जागृत अवस्था में मिला है, जिसे संरक्षित किया जा रहा है. इस कुएं की गहराई लगभग 8 फीट बताई जा रही है. जिसको लेकर धार्मिक मान्यता है कि इस कुएं के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है. यहां तक कि इस कुएं का उल्लेख स्कंद पुराण के शंभल माहात्म्य के सातवें अध्याय में भी मिलता है. यह भी जानकारी मिली है कि इस कुएं के पास स्थित नक्शे पर हरिहर मंदिर होने के भी प्रमाण पाए गए हैं, यह चतुर्मुख कुआं आलमसराय क्षेत्र में स्थित है. आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से कुएं का सनातन धर्म में क्या महत्व है?

संभल में मिला जागृत कूप
उत्तर प्रदेश का प्रमुख शहर संभल, अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों के लिए जाना जाता है. यहां खुदाई में मिला “चतुर्मुख कूप” खास महत्व रखता है. यह कूप, जो सतयुगकालीन माना जा रहा है, जो स्थानीय लोगों के लिए आस्था और श्रद्धा का केन्द्र है. कहा जा रहा है कि इस कूप के दर्शन से पापों का नाश होता है. संभल के आलमसराय क्षेत्र में स्थित यह चतुर्मुख कूप धार्मिक मान्यता के साथ-साथ ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है.

सनातन धर्म में कुएं का महत्व
सनातन धर्म में कुएं का महत्व केवल जल स्रोत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे धर्म, आस्था और सांस्कृतिक धरोहर के साथ जोड़ कर देखा जाता है. हिंदू धर्म में कुआं पूजन की एक खास परंपरा रही है. यह परंपरा पुराने समय से चली आ रही है. कुआं को जीवनदायिनी के रूप में देखा जाता है क्योंकि यह पानी का स्रोत है और पानी जीवन के लिए जरूरी होता है.

कुआं पूजन की परंपरा
कुआं पूजन की परंपरा विशेष रूप से विवाह और संतान प्राप्ति के अवसर पर की जाती है. विवाह के समय लड़के की मां कुआं पूजन करती हैं. यह पूजा एक खास विधि से की जाती है, जिसमें कई पूजन सामग्री जैसे हल्दी, बताशे, आटा, और अन्य वस्तुएं होती हैं. इस पूजा के दौरान दूल्हा सात बार कुएं की परिक्रमा करता है और हर बार एक सींक कुएं में डालता है. यह प्रक्रिया उसकी मां के आशीर्वाद का प्रतीक मानी जाती है.

इसके अलावा, संतान प्राप्ति के लिए भी कुआं पूजन किया जाता है. विशेष रूप से, जब घर में बच्चे का जन्म होता है, तो मां और बच्चे को गुनगुने पानी से स्नान कराकर कुएं की पूजा की जाती है. इस पूजा में परिवार की महिलाएं भाग लेती हैं और मंगल गीत गाते हुए कुएं के पास पहुंचती हैं. वे प्रार्थना करती हैं कि जैसे कुएं में पानी की कमी नहीं होती, वैसे ही घर में सुख, समृद्धि और संतान का आशीर्वाद बना रहे और जच्चा के स्तनों में दूध की कमी ना हो.

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