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हिंदुओं का नेपाल भी मनाता है दीवाली लेकिन एकदम अलग तरीके से, राम से नहीं होता इसका रिश्ता


हाइलाइट्स

नेपाल की दीवाली को तिहार कहते हैं, ये जानवरों और देवताओं को समर्पितलक्ष्मी की पूजा जरूर होती है लेकिन रीतिरिवाजों में होता है अंतरनेपाल में ये दशईं के बाद दूसरा सबसे बड़ा त्योहार लेकिन कुछ डिफरेंट

दुनिया के दो देशों को विशुद्ध हिंदू देश कहा जाता है. क्योंकि इन देशों में हिंदुओं की तादाद सबसे ज्यादा है. एक देश है भारत और दूसरा नेपाल. दोनो पड़ोसी देश हैं. बल्कि नेपाल में हिंदुओं की आबादी का प्रतिशत दुनिया में सबसे ज्यादा है. दीवाली दोनों देशों में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन नेचर में ये दोनों त्योहार दोनों देशों में एकदम अलग है. भारत में इस त्योहार का मुख्य रिश्ता अगर भगवान राम से है तो नेपाल में बिल्कुल नहीं. दोनों देशों में इस त्योहार का रीतिरिवाज एकदम अलग है. बस इसमें कॉमन दो ही बातें हैं एक तो लक्ष्मी की पूजा और दूसरी रोशनी के साथ आतिशबाजी.

दोनों देशों में दीवाली आमतौर पर पांच दिनों की मनाई जाती है. भारत में दीवाली धनतेरस से शुरू होती है और गोवर्धन पूजा, भाईदूज के साथ खत्म हो जाती है. नेपाल में दीवाली पशु पूजा से शुरू होती है और भाई टीका से खत्म होती है.

नेपाल में हिंदुओं की आबादी 80.6 फीसदी है जबकि वहां कुल आबादी 3 करोड़ है. कुछ सालों पहले तक नेपाल घोषित तौर पर हिंदू राष्ट्र था. अब नए संविधान के बनने और लागू होने के साथ नेपाल का दर्जा सेकुलर देश का हो गया, जहां हिंदू वर्चस्व है. भारत में हिंदुओं की आबादी 78.9 फीसदी है. देश की कुल जनसंख्या 140 करोड़. भारत भी बहुसंख्या हिंदू धर्म के साथ सेकुलर देश है.

तिहार कौवे, कुत्ते, गाय और बैल जैसे जानवरों पर केंद्रित है, जबकि भारतीय दिवाली भगवान राम के अयोध्या लौटने पर केंद्रित है.

नेपाल में दिवाली को तिहार के नाम से जाना जाता है, इसमें 5 दिनों तक चलने वाला जीवंत उत्सव मनाया जाता है. हर दिन अलग-अलग जानवरों और देवताओं का सम्मान किया जाता है. नेपाल में दशईं के बाद ये सबसे बड़ा त्योहार है. दशईं भारत के नवरात्रि से लेकर दशहरा तक मनाए जाने वाले त्योहार का नेपाली संस्करण है. इस बार नेपाल की दीवाली 1 नवंबर से लेकर 5 नवंबर तक मनाई जा रही है जबकि भारत की दीवाली 29 अक्टूबर से 3नवंबर तक हो रही है.

कैसे मनाई जाती है नेपाल की 5 दिनों की दीवाली
आइए जानते हैं कि नेपाल की दीवाली यानि तिहार उत्सव पांच दिनों तक कैसे मनाया जाता है
तिहार आमतौर पर अक्टूबर के अंत और नवंबर की शुरुआत के बीच होता है, जो नेपाली महीने कार्तिक के साथ मेल खाता है. इसमें पांचों दिन अगर रीतिरिवाज होते हैं. घरों और दुकानों को देवी लक्ष्मी को आमंत्रित करने के लिए तेल के दीयों (दीयो), मोमबत्तियों और बिजली की रोशनी से सजाया जाता है, जो धन और समृद्धि का प्रतीक है. तिहार में रोज अलग-अलग जानवरों को याद करके उन्हें खुश करने की कोशिश करते हैं.

इस त्यौहार की शुरुआत कौओं को भोजन खिलाकर होती है, जिन्हें मौत का दूत माना जाता है. लोग दुर्भाग्य को दूर करने के लिए पक्षियों को भोजन देते हैं.

पहला दिन (काग तिहार) – कौवों को समर्पित, जिन्हें चावल खिलाया जाता है क्योंकि उन्हें मृत्यु का दूत माना जाता है.
दूसरा दिन (कुकुर तिहार) – कुत्तों का उत्सव, जिन्हें मृत्यु के देवता यम के संरक्षक के रूप में सम्मानित किया जाता है. कुत्तों को मालाओं से सजाया जाता है और उन्हें विशेष व्यंजन दिए जाते हैं.
तीसरा दिन (गाय तिहार) – ये गायों पर केंद्रित होता, कृषि में उनके महत्व के लिए पूजा की जाती है. इस दिन लक्ष्मी की पूजा भी की जाती है
चौथा दिन (गोरू पूजा) – बैलों का सम्मान किया जाता है. गोवर्धन पूजा होती है. नेपाल के नेवार समुदाय के लिए इस दिन के साथ नए साल की शुरुआत होती है.
पांचवां दिन (भाई टीका) – भाइयों और बहनों के बीच के बंधन का जश्न मनाते हैं. बहनें अपने भाइयों के माथे पर रंगीन टीका लगाती हैं. उनके स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं. भाई उपहारों के साथ जवाब देते हैं.

गाय तिहार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि गाय धन का प्रतीक है और नेपाली संस्कृति में इसे पवित्र पशु माना जाता है

तिहार में इसे किस तरह सेलिब्रेट करते हैं
देउसी भैलो – तिहार के दौरान, बच्चों और युवा वयस्कों के समूह मिठाई और पैसे के बदले में पारंपरिक गीत गाते हुए घरों में जाते हैं, जो कैरोलिंग के समान है रंगोली – मेहमानों और देवताओं का स्वागत करने के लिए प्रवेश द्वार पर चावल, आटे या फूलों की पंखुड़ियों से बने रंगीन पैटर्न बनाए जाते हैं.

भोज और उपहार – परिवार तरह तरह व्यंजनों वाले भोजन तैयार करते हैं. उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं, जिससे सामुदायिक बंधन मजबूत होते हैं. पारंपरिक खाद्य पदार्थ उत्सव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं

पटाखों पर प्रतिबंध
हालांकि नेपाल में भी सुरक्षा वजहों से पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, तब भी तिहार की पांचों रातों के दौरान आतिशबाजी आम है. नेपाल की दीवाली या तिहार में भगवान राम की कोई भूमिका नहीं होती है. तिहार मनुष्यों और जानवरों के बीच सामंजस्य पर ज़ोर देते हैं. इसे यमपंचक भी कहते हैं. इसमें मृत्यु के देवता यम और उनकी बहन यमुना का भी सम्मान किया जाता है.

नेपाल में दीवाली का आखिरी दिन भाईटीका का होता है.  बहनें अपने भाइयों के कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं, उनके माथे पर रंगीन टीका लगाती हैं. उपहारों का आदान-प्रदान होता है.

भारत की दीवाली में क्या – क्या
भारत की दीवाली धनतेरस से शुरू होती है. लक्ष्मी पूजा और भाई दूज जैसे अनुष्ठान इसमें अलग अलग दिन होते हैं. ये त्योहार मुख्य तौर पर भगवान राम के अयोध्या लौटने को सेलिब्रेट करता है तो धनधान्य के लिए लक्ष्मी की पूजा करता है.

नेपाल में भगवान राम कितने अहम
नेपाल में भगवान राम को बेशक मान्यता और सम्मान है लेकिन उनकी पूजा भारत की तरह प्रमुखता से नहीं होती. काठमांडू घाटी ऐतिहासिक रूप से शिव और शक्ति के विभिन्न रूपों जैसे देवताओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है. सीता को स्थानीय देवी के रूप में ज्यादा सम्मान दिया जाता है.
भारत की तुलना में नेपाल में भगवान राम को समर्पित प्राचीन मंदिर कम हैं. हालांकि हाल के वर्षों में, नेपाल में भगवान राम की पूजा को बढ़ावा देने के लिए आंदोलन हुए हैं.

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