दरभंगा: मिथिलांचल में कुशी अमावस्या का विशेष महत्व है, जहां इस दिन कुश उखाड़ने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस परंपरा को कुशोत्पाटन कहा जाता है. कुश, जो दिखने में बिल्कुल घास की तरह होता है, लंबा और पतला होता है. इसे उखाड़ने से पहले मंत्र का उच्चारण किया जाता है, जिससे इस पूरी विधि में छिपे रहस्य और मान्यताओं का पता चलता है.
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष, डॉ. कुणाल कुमार झा, इस परंपरा पर प्रकाश डालते हुए बताते हैं कि कुश, जो देखने में साधारण घास जैसा लगता है, दरअसल धार्मिक और वैदिक कार्यों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस कुश का उपयोग पूरे वर्ष भर सभी तरह के दैविक और पितृ कर्मों में किया जाता है.
कुश उखाड़ने से पहले एक विशेष मंत्र का उच्चारण किया जाता है
“कुशाग्रह वस्ते रुद्रा कुश मध्य तू केशवह
कुश मुले वसे ब्रह्म कुशानमें देही मेदिनी”
इस मंत्र में पृथ्वी (मेदिनी) से विनती की जाती है कि वह हमें कुश प्रदान करे, जिसके अग्रभाग में रुद्र, मध्य भाग में भगवान विष्णु, और मूल भाग में ब्रह्मा का निवास होता है. यह कुश धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे लेकर ही भाद्र पूर्णिमा के बाद से अगस्त ऋषि का तर्पण किया जाता है, जो पितर पक्ष के प्रारंभ का प्रतीक होता है.
कुशोत्पाटन का महत्व और परंपरा
मिथिलांचल में कुशी अमावस्या का विशेष महत्व होता है. इस दिन लोग जिस घास या झाड़ी को साधारण समझते हैं, उसमें छिपा होता है कुश, जिसे मिथिलांचल के लोग आसानी से पहचान लेते हैं. कुशोत्पाटन के लिए एक विशेष मुहूर्त, दिन, और समय निर्धारित होता है, और इसका उपयोग पूरे साल धार्मिक, वैदिक, और तांत्रिक कार्यों में किया जाता है.
इस वर्ष, कुशोत्पाटन 2 सितंबर 2024 को मनाया जाएगा, जो कि सोमवार को पड़ता है. मिथिलांचल में इस परंपरा को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, और इस दिन कुश उखाड़ने का एक विशेष महत्व होता है. कुशी अमावस्या के दिन की यह परंपरा मिथिलांचल की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आज भी पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ मनाई जाती है.
FIRST PUBLISHED : September 1, 2024, 09:28 IST
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