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24 करोड़ की ये मूर्ति बन रही है श्रद्धा का केंद्र; बनने में लगे 4 साल! जानिए इसकी अद्भुत विशेषताएं…


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Indore News : इंदौर में बनी 11 फीट लंबी, 21 टन वजनी और 24 करोड़ की अष्टधातु से निर्मित भगवान विष्णु की प्रतिमा महाराष्ट्र के शहादा तीर्थ में स्थापित होगी. यह् मूर्ति चार साल में तैयार हुई है. प्राण-प्रतिष्ठा 14 जनवरी को होगी, इससे पहले…और पढ़ें

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अष्टधातु

अष्टधातु मूर्ति 

इंदौर. मध्यप्रदेश के इंदौर में बनी भगवान विष्णु श्री नारायण के शेषनाग पर लेटे अष्टधातु से बनी मूर्ति को महाराष्ट्र के शहादा तीर्थ में लगाया जाएगा. वैसे तो यह मूर्ति इंदौर के सिंदोड़ा गांव में लोकेशानंद महाराज के आश्रम में तैयार हुई है. लेकिन इसका शहादा में स्थापित होने से पहले इंदौर में शोभायात्रा के जरिए श्रध्दालुओ को दर्शन कराए गए.

दरअसल ग्यारह फीट लंबी और इक्कीस टन भारी मूर्ति को राजवाड़ा से रथ में सवार कर गांधी हॉल तक शोभायात्रा निकाली गई. इस दौरान भक्त, राजवाड़ा पर दर्शन कर, श्री नारायण की भक्ति में पैदल चले. गुरूवार को राजवाड़ा पर दर्शन देने के बाद अष्टधातु की यह मूर्ति गांधी हॉल से राऊ-पीथमपुर होते हुए धामनोद के लिए रवाना हुई. राजवाड़ा में भगवान विष्णुजी की प्रतिमा भक्तों के दर्शन के लिए रखी गई है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु केवल भगवान की एक झलक पाने के लिए आए.

सेंधवा और पानसेमल होते हुए 11 जनवरी को पहुंचेगी शहादा 
भक्त लाइन लगाकर भगवान की प्रतिमा के दर्शन कर रहे हैं, जबकि पंडितों द्वारा मंत्रों का उच्चारण किया जा रहा है. रथ का पहला पड़ाव धामनोद में है. अब सेंधवा और पानसेमल होते हुए 11 जनवरी को शहादा (नंदुरबार) धाम पहुंचेगी. यहां नारायण भक्ति पंथ ने श्री नारायण पुरम तीर्थ बनवाया जा रहा हैं. यहां केरल के पद्मनाभ स्वामी मंदिर की तरह शेषशायी नारायण श्रीहरि विष्णु की मूर्ति लगाई जा रही हैं. 14 जनवरी को लोकेशानंदजी महाराज की देखरेख में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा होगी. यहां भव्य मंदिर का काम चल रहा है.

24 करोड़ की है प्रतिमा
पंच धातु की यह प्रतिमा 24 करोड़ की है. इसे तैयार होने में ही साढ़े चार साल का समय लगा. भगवान की यह प्रतिमा 21 टन वजनी है. भगवान विष्णु की प्रतिमा 11 फीट लंबी है. जिसका वजन 21 टन है. श्री नारायण भक्ति पंथ के प्रमुख लोकेशानंद महाराज ने बताया कि यह प्रतिमा पंचधातु की है. जिसे इंदौर में बनाया गया है. शास्त्रों में कहा गया है कि मिट्टी की प्रतिमा की पूजा का एक गुना फल तो कांस्य की प्रतिमा की पूजा का दस गुना फल मिलता है. वहीं पाषाण की प्रतिमा का सौ गुना फल मिलता है, लेकिन धातु की जो प्रतिमा होती है, उसकी पूजा का अनंत गुना फल मिलता है. कलयुग में लोगों के पास इतना समय नहीं है कि वह अनंत गुना फल के लिए अनंत गुना प्रयत्न करता रहे.

चार साल में बनी इक्कीस टन की मूर्ति
भगवान का ये स्वरूप इसलिए पंचधातु में बनाया है, ताकि भक्तों को बहुत शीघ्र फल प्रदान हो. प्रतिमा का तीन से चार भागों में निर्माण हुआ है. सालभर मिट्टी में मॉडल तैयार किया गया. फिर फायबर में मॉडल बनाया. इसके बाद जयपुर में इसकी कास्टिंग की गई. देखा जाए तो मुख्य रूप से मध्यप्रदेश और राजस्थान में इसका मुख्य काम हुआ है. कास्टिंग होने के बाद प्रतिमा यहां आई. यहां भी ढ़ाई सालों तक प्रतिमा की फिनिशिंग का काम किया गया. यह नारायण के स्वरूप में है. इस तरह इस प्रतिमा को तैयार होने में करीब 4 साल लग गए.

तीनों देव हैं मौजूद
महाराज ने बताया कि यह प्रतिमा अपने आप में अनोखी है क्योंकि इसमें ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों है. जहां एक ओर नारायण एक पुष्प से भगवान महादेव का पूजन कर रहे है तो वहीं दूसरी ओर ब्रह्मा जी उनकी नाभी में है. भगवान के शीश की तरफ शेषनाग है. उनकी चरणों में माता लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान है. भगवान की प्रतिमा के समक्ष गरुड़ जी की प्रतिमा भी दिव्य है. गुरुड़ जी भगवान के नित्य सेवक है. उनकी दृष्टि भगवान की तरफ है. गरुड़ जी की प्रतिमा में अष्ट नाग है. इसमें से एक ही नाग, गरुड़ जी की आंखों में देख रहा है. वह उनके भावों और विचारों को पड़ता है कि गरुड़ की कहां जाने वाले है. ये सातों नागों को दिशा-निर्देश देते है.

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