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300 साल पुराने मंदिर में बिहारी जी बने मनिहारी, यहां साल में एक बार इस भेष में होते हैं दर्शन 


सागर: द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाएं सुनकर आज भी लोगों के मन प्रसन्न हो जाते हैं. उन्हीं बाल लीलाओं को आज भी मंदिरों में झांकी के रूप में दिखाया जाता है कि कैसे भगवान श्रीकृष्णा राधाजी से मिलने बरसाना जाते थे. अलग-अलग तरह के भेष रखकर उनसे मिलने का बहाना ढूंढते थे. कभी वह राधाजी को चूड़ियां पहनाने के लिए मनिहारी का भेष रखते तो कभी गुदनारी बनकर राधाजी के घर पहुंच जाते थे. कभी वैद्य का रूप धारण कर लेते थे.

मिनी वृंदावन कहे जाने वाले सागर के बड़ा बाजार इलाके में बड़ी संख्या में भगवान श्रीकृष्ण के अलग-अलग रूप में मंदिर हैं. जहां सावन के महीने में अलग-अलग झांकियां प्रदर्शित की जा रही हैं. करीब 300 साल पुराने श्री देव अटल बिहारी मंदिर में एकादशी पर बिहारी जी मनिहारी के भेष में श्रद्धालुओं को दर्शन देते नजर आए. सैकड़ों की संख्या में महिलाएं रात में मंदिर पहुंचीं. महिलाओं द्वारा यहां पर स्त्री सौंदर्य की सामग्री लाई जाती है जो बिहारी जी को अर्पित की जाती है. इसमें चूड़ियां, बिंदी, बेंदी, कंगन, महाबर, कंघी, दर्पण जैसी चीज़ें हैं. इस रूप में बिहारी जी के दर्शन करना महिलाओं के लिए काफी सौभाग्यशाली माना जाता है.

300 साल पुराना मंदिर
श्री देव अटल बिहारी मंदिर के पुजारी महेंद्र पाराशर बताते हैं कि प्रेम जी महाराज और अमित पंडित जी द्वारा यह परंपरा शुरू की गई थी, जो आज भी चल रही है. यह भगवान श्रीकृष्णा और राधाजी के प्रेम को दर्शाने वाली झांकी है. साल में केवल एक दिन सावन के महीने में एकादशी पर बिहारी जी इस रूप में दर्शन देते हैं. यह करीब 300 साल पुराना मंदिर है. आज बड़ी संख्या में महिलाएं दर्शन कर रही हैं. यह झांकी भगवान श्रीकृष्णा और राधा जी के प्रेम को दर्शाता है.

वृंदावन की कुंज गलियों जैसी भक्तों की भीड़
सागर के मिनी वृंदावन कहे जाने वाले बड़ा बाजार क्षेत्र में शुक्रवार को पवित्रा एकादशी के उपलक्ष्य में सड़कों पर वृंदावन की कुंज गलियों जैसी भक्तों की भीड़ रही. इस दौरान एक दर्जन से अधिक कृष्ण मंदिरों में भगवान ने कई रूपों में भक्तों को दर्शन दिए. वहीं, श्री देव बांके राघव जी मंदिर में फूल झूला सजाया गया. इसमें वृन्दावन से मोगरा, गुलाब और जरबेरा के फूल व हरी पत्तियां बुलाकर झूला सजाया गया तो श्रीदेव अटल बिहारी जी सरकार मंदिर में राधे-राधे मंडल के भजनों पर रसिक भक्त झूमते रहे. श्रीदेव रसिक बिहारी जी मंदिर में भगवान ने शिव-पार्वती का रूप रखा तो हर-हर महादेव के जयघोष से मंदिर परिसर गूंजा. श्रीदेव द्वारिकाधीश मंदिर में केर के वृक्ष के छिलके से सजे झूले में ठाकुर जी बैठे.

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