Friday, September 26, 2025
25.5 C
Surat

450 साल पुराने एमपी के मंदिर की अनसुनी कहानी, रीवा राजघराने की मां कालिका से गहरी भक्ति, जानिए रोचक इतिहास


नवरात्रि 2025. भारत में कई ऐसे दैवीय स्थल और दिव्य धाम हैं, जिनके अलग-अलग किस्से और कहानियां हैं जो इन्हें और भी ज्यादा अद्भुत और अकल्पनीय बनाते हैं. एक ऐसा ही दिव्य धाम मध्य प्रदेश के रीवा में स्थित है. यहां पर 450 साल पुराना मां कालिका का रानी तालाब धाम है. इस धाम से जुड़े कई रोचक किस्से हैं, जिससे इस धाम की मान्यताएं और बढ़ जाती है. शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के समय इस धाम में आस्था, विश्वास, आराधना और भक्ति का विशाल सैलाब उमड़ता है. सिद्धि प्राप्ति के लिए भक्त यहां 9 दिनों तक देवी की आराधना करते हैं.

नवरात्रि में सजा मां कालिका का दिव्य दरबार
रीवा के रानी तालाब में स्थित मां कालिका देवी के मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है. 450 वर्ष पुराने मां कालिका मंदिर की मान्यता है कि ज्योतिष गणना पर आधारित इस सिद्धपीठ में नवरात्रि में आराधना से लोगों को सिद्धि प्राप्त होती है. नवरात्रि के दिनों में लगातार यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है. इसके अलावा साल के 365 दिन श्रद्धालु इस अलौकिक धाम में आकर मां कालिका के चरणों में अपना शीश झुकाते है. मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

प्रतिमा की स्थापना से जुड़ा है रोचक किस्सा
मां कालिका की प्रतिमा स्थापना के पीछे एक रोचक किस्सा बताया जाता है कि तकरीबन 450 साल पहले यहां जंगल हुआ करता था. उस समय घुमक्कड़ समुदाय के लोग बैलगाड़ी पर सवार होकर इसी रास्ते से गुजरते थे. उनके पास देवी की एक दिव्य प्रतिमा थी, जिसके बारे में मान्यता थी कि यह जहां रख दी जाएगी वहीं हमेशा के लिए स्थापित हो जाएगी. घुमक्कड़ समुदाय के लोग यहां रात्रि विश्राम के लिए रुके थे.

पहाड़ नुमा जिस टीले पर मां कालिका की प्रतिमा विराजमान है. उसी स्थान पर एक इमली का वृक्ष हुआ करता था. घुमक्कड़ समुदाय के लोगों ने विश्राम के दौरान भूलवश अपने साथ लाई हुई मां कालिका की प्रतिमा को उसी इमली के वृक्ष पर टिका कर रख दिया. विश्राम के बाद जब वह उठकर जाने लगे तब उन्होने मां की प्रतिमा को उठाया मगर प्रतिमा नहीं उठी. तब से लेकर आज तक मां कालिका यह अद्भुत प्रतिमा उसी स्थान पर विराजमान है.

मंदिर के प्रधान पुजारी के मुताबिक “इस मन्दिर का निर्माण महाराजा भाव सिंह की धर्मप्रिय महारानी अजब कुमारी ने कराया था. दरअसल, एक बार लवाना प्रजाति के लोग यहां ठहरे थे. पानी की कमी को देखते हुए उन्होंने मां कालिका मंदिर के ठीक सामने विशाल तालाब की खुदाई कर डाली. उसके कुछ दिनों बाद ही रक्षाबंधन का पर्व आया और रीवा रियासत की राजकुमारी कुंदन कुमारी पूजा-अर्चना करने मंदिर आईं. वे पानी से लबालब तालाब को देखकर प्रसन्न हो गईं. लावाना प्रजाति के लोगों ने महारानी से मांग की कि आप हमारी कलाइयों में राखी बांध दीजिए. महारानी ने राखी बांधी और लावाना लोगों ने महारानी को वो तालाब भेंट कर दिया. तभी से इस धाम को रानी का तालाब कहा जाने लगा.”

संतान प्राप्ति की लिए रघुराज सिंह ने किया था अनुष्ठान
रीवा राजघराने से जुड़ी एक और रोचक कहानी है. दरअसल, महाराजा विश्वनाथ सिंह के पुत्र रघुराज सिंह को संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी. तब राजपरिवार ने यहां पूजा-अर्चना की और माता से आशीर्वाद में एक संतान की मांग की. कहा जाता है कि मां ने महाराज के स्वप्न में आकर कहा था कि मां (मेरा) का श्रृंगार करो, तुम्हें अवश्य संतान प्राप्ति होगी. इसके बाद महाराजा विश्वनाथ सिंह ने हीरे से जड़ित स्वर्ण आभूषण बनवाएं और मां कालिका के चरणों मे अर्पित किए. जिसके कुछ समय बाद ही महाराजा की मनोकामना पूर्ण हुई और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.

राजघराने से आते थे मां के श्रृंगार के लिए आभूषण
इस घटना के बाद से प्रत्येक शारदीय और चैत्र नवरात्रि में रीवा रियासत के किले से देवी के श्रृंगार के लिए आभूषण आते थे. यह परंपरा कई वर्षों तक चली थी. बाद में प्रशासन ने मंदिर की देखरेख का जिम्मा संभाल लिया और अब हर साल नवरात्रि के मौके पर प्रशासन की तरफ से मां कालिका के श्रृंगार के लिए गहने लाए जाते हैं. बाद में उसे प्रशासन की देखरेख में वापस जमा कर दिया जाता है. नवरात्रि के दिनों में यहां भव्य मेले का भी आयोजन होता है.

मंदिर के पुजारीके अनुसार “लगभग 70-80 साल पहले इन आभूषणों को चोरों ने चुरा लिया था, जिससे उन्हें दिखाई देना बंद हो गया था और वो मंदिर के बाहर नहीं जा पाए थे. सुबह पुजारी के पहुंचने पर चोरों ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए वो गहने वापस लौटा दिए. जिसके बाद पुजारी ने चोरों को माफ करने के लिए मां से प्रार्थना की. तब जाकर उनकी रोशनी वापस आई.”

रानी तालाब के बीचों-बीच शिवजी का भव्य और प्राचीन मंदिर स्थित है. कहा जाता है जहां देवी की जाग्रत मूर्ति होगी वहां जलाशय, वटवृक्ष, नीम और पीपल के वृक्ष जरूर होंगे. ज्योतिष गणना के अनुसार, यहां उत्तर में हनुमान जी और शंकर जी, उत्तर पूर्व के कोने में शिवलिंग, दक्षिण में गणेश जी, पूर्व में काल भैरव हैं. इसलिए इस स्थान को सिद्ध पीठ का दर्जा मिला है. इसके अलावा मंदिर के गर्भगृह में मां कालिका की मूर्ति के साथ भगवान सूर्य सहित शीतला माता, अन्नपूर्णा माता, भैरवी, गणेश जी व हनुमान जी विराजे हैं. वहीं, मां कालिका की रक्षा के लिए आई दो देवियों में से एक दाएं में खोरवा माई और बाएं में घेंघा माई विराजी हैं.

Hot this week

नवरात्रि की चतुर्थी तिथि पर सुनें मां कूष्मांडा की कथा, सब संकट हर लेंगी मातारानी

https://www.youtube.com/watch?v=LYAvfJrrcnIधर्म Maa Kushmanda Katha: नवरात्रि की चतुर्थी तिथि 26...

Shardiya navratri 2025 fifth day of maa kushmanda know puja vidhi muhurat and mantra bhog and maa kushmanda aarti and importance of kushmanda devi...

शारदीय नवरात्रि 2025 का पांचवा दिन, मां कुष्‍मांडा:...

Topics

नवरात्रि की चतुर्थी तिथि पर सुनें मां कूष्मांडा की कथा, सब संकट हर लेंगी मातारानी

https://www.youtube.com/watch?v=LYAvfJrrcnIधर्म Maa Kushmanda Katha: नवरात्रि की चतुर्थी तिथि 26...

Shardiya navratri 2025 fifth day of maa kushmanda know puja vidhi muhurat and mantra bhog and maa kushmanda aarti and importance of kushmanda devi...

शारदीय नवरात्रि 2025 का पांचवा दिन, मां कुष्‍मांडा:...
spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img