अहोई अष्टमी व्रत का मुख्य उद्देश्य संतान की दीर्घायु, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त करना है. यह व्रत खासकर माताओं द्वारा किया जाता है, विशेषकर उन माताओं के लिए जिनके बच्चे हैं. इस दिन माता अहोई की पूजा की जाती है, जो बच्चों की सुरक्षा और उनके उज्ज्वल भविष्य का आशीर्वाद देती हैं. महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और संध्या के समय कथा सुनकर पूजा करती हैं.
पूजा का समय और विधि
पंडित उमाशंकर मिश्रा ने Local18 को बताया कि अहोई अष्टमी व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, और यह करवा चौथ के चार दिन बाद आता है. इस दिन महिलाएं चौकी पर कलश स्थापित करके माता अहोई और भगवान गणेश की पूजा करती हैं. शाम को अहोई माता की कथा सुनी जाती है और पूजा के बाद तारों को जल अर्पित किया जाता है.
व्रत का पालन और भोग
पंडित उमाशंकर मिश्रा ने कहा कि यह व्रत संतान की दीर्घायु और समृद्धि के लिए किया जाता है. महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत करती हैं और सामूहिक रूप से एकत्र होकर कथा और पूजा करती हैं. पूजा के दौरान माता को हलवा-पूड़ी का भोग लगाया जाता है. तारे को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और भोजन करती हैं.
अहोई अष्टमी और करवा चौथ का संबंध
पंडित उमाशंकर मिश्रा ने बताया कि जैसे करवा चौथ में चंद्रमा को अर्घ्य देकर महिलाएं व्रत तोड़ती हैं, वैसे ही अहोई अष्टमी में संतान के लिए तारे को अर्घ्य दिया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत का बहुत महत्व होता है. माना जाता है कि जो कोई भी इसका पालन करता है उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है. साथ ही जीवन के कष्ट भी दूर होते हैं.
FIRST PUBLISHED : October 23, 2024, 11:01 IST
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