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Buddhist funeral traditions। बौद्ध धर्म की रस्में


5 Precepts of Buddhism : बौद्ध धर्म को अक्सर ध्यान, करुणा और शांति से जोड़कर देखा जाता है, लेकिन यह धर्म केवल ध्यान तक सीमित नहीं है. इसमें जीवन से लेकर मृत्यु तक हर पड़ाव के लिए स्पष्ट सोच और परंपराएं मौजूद हैं. खासतौर पर मृत्यु को लेकर बौद्ध धर्म का नजरिया बाकी धर्मों से काफी अलग माना जाता है. यहां मौत को डर, दुख या अंत के रूप में नहीं देखा जाता, बल्कि इसे जीवन की एक अगली यात्रा की शुरुआत माना जाता है. बौद्ध अनुयायियों का मानना है कि इंसान का शरीर अस्थायी है, जबकि चेतना आगे बढ़ती रहती है. इसी सोच का असर उनकी अंतिम संस्कार की परंपराओं में भी साफ दिखता है. कहीं दाह संस्कार किया जाता है, तो कहीं आकाशीय दफन जैसी परंपरा निभाई जाती है. इन सभी रस्मों का मकसद एक ही होता है-मृत व्यक्ति की चेतना को शांत रखना और उसे आगे की यात्रा के लिए सही माहौल देना.

इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि बौद्ध धर्म में अंतिम संस्कार कैसे होता है, पंचशील और त्रिशरण का क्या महत्व है, और मृत्यु के बाद किन रस्मों का पालन किया जाता है. यह जानकारी सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन को समझने का एक अलग नजरिया भी देती है.

बौद्ध धर्म में मृत्यु को कैसे देखा जाता है
बौद्ध धर्म में मृत्यु को जीवन का स्वाभाविक हिस्सा माना जाता है. यहां यह धारणा नहीं है कि मृत्यु सब कुछ खत्म कर देती है. माना जाता है कि मृत्यु के बाद चेतना एक नई अवस्था में प्रवेश करती है. इसलिए मरते समय व्यक्ति का मन शांत होना बहुत जरूरी समझा जाता है.

इसी कारण बौद्ध परंपरा में मृत्यु के समय रोना-पीटना, शोर-शराबा या डर का माहौल बनाने से बचा जाता है. परिवार और भिक्षु मिलकर ऐसा वातावरण बनाते हैं, जिसमें मरने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से शांत रह सके.

त्रिशरण का महत्व
बौद्ध धर्म की एक अहम प्रक्रिया त्रिशरण है. त्रिशरण का मतलब है तीन चीजों की शरण लेना-बुद्ध, धम्म और संघ. यह केवल मृत्यु के समय ही नहीं, बल्कि जीवन के कई मौकों पर बोला जाता है.

अंतिम समय में त्रिशरण का पाठ इसलिए किया जाता है ताकि व्यक्ति का मन भरोसे और स्थिरता में रहे. इसे किसी डर से नहीं, बल्कि आत्मिक सहारे के रूप में देखा जाता है. इसमें व्यक्ति यह स्वीकार करता है कि वह सही मार्ग पर चलना चाहता है.

भिक्षु और आम लोग एक साथ बोलते हैं:
“मैं बुद्ध की शरण लेता हूं,
मैं धम्म की शरण लेता हूं,
मैं संघ की शरण लेता हूं.”

यह पाठ किसी डर से नहीं, बल्कि भरोसे से बोला जाता है. इसका भाव यह होता है कि इंसान अपने जीवन को सही दिशा में रखना चाहता है.

पंचशील: जीवन और मृत्यु दोनों से जुड़ा नियम

पंचशील बौद्ध धर्म के पांच सरल नियम हैं, जिन्हें आम इंसान भी आसानी से अपना सकता है. ये नियम किसी सख्त कानून की तरह नहीं, बल्कि जीवन को संतुलित रखने का तरीका हैं.

पंचशील में शामिल हैं-

-किसी जीव को नुकसान न पहुंचाना
-चोरी न करना
-गलत यौन व्यवहार से दूरी
-झूठ न बोलना
-नशे से दूर रहना

बौद्ध मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति जीवन में पंचशील का पालन करता है, उसका मन मृत्यु के समय भी ज्यादा स्थिर रहता है.

Buddhism rituals

बौद्ध धर्म की आम रस्में और परंपराएं
बौद्ध धर्म में पूजा दिखावे के लिए नहीं होती. यहां कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है. सुबह-सुबह ध्यान करना, बुद्ध की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाना, मंत्र बोलना ये सब मन को स्थिर रखने के तरीके हैं.

पूर्णिमा के दिन कई जगह उपवास रखा जाता है. भिक्षु भिक्षा पर निर्भर रहते हैं, ताकि उनमें लालच न आए. मठों में रहने वाले भिक्षु सादा जीवन जीते हैं. उनका खाना, कपड़े और दिनचर्या बहुत साधारण होती है.

अंतिम समय की तैयारी
जब किसी बौद्ध अनुयायी का अंतिम समय करीब आता है, तो कोशिश की जाती है कि उसके आसपास शांत माहौल रहे. जोर-जबरदस्ती इलाज या अत्यधिक भावनात्मक माहौल से बचा जाता है.

भिक्षु मंत्र बोलते हैं और ध्यान कराया जाता है, ताकि मरते समय व्यक्ति का ध्यान भटक न जाए. माना जाता है कि अंतिम क्षणों की मानसिक स्थिति आगे की यात्रा को प्रभावित करती है.

बौद्ध धर्म में दाह संस्कार
कई बौद्ध समुदायों में दाह संस्कार की परंपरा है. यह देखने में हिंदू रीति से मिलती-जुलती हो सकती है, लेकिन इसका भाव अलग होता है. यहां शरीर को केवल एक अस्थायी आवास माना जाता है.

शरीर को सफेद कपड़े में लपेटा जाता है. कोई जोर-जोर से रोना नहीं होता. आग को शुद्ध करने वाला तत्व माना जाता है. दाह संस्कार के बाद अस्थियों को नदी या किसी पवित्र जल स्रोत में प्रवाहित कर दिया जाता है, ताकि शरीर के तत्व प्रकृति में वापस मिल जाएं.

आकाशीय दफ़न: शरीर को प्रकृति को सौंपना
तिब्बत और कुछ पहाड़ी इलाकों में एक अलग परंपरा है, जिसे आकाशीय दफ़न कहा जाता है. इसमें शरीर को खुले स्थान पर रखा जाता है, ताकि पक्षी उसे खा सकें.

यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन इसके पीछे सोच बहुत गहरी है. यहां माना जाता है कि मरने के बाद शरीर का कोई महत्व नहीं रहता. अगर वह किसी जीव के काम आ जाए, तो यह आखिरी दान होता है.

मृत्यु के बाद की रस्में
बौद्ध धर्म में माना जाता है कि चेतना कुछ समय तक इस दुनिया और अगली दुनिया के बीच रहती है. इस दौरान परिवार वाले प्रार्थना करते हैं, दान देते हैं और अच्छे काम करते हैं, ताकि मृत आत्मा को शांति मिले. कुछ जगहों पर 7, 14 या 49 दिनों तक पाठ किए जाते हैं. इसका मकसद याद रखना नहीं, बल्कि छोड़ पाना होता है.

बौद्ध सोच से मिलने वाली सीख
बौद्ध धर्म की अंतिम संस्कार परंपराएं डर पैदा नहीं करतीं. वे यह सिखाती हैं कि जीवन और मृत्यु दोनों स्वाभाविक हैं. जो आया है, वह जाएगा और जो गया है, वह किसी और रूप में आगे बढ़ेगा. यह सोच इंसान को जीवन जीते समय ज्यादा जागरूक, शांत और संतुलित बनाती है.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)

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