56 Bhog Tradition : हमारे देश में पूजा-पाठ सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि भावनाओं से भरा अपना घर जैसा माहौल है. यहां भक्त भगवान को सिर्फ याद नहीं करते, उन्हें अपने परिवार के सदस्य की तरह मानकर सेवा करते हैं. इसी भाव से भोग चढ़ाने की परंपरा जुड़ी हुई है. रोजमर्रा के भोजन से लेकर बड़े त्योहारों तक, भगवान को अलग-अलग पकवान चढ़ाना हमारे जीवन का हिस्सा रहा है. लेकिन इन सब में सबसे खास नाम एक ही है छप्पन भोग. अक्सर लोग पूछते हैं कि आखिर भगवान को 56 ही भोग क्यों लगाए जाते हैं? कोई और संख्या क्यों नहीं? इस सवाल का जवाब सिर्फ स्वाद या परंपरा तक सीमित नहीं, बल्कि एक बेहद दिलचस्प कथा से जुड़ा है, जिसमें प्रेम, समर्पण और सम्मान की गहराई छिपी है. कृष्ण और गोकुलवासियों के बीच का यह प्रसंग न सिर्फ धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि बताता है कि हमारी संस्कृति में भोजन सिर्फ पेट भरने का साधन नहीं, बल्कि श्रद्धा का सबसे सरल और सुंदर रूप है. यही कारण है कि आज भी बड़े त्योहारों जैसे जन्माष्टमी, अन्नकूट या विशेष उत्सवों पर मंदिरों में 56 भोग लगाना एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है.
1. भोग लगाने की परंपरा
भारत में भगवान को भोग लगाना सबसे सामान्य और प्यारी परंपराओं में से एक है. लोग पूजा के दौरान फल, मिठाई, पका हुआ खाना या घर में बने साधारण व्यंजन भगवान को अर्पित करते हैं. कई परिवार रोज सुबह या शाम की पूजा में भोग रखते हैं, जबकि कई लोग विशेष शुभ दिनों पर ही इसे करते हैं. यही वजह है कि भोग सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि प्रेम और सम्मान का रूप माना जाता है.
2. भगवान को 56 ही भोग क्यों, 60 या 100 क्यों नहीं?
छप्पन यानी 56 का अर्थ सिर्फ संख्या भर नहीं है. यह संख्या भगवान को अर्पित किए जाने वाले अलग-अलग 56 पकवानों का प्रतीक है. लेकिन सवाल यही है कि आखिर 56 ही क्यों? क्या वजह है कि यह संख्या बदलती नहीं? इसका जवाब उस कथा में छिपा है जिसमें कृष्ण ने सात दिन तक भूखे रहकर अपने भक्तों की रक्षा की थी. इस घटना के बाद गोकुलवासियों ने भगवान के प्रति अपने प्रेम को दर्शाने के लिए एक ऐसी परंपरा शुरू की, जो आज भी उसी भाव से निभाई जाती है.
3. इंद्र और गोवर्धन से जुड़ी कथा
कहानी के अनुसार, गोकुलवासी हर वर्ष इंद्र की पूजा करते थे ताकि बारिश और खेती अच्छी हो सके. पर बालकृष्ण ने उन्हें समझाया कि असली सहारा गोवर्धन पर्वत है, क्योंकि वही बादलों को रोककर बारिश और अनाज का आधार बनता है. गोकुलवासियों ने कृष्ण की बात मान ली, जिससे इंद्र नाराज़ हो गए.
इंद्र ने गोकुल पर लगातार सात दिन और सात रात भारी बारिश बरसाई. इस संकट से बचाने के लिए कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और पूरे गांव को आश्रय दे दिया. इतने दिनों तक कृष्ण ने भोजन नहीं किया. यह देखकर गोकुलवासियों को अपनी गलती महसूस हुई और उन्हें लगा कि कृष्ण की भूख का सम्मान करना चाहिए. इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि एक दिन के भोजन के मुकाबले आठ गुना अधिक व्यंजन उन्हें अर्पित किए जाएं.
4. 56 की संख्या कैसे बनी?
कथा के अनुसार, कृष्ण दिन में एक बार भोजन करते थे. गोकुलवासियों ने तय किया कि वे उन्हें आठ गुना भोजन अर्पित करेंगे. चूंकि कृष्ण ने लगातार सात दिन तक कुछ नहीं खाया:
8 (गुना) × 7 (दिन) = 56
यही गणना छप्पन भोग की परंपरा की जड़ मानी जाती है. इसलिए भक्त भगवान को 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित करते हैं मिठाई, अनाज, पेय, नमकीन, फल, दालें, सब कुछ.
5. 56 भोग का महत्व
छप्पन भोग सिर्फ व्यंजनों का समूह नहीं है. यह उस भावना का प्रतीक है जिसमें भक्त भगवान को अपना परिवार मानकर उनका सम्मान करते हैं. इसमें शामिल प्रत्येक पकवान कृष्ण की पसंद और उनके जीवन से जुड़े स्वादों का प्रतिनिधित्व करता है. इस भोग को समर्पण, प्रेम और कृतज्ञता का एक सुंदर रूप माना जाता है. कई मंदिरों और घरों में इसे बड़े उत्साह, संगीत और भक्ति के साथ चढ़ाया जाता है.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)







