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Chhath Puja 2025: 25 अक्टूबर से छठ महापर्व की शुरुआत होने वाली है और 28 अक्टूबर को समापन होगा. उत्तर भारत के राज्यों में छठ पर्व का विशेष महत्व है. इस पर्व में शु्द्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है और महिलाएं 36 घंटे निर्जला व्रत करती हैं. आइए जानते हैं इस पर्व का महत्व…

Chhath Puja 2025: छठ महापर्व की शुरुआत 25 अक्टूबर दिन शनिवार से हो रही है और समापन 28 अक्टूबर दिन मंगलवार को होगा. भारत में जब लोग छठ मईया के गीत गाते हुए डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य देते हैं, तो यह केवल आस्था का क्षण नहीं होता, यह प्रकृति और विज्ञान का संगम होता है. सदियों पुरानी यह परंपरा, जिसे आयुर्वेद और लोकसंस्कृति दोनों ने जीवन का संतुलन माना है. छठ पूजा की सबसे खास बात यह है कि यह केवल पूजा नहीं, बल्कि सूर्योपासना है. आइए जानते हैं छठ महापर्व की शुरुआत कहां से हुई…

वेदों में कहा गया है सूर्योऽत्मा जगतस्तस्थुषश्च यानी सूर्य समस्त जीवन की आत्मा है. वैज्ञानिक रूप से भी यही सत्य है. रामायण और महाभारत के अलावा विष्णु पुराण, देवीभागवत और ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे धर्मग्रंथों में छठ पर्व से जुड़े अनेक कथानकों का वर्णन है. इस पर्व की शुरुआत महाभारत काल में कर्ण ने की थी. कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था. वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था. च्यवन मुनि की पत्नी सुकन्या ने अपने बूढ़े हो चुके पति को पुनर्यौवन दिलाया था.

छठ पर्व में सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों समय पूजा की परंपरा है. यही समय वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि सुबह 6 से 8 बजे और शाम 4 से 6 बजे तक की धूप यूवी-बी रे का सबसे संतुलित रूप होती है. ऐसी किरण जो त्वचा को नुकसान पहुंचाए बिना शरीर को पर्याप्त विटामिन डी प्रदान करती है. जब व्रती बिना किसी केमिकल लोशन या धूप से बचाव के सूर्य की किरणों को ग्रहण करती हैं, तो उनका शरीर प्राकृतिक रूप से डिटॉक्स होता है और कोशिकाओं में कैल्शियम-फॉस्फोरस संतुलन बनता है.

ऐसे में छठ पूजा जैसी परंपराएं, जो प्राकृतिक धूप से जुड़ने का अवसर देती हैं, आज के तनावपूर्ण जीवन में और भी प्रासंगिक हो जाती हैं. जब परिवार घाटों पर घंटों सूर्य की ओर मुख किए खड़े रहते हैं, तो यह केवल धार्मिक अभ्यास नहीं बल्कि सस्टेनेबल हेल्थ थेरपी का रूप है. दिलचस्प है कि आज पश्चिमी देश सन बाथ और हेलियोथेरेपी को स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मान रहे हैं, वही सिद्धांत जो भारत ने हजारों साल पहले छठ पूजा के रूप में अपनाया था. आयुर्वेद में जल-चिकित्सा का जिक्र है. इसमें कटिस्नान को विशेष उपयोगी माना गया है ठीक वैसे जैसे कर्ण किया करते थे.







