देहरादून. भारत मंदिरों का देश है और उत्तराखंड मंदिरों का प्रदेश है. जब आप मसूरी की वादियों की ओर बढ़ते हैं तो रास्ते में एक ऐसा स्थान आता है, जो न केवल अपनी सुंदरता से मोहित करता है, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव भी देता है. देहरादून से मसूरी जाते हुए जब पहाड़ों के बीच हवा में ठंडक घुलने लगती है और मन सैर के लिए तैयार हो जाता है, तभी एक विशाल शिव मंदिर (Shiv Temple) नजर आता है- प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर (Prakasheswar Mahadev Mandir). ये मंदिर अपनी भव्यता या लोकेशन से ज्यादा, अपनी एक अनोखी परंपरा के लिए मशहूर है. यहां कोई दान नहीं लिया जाता है.
दुर्लभ सोच का नतीजा
जिस देश में मंदिरों में चढ़ावे की परंपरा हजारों साल पुरानी हो, वहां एक ऐसा भी मंदिर है जहां एक पाई भी चढ़ाना मना है. ये परंपरा मंदिर की आत्मा में रची-बसी है. इसकी शुरुआत हुई थी एक संकल्प से. ईश्वर सब कुछ देने वाले हैं, तो हम उन्हें क्या दे सकते हैं? देहरादून के घंटाघर से करीब 12 किलोमीटर दूर, कुठाल गेट के पास ये मंदिर न केवल अपने सौंदर्य के लिए जाना जाता है, बल्कि उस सोच के लिए भी, जो आज के युग में दुर्लभ हो चली है. यहां पर प्रवेश करते ही एक बोर्ड आपका स्वागत करता है, जिस पर लिखा होता है -‘कृपया दान न दें. न तो यहां चढ़ावे की थाली है, न ही कोई दानपात्र’.
एक संत का संकल्प
मंदिर में लंबे अरसे से सेवादार रहे संजय ध्यानी बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना हरिद्वार के संत शिवदास जी ने की. उन्होंने बचपन से एक संकल्प लिया था कि वे भोलेनाथ के लिए ऐसा मंदिर (No Donation Temple) बनाएंगे, जो पूरी तरह सेवा भाव पर आधारित होगा. उनका यह सपना 1990 में पूरा हुआ, जब एक छोटे से स्थान को उन्होंने शिवधाम का रूप दिया. समय के साथ इस मंदिर ने भी अपना आकार बढ़ाया. जब कभी टूरिस्ट मसूरी जाता है, तो इस मंदिर में मथा जरूर टेकता है.
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भक्ति ही चढ़ावा
सफेद रंग का स्फटिक शिवलिंग भी यहां का आकर्षण का केंद्र है. शास्त्रों के मुताबिक, स्फटिक शिवलिंग जहां भी स्थापित होता है, वो स्थान सिद्ध हो जाता है. यही वजह है कि यहां जल चढ़ाने मात्र से श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण होने की मान्यता है. कोई लालच नहीं, कोई दिखावा नहीं. केवल श्रद्धा और विश्वास. खास बात है कि मंदिर में कार्यरत सभी लोग सेवा भाव से सेवा करते हैं. यहां भक्तों को प्रसाद भी नि:शुल्क मिलता है और मंदिर परिसर की सफाई से लेकर व्यवस्था सभी कुछ सेवा रूप में होता है. अगली बार जब भी आप मसूरी की ओर जाएं, तो प्रकृति की खूबसूरती के साथ इस आध्यात्मिक चमत्कार का अनुभव लेना न भूलें, जहां भक्ति ही सबसे बड़ा चढ़ावा है.