भारतीय संस्कृति में पतिव्रता स्त्री को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है. उसे आदर्श, त्याग और समर्पण की मूरत माना जाता है, लेकिन जब कोई औरत यह पूछती है कि “क्या मैं पतिव्रता हूं?” तो असल में वह अपने रिश्ते की सच्चाई को लेकर आश्वस्त होना चाहती है.
जैसे एक बच्चा अपनी मां से लड़ता है. जब वह गिरता है और मां देर से उसे उठाती है तो बच्चा गुस्से में मां को ही दोष देता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह मां से प्यार नहीं करता. बल्कि यह विश्वास ही है कि मां कभी उसका साथ नहीं छोड़ेगी. इसी तरह पति-पत्नी का रिश्ता भी भरोसे पर टिका होता है. गुस्सा या अपशब्द कह देना उस भरोसे को खत्म नहीं करता.
रिश्तों में लड़ाई-झगड़े होना बहुत सामान्य है. असल मायने इस बात के हैं कि झगड़े के बाद सुलह कितनी जल्दी होती है और रिश्ता पहले से ज्यादा मजबूत कैसे बनता है. यहां “मान” का भाव आता है. जब कोई नाराज़ होता है तो दूसरा मनाने की कोशिश करता है, और यही प्रक्रिया रिश्ते को गहराई देती है.
यह समझना जरूरी है कि लड़ाई भी एक प्रकार का प्रेम है, अगर रिश्ता गहरा है तो नाराज़गी भी उतनी ही सच्ची होगी. जैसे भक्त कभी-कभी भगवान से भी उलझ जाते हैं, वैसे ही पत्नी भी पति से उलझ सकती है. इसका मतलब यह नहीं कि उसकी निष्ठा में कमी है, बल्कि यह दर्शाता है कि रिश्ता जीवंत और मजबूत है.