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Jannat and dozakh in islam : इस्लाम में जन्नत और जहन्नम का जिक्र इंसान के आखिरत के अंजाम से जुड़ा हुआ है. कुरआन बताती है कि दुनिया की जिंदगी एक इम्तिहान है. जो अल्लाह की राह पर चलते हैं, उन्हें जन्नत का इनाम मिलेगा, जबकि गुनाह करने वालों के लिए जहन्नम की सख्त सजा रखी गई है. लेकिन ये तय कैसे होता है, आइये अलीगढ़ से चर्चित मौलाना से जानते हैं.
इस्लाम के नजरिए से दुनिया सिर्फ एक इम्तेहानगाह है. यानी एक ऐसी जगह जहां इंसान को आजमाया जाता है. इस इम्तेहान का नतीजा आखिरत में मिलेगा, जहां नेकी और बुराई का पूरा हिसाब होगा. यही हिसाब तय करेगा कि किसी को जन्नत (स्वर्ग) नसीब होगी या जहन्नम (नरक). अलीगढ़ के मौलाना मुफ़्ती इफराहीम हुसैन Bharat.one से बताते हैं कि इस्लाम में जन्नत और जहन्नम का कॉन्सेप्ट इंसाफ, रहमत और इंसानी अमल पर आधारित है. अल्लाह हर इंसान को उसके ईमान और कर्म के मुताबिक बदला देगा.
मौलाना इफराहीम बताते हैं कि कुरआन में जन्नत को एक ऐसी जगह बताया गया है जहां न खत्म होने वाली खुशियां, अमन, सुकून और रहमत है. वहां कोई दर्द, गम या तकलीफ नहीं होगी. जन्नत में बाग-बगीचे, दूध और शहद की नदियां, खूबसूरत हवेलियां और रौशन महफिलें होंगी. वहां नफरत नहीं बल्कि सिर्फ मोहब्बत और सुकून होगा.
इस्लाम के मुताबिक, जन्नत उन लोगों के लिए है जो अल्लाह पर ईमान लाते हैं, उसके बताए रास्ते पर चलते हैं. नमाज, रोज़ा, जकात और हज जैसी इबादतें अदा करते हैं और इंसाफ, रहमदिली, सच्चाई और अच्छे अख़लाक़ से ज़िंदगी गुज़ारते हैं. सिर्फ इबादत ही नहीं, बल्कि दूसरों के हक का ख्याल रखना भी जन्नत का रास्ता है.
मौलाना इफराहीम हुसैन के अनुसार, जहन्नम को इस्लाम में वो जगह बताया गया है जहां अल्लाह के हुक्मों की नाफ़रमानी करने वालों को सज़ा दी जाएगी. वहां आग, तकलीफ और पछतावे का माहौल होगा. यह सज़ा किसी ज़ुल्म की वजह से नहीं बल्कि इंसान के अपने किए गए गुनाहों का नतीजा होगी.
मुफ़्ती इफराहीम हुसैन बताते हैं कि इस्लाम की नजर में जहन्नम उन लोगों के लिए है जो अल्लाह और उसके रसूल की बातों को न मानें और बुराई पर डटे रहें. इनमें काफ़िर, मुशरिक, मुनाफ़िक, ज़ालिम और बड़े गुनाहगार शामिल हैं, जो बिना तौबा के बुराई पर डटे रहें. लेकिन जो सच्चे दिल से तौबा कर ले, अल्लाह उसकी रहमत से उसे माफ़ कर देता है.
इस्लाम यह भी बताता है कि अल्लाह की रहमत बहुत बड़ी है. अगर कोई गुनाहगार सच्चे दिल से तौबा कर ले, अपनी गलतियां सुधार ले और नेक रास्ते पर लौट आए, तो अल्लाह उसके सारे गुनाह माफ कर देता है. पैग़ंबर मोहम्मद ने कहा है कि हर इंसान से गलती होती है, लेकिन सबसे बेहतर वो है जो गलती के बाद तौबा कर ले. इसका मतलब यह है कि जहन्नम से बचने का रास्ता हमेशा खुला है.
मुफ़्ती इफराहीम कहते हैं कि आख़िरत में जन्नत और जहन्नम जिसे दोज़ख भी कहा जाता है. इंसाफ़ की वो मंज़िल हैं जहां कोई अन्याय नहीं होगा. हर इंसान को उसके कर्मों के हिसाब से बदला मिलेगा. यह कॉन्सेप्ट इंसान को दुनिया में भी ईमानदारी, इंसाफ़ और भलाई की राह पर चलने की प्रेरणा देता है. जन्नत और जहन्नम सिर्फ़ डर या इनाम का विषय नहीं, बल्कि इंसान के ज़मीर को सीधा रखने का पैग़ाम है.
