Last Updated:
Diwali 2025 Date: कोई कह रहा है इस बार दीपावली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी, तो कोई कह रहे हैं 21 अक्टूबर को मनाई जाएगी. आइए जानते हैं कि महाकाल की नगरी में दिवाली कब मनाई जाएगी. (रिपोर्ट:शुभम)

हिंदू धर्म में दिवाली को ‘दीपों की रोशनी’ का पर्व माना जाता है. पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर दीपावली मनाई जाती है. इस दिन पूरे देश को दीयों की रोशनी से रौशन करते हुए धन की देवी मां लक्ष्मी और भगवान गणेश को पूजा जाता है.

साल 2024 मे इंदौर और उज्जैन में अलग-अलग दिन दीपावली मनी थी. इस बार तिथि को लेकर सभी जगह असमंजस बना हुआ है. आइए जानते हैं उज्जैन के ज्योतिष अक्षत व्यास से महाकाल नगरी में कब यह पर्व मनाया जायगा.

ज्योतिषआचार्य अक्षत व्यास नें बताया कि,उज्जैन के पंचांग के अनुसार इस बार अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर को दोपहर 3:45 से शुरू होकर 21 अक्टूबर को दोपहर 3:35 तक रहेगी.सूर्यास्त के बाद कम से कम 24 मिनट तक अमावस्या बनी रहे, तभी प्रदोष काल में पर्व मान्य होता है. 21 अक्टूबर को प्रदोष नहीं होगा, जबकि 20 अक्टूबर को प्रदोष काल रहेगा. यही कारण है कि दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर को मनाना ही उचित बताया जा रहा है.

पिछले साल भी यही असमंजस वाली स्थिति बनी थी. उज्जैन के ज्योतिषआचार्य और इंदौर के ज्योतिषआचार्य के बीच तालमेल नहीं बैठा था, जबकि इंदौर में ज्योतिष और विद्वत परिषद की बैठक में दिवाली 1 नवंबर को मनाने का निर्णय लिया गया था, जबकि उज्जैन के ज्योतिषाचार्यों ने शास्त्रसम्मत रूप से 31 अक्टूबर को ही दिवाली मनाना सही बताया था. इसी कारण दोनों जगह अलग-अलग दिन दिवाली मनी थी.

महाकाल मंदिर के पंडित महेश पुजारी बताते हैं कि महाकाल के दरबार से ही उज्जैन में हर पर्व की शुरुआत होती है. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर तड़के चार बजे भस्म आरती में दीपावली मनाई जाती है.भस्म आरती में भगवान महाकाल को तिल्ली, केसर, चंदन का उबटन लगाकर गर्म जल से स्नान कराया जाएगा.

इसके बाद नवीन वस्त्र धारण कराकर सोने चांदी के आभूषण से विशेष शृंगार किया जाएगा. अन्नकूट का भोग लगाकर फुलझड़ी से आरती की जाएगी. शाम को चतुर्दशी युक्त अमावस्या के संयोग में दीपोत्सव मनेगा.बाबा के दरबार मे इसलिए सुबह से ही भक्तो का ताता देखने को मिलेगा.

रामायण के मुताबिक, भगवान श्रीराम जब लंकापति रावण का वध करके माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे, तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से सजी हुई थी. कहते हैं कि भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दिवाली मनाई गई. हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे. तब से दिवाली का यह पर्व अंधकार पर विजय का पर्व बन गया.