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Diwali Mahalakshmi Katha: दीपावली की रात आत्मा में स्थित प्रकाश (ज्ञान) को जागृत करने का प्रतीक बन गई. इस दिन गणेश लक्ष्मी पूजन के बाद दिवाली की कथा अवश्य सुननी व पढ़नी चाहिए, तभी दीपावली का पूजन संपूर्ण माना जाता है. यहां पढ़ें दिवाली लक्ष्मी की कथा…
Diwali Mahalakshmi Katha In Hindi: दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, यह अंधकार पर प्रकाश, असत्य पर सत्य और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है. वेद, पुराण और ज्योतिष तीनों इस दिन को शुभारंभ और आत्मज्योति जागरण का दिन मानते हैं. दीपावली की कथा केवल बाहरी विजय की नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर की विजय की प्रतीक है. दिवाली की पूजा अर्चना के बाद कथा सुनना व पढ़ना शुभ माना जाता है और इसके पाठ के बिना लक्ष्मी पूजन अधूरा माना जाता है. यहां पढ़ें दिवाली पूजन कथा…

दिवाली महालक्ष्मी की पौराणिक कथा | Diwali Mahalakshmi Katha
धार्मिक मान्याताओं के अनुसार, किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसकी एक बहुत सुशील बेटी थी. वह रोज घर के सामने खड़े पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाती थी. उस पीपल में लक्ष्मीजी का वास था. एक दिन साहूकार की बेटी पीपल पर जल चढ़ा रही थी उसी समय लक्ष्मीजी प्रकट हुईं और बोलीं, ‘बेटी मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं. इसलिए तुझे सहेली बनाना चाहती हूं.’साहूकार की बेटी बोली, ‘क्षमा कीजिए, मैं अपने माता-पिता से पूछकर ही बताऊंगी. ‘ उसने घर आकर अपने माता-पिता से सारी बातें कहीं और उनकी आज्ञा से लक्ष्मी जी का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. इस तरह वे दोनों सहेलियां बन गई. लक्ष्मीजी उससे बहुत प्रेम करती थीं.
एक दिन लक्ष्मीजी ने उसे भोजन के लिए बुलावा दिया. जब साहूकार की बेटी भोजन करने के लिए पहुंची तो लक्ष्मी जी ने उसे सोने-चांदी के बर्तनों में खाना खिलाया. सोने की चौकी पर बिठाया और उसे बहुत कीमती रेशमी कपड़े ओढ़ने-पहनने के लिए दिए. इसके बाद लक्ष्मी जी ने कहा कि कुछ दिन बाद मैं तुम्हारे यहां आऊंगी. साहूकार की बेटी ने ‘हां’ कर दी और घर चली आई. उसने जब सारी बातें माता-पिता को बताई तो वे बहुत खुश हुए. लेकिन बेटी कुछ सोचकर उदास होकर बैठ गई. जब साहूकार ने इसका कारण पूछा तो उसकी बेटी बोली, ‘लक्ष्मीजी का वैभव बहुत बड़ा है. मैं उन्हें कैसे संतुष्ट कर सकूंगी?’
यह सुनकर पिता ने कहा कि घर की जमीन को अच्छी तरह लीपना और अपनी पूरी श्रद्धा से रूखा-सूखा जैसा भी भोजन बने, उसे बहुत प्रेम से लक्ष्मीजी को खिला देना. पिता बात पूरी ही करने वाले थे कि एक चील कहीं से उड़ती हुई आई और बेशकीमती नौलखा हार साहूकार के आंगन में गिराकर चली गई. यह देखकर साहूकार की बेटी खुश हो गई. उसने पिता की बात मानी और घर को सुंदर तरीके के सजाया. जमीन की सफाई-लिपाई की. चील ने जो हार उनके घर में गिराया था, उसे बेचकर लक्ष्मीजी के लिए अच्छे भोजन का इंतजाम किया. उन्होंने सोने की चौकी और रेशमी दुशाला खरीदा.
जब लक्ष्मीजी घर आई तो साहूकार की बेटी ने उन्हें सोने की चौकी पर बैठने को कहा. इस पर लक्ष्मी जी ने कहा, ‘इस पर तो राजा-रानी बैठते हैं.’ इतना कहकर वह साफ जमीन पर ही आसन बिछाकर बैठ गई और बहुत प्रेम से भोजन किया. वह साहूकार के परिवार के आदर-सत्कार से बहुत खुश हुई और उनका घर सुख-संपत्ति से भर गई.
हे लक्ष्मी माता! जिस तरह आपने साहूकार के परिवार पर अपनी कृपा बरसाई, उसी तरह सबके घरों को सुख-संपत्ति से भर देना.
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प…और पढ़ें
मैं धार्मिक विषय, ग्रह-नक्षत्र, ज्योतिष उपाय पर 8 साल से भी अधिक समय से काम कर रहा हूं। वेद पुराण, वैदिक ज्योतिष, मेदनी ज्योतिष, राशिफल, टैरो और आर्थिक करियर राशिफल पर गहराई से अध्ययन किया है और अपने ज्ञान से प… और पढ़ें