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Dronagiri village Hanuman Katha: अंजनी पुत्र वीर बजरंगी की पूजा से हर भय व परेशानी दूर हो जाती है और ग्रह-नक्षत्र के अशुभ प्रभाव में भी कमी आती है. पूरी दुनिया में रामभक्त हनुमानजी की पूजा अर्चना की जाती है लेकिन भारत के ही एक गांव में हनुमानजी की पूजा करने से लोग कतराते हैं. यहां हनुमानजी से लोग नाराज हैं इसलिए यहां उनकी पूजा अर्चना करना वर्जित है.

जहां बात भक्त और भक्ति की होती है, वहां सबसे पहले नाम रामभक्त हनुमान का लिया जाता है. हनुमानजी ने भगवान राम की भक्ति पूरे मन और अपनी श्वास के कण-कण से की. हनुमानजी को केवल एक ही चीज आती थी और वह है भक्ति करना. वह भक्ति के अलावा और कुछ करना नहीं जानते थे और हनुमानजी को शक्तियां उसी भक्ति से मिलती थी. भगवान श्री राम के बिना हनुमान का कोई अस्तित्व नहीं है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उत्तराखंड में ऐसा एक गांव है, जहां भगवान राम की पूजा तो होती है, लेकिन हनुमान की नहीं? जी हां, वहां पूजा अर्चना में भगवान राम की तो पूजा होती है लेकिन हनुमानजी की नहीं. और जो हनुमानजी की पूजा करते हैं, उनको गांव से अलग कर देते हैं. आइए जानते हैं इस गांव के बारे में…

आज भी हनुमानजी से नाराज हैं यहां के लोग – भगवान राम की पूजा में हनुमानजी का नाम हमेशा रहा है, लेकिन देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में बसा एक छोटा सा गांव आज भी हनुमानजी से नाराज हैं. वहां के लोग भगवान राम के साथ कभी भी हनुमानजी का नाम नहीं लेते हैं. द्रोणागिरी गांव में बने मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा मौजूद है. लेकिन, हनुमानजी की नहीं. पूजा-पाठ में राम का नाम लिया जाता है, लेकिन हनुमानजी का नहीं. इस नाराजगी के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसे गांव के लोग आज भी मानते हैं.

नाराजगी के पीछे एक पौराणिक कथा – यह कहानी रामायण काल से जुड़ी है. कहा जाता है कि जब युद्ध में लक्ष्मण को शक्ति बाण लगा था, तब वे मूर्छित होकर गिर पड़े थे. ऐसे में उनकी जान बचाने के लिए भगवान राम ने हनुमानजी को संजीवनी बूटी लाने का आदेश दिया था. संजीवनी लेने के लिए हनुमानजी द्रोणागिरी गांव आए थे और वहां बिना किसी की इजाजत के पूरा पहाड़ उठाकर ले गए थे. इस बात से पर्वत के रक्षक, पूजनीय लोक देवता लाटू, नाराज हुए. हनुमानजी का बिना इजाजत लिए पर्वत को ले जाना उन्हें अपमान लगा.
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हनुमानजी की वजह से हो गई तपस्या भंग – कहा यह भी जाता है कि जब हनुमानजी पर्वत को ले जा रहे थे, तब पर्वत देवता ध्यान में थे और हनुमानजी की वजह से उनकी तपस्या भंग हो गई. इतना ही नहीं, जिस हिस्से को हनुमानजी ने पर्वत से अलग किया था, वहां से आज भी लाल रंग का पानी निकलता है, जिसे वहां के स्थानीय लोग पर्वत देवता का रक्त मानते हैं. इसी कथा के बाद से गांव में हनुमानजी का पूजन वर्जित माना गया. द्रोणागिरी गांव में घरों या मंदिरों में हनुमानजी के नाम की पताका भी नहीं लगाई जाती है और न ही उनकी पूजा की जाती है. पूरा गांव आज भी हनुमानजी से नाराज है और कोई अपने मुख से उनका नाम भी नहीं लेता.







