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durga puja nabapatrika begins 2025 with kola bou snan in West Bengal Assam and Odisha kala bou | पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा में कोला बऊ स्नान के साथ दुर्गा पूजा की शुरुआत, जानें क्यों कहते हैं नवपत्रिका


अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां दुर्गा की पूजा का विशेष आयोजन शुरू हो चुका है, जिसमें कोला बऊ स्नान की परंपरा ने सभी का ध्यान आकर्षित किया. दुर्गा पूजा का त्योहार लगभग दस दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें पांच मुख्य दिन, महाषष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी और विजयदशमी महत्व रखते हैं. महासप्तमी तिथि से दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है और इस दिन से पंडालों में मां दुर्गा समेत सभी देवी देवताओं की आंखों से पट्टी भी हटाई जाती है. एक तरह सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा अर्चना की जाती है और दूसरी तरह इस दिन पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा में कोला बऊ स्नान किया जाता है.

इस तरह होता है यह अनुष्ठान
नवरात्रि में महासप्तमी तिथि को सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है. इस दिन ब्रह्ममुहूर्त में कोला बऊ (केले का पौधा) को स्नान कराया जाता है. यह दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसमें एक केले के पौधे को लाल धोती और सिंदूर पहनाकर दुल्हन की तरह सजाया जाता है और गंगा या किसी जलाशय में स्नान कराया जाता है. इस अनुष्ठान के बाद, कोला बऊ नवपत्रिका (नौ पौधों) के हिस्से के रूप में दुर्गा पूजा पंडाल में गणेश के बगल में स्थापित की जाती है.

दुर्गा की मूर्तियों की विशेष पूजा
इस बीच सोमवार को गंगा नदी के तट पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी. यहां से गंगा के पवित्र जल से भरे मिट्टी के कुल्हड़ मंदिरों में लाए गए. इसके बाद शहर के तमाम मंदिरों और पंडालों में मां दुर्गा की मूर्तियों की विशेष पूजा और आह्वान किया गया. मंत्रोच्चार और ढाक की थाप के बीच भक्तों ने मां की आराधना की. कई स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम और भक्ति भजनों का आयोजन भी होता है.

सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक
हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन माता की पूजा करने से साधक के जीवन से जुड़ी सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं. इस अनुष्ठान को मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा और ओडिशा जैसे राज्यों में मनाया जाता है. यह उत्सव ना केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है. भक्तों में उत्साह और श्रद्धा का माहौल है. शास्त्रों में कोला बऊ स्नान की परंपरा को सुख, संतति और समृद्धि का प्रतीक माना गया है.

जानें क्यों कहते हैं नवपत्रिका
बंगाली पुरोहित सभा के अध्यक्ष चंडी चरण हलदर ने बताया कि नव पत्रिका का शाब्दिक अर्थ है नव, यानी नौ पृष्ठ, यानी नौ पत्ते. लेकिन यहां नौ पत्तों की नहीं, बल्कि नौ वृक्षों की पूजा की जाती है. इन नौ वृक्षों में केला, बेल, अशोक, कचूर, हल्दी, चावल, जयंती, मूंग और अनार शामिल हैं. नवपत्रिका या वृक्ष को देवी दुर्गा के 9 रूपों के रूप में पूजा जाता है. ये 9 वृक्ष क्रमशः रम्भाधिष्ठात्री ब्रह्माणी, कच्छवधिष्ठात्री कालिका, हरिद्राधिष्ठात्री उमा, जयन्त्यधिष्ठात्री कार्तिकी, बिल्वाधिष्ठात्री शिवा, दारिम्बाधिष्ठात्री रक्तदन्तिका, अशोकाधिष्ठात्री शोकराहिता, मनधिष्ठात्री चामुंडा और धान्याधिष्ठात्री लक्ष्मी हैं. इन नौ देवियों को एक साथ नवपत्रिकावासिनी नवदुर्गा के रूप में पूजा जाता है. नवपत्रिका को मंडप में लाने के बाद, देवी को भव्य स्नान कराया जाता है. इसके बाद, बाकी दिनों में अन्य देवी-देवताओं के साथ नवपत्रिका की भी पूजा की जाती है.

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