आखिर वो कौन सा विवाद था कि गणेश और तुलसी कभी साथ नहीं होते. इस विवाद के बारे में एक पौराणिक कथा में बताया गया है. इसके अनुसार, एक बार भगवान गणेश गंगा नदी के तट पर तपस्या में बैठे हुए थे. आसपास क्या हो रहा है, उससे वो बिल्कुल अलग थे. उन्हें पता ही नहीं था वहां क्या चल रहा है. तपस्या करते हुए वो सिंहासन पर बैठे थे.
तुलसी ने गणेश से विवाह का प्रस्ताव रखा
तुलसीजी ने गणेश का ध्यान भंग किया. उनसे विवाह का प्रस्ताव रखा. गणेश तप में लीन थे, उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया. ये कहा कि वो ये विवाह नहीं करना चाहते.

तुलसी ने ध्यानमग्न गणेश के ध्यान को तोड़वाया और फिर उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसको गणेश जी स्पष्ट रूप से मना कर दिया (news18)
तब तुलसी ने गुस्से में ये शाप दे दिया
तब बदले में गणेश ने भी तुलसी को श्राप दिया
गणेशजी भी तुलसी के श्राप से नाराज हो गए. उन्होंने बदले में तुलसी को शाप दिया कि उनका विवाह एक राक्षस से होगा. इसके कारण तुलसी का विवाह शंखचूड़ नामक राक्षस से हुआ, जो दैत्यराज दंभ का बेटा था.
तब गणेश ने कहा – उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होगा

भगवान गणेश की पूजा में कभी तुलसी का इस्तेमाल नहीं होता और ना ही तुलसी को गणेशजी के पास रखना चाहिए. ( news18)
फिर कैसे हुई गणेश की शादी
तो अब आगे जानिए कि कैसे गणेशजी की शादी रिद्धि और सिद्धि से हुई. ‘रिद्धि’ का अर्थ है समृद्धि, सफलता और सम्पन्नता.’सिद्धि’ का मतलब है आध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि और पूर्णता. सभी देवताओं ने गणेश जी से कहा कि अब उन्हें विवाह कर ही लेना चाहिए. गणेश जी ने एक तरीका निकाला. उन्होंने दो सुपारियां मंगवाईं. वही सुपारियां जिनका इस्तेमाल पूजा और पान में किया जाता है. उन्होंने दोनों सुपारियों को पानी से धोया. फिर उनकी पूजा शुरू की.
रिद्धि और सिद्धि से गणेश जी के दो बेटे हुए. रिद्धि के पुत्र का नाम शुभ रखा गया तो सिद्धि के बेटे का नाम लाभ. इसीलिए भारत में किसी भी शुभ काम की शुरुआत में ‘शुभ-लाभ’ लिखा जाता है.
क्या गणेश की तीसरी पत्नी भी थीं
लेकिन कुछ क्षेत्रीय और लोक परंपराओं खासकर बंगाल की कहानियों में गणेश जी की एक तीसरी पत्नी का भी उल्लेख मिलता है, जिनका नाम बुद्धि है यानि बुद्धिमत्ता की देवी है. मान्यता है कि गणेश जी ने बुद्धि से भी विवाह किया था. गणेश जी की ये पत्नियां ये भी कहती हैं कि एक संतुलित जीवन के लिए बुद्धि, समृद्धि (रिद्धि) और आध्यात्मिक उन्नति (सिद्धि) तीनों का होना जरूरी है. हालांकि कुछ क्षेत्रों में गणेश जी को अविवाहित माना जाता है, खासकर दक्षिण भारत में, जहां वे बाल ब्रह्मचारी के रूप में पूजे जाते हैं.