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Hasanamba Temple: 365 दिनों में सिर्फ दिवाली पर खुलता है यह मंदिर, पूरे साल फूल रहते हैं ताजा, जानें इसकी खास बातें


हाइलाइट्स

हसनंबा मंदिर बेंगलुरु से 180 किमी दूर स्तिथ है.इसे 12वी शताब्दी में बनवाया गया था.

Hasanamba Temple : सनातन धर्म में प्राचीन समय से कई चमत्कार दिखाई देते रहे हैं. हिन्दू धर्म के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं. जहां आज भी कई चमत्कार होते हैं. इन्हीं मंदिरों में से एक है कर्नाटक के हासन जिले में स्तिथ हसनंबा मंदिर. यह मंदिर साल में एक बार ही खुलता है. दीपावली पर इस मंदिर के द्वार को खोला जाता है और फिर 7 दिन बाद यहां दीपक जलाकर, फूल और प्रसाद चढ़ाते हैं और इस मंदिर के कपाट को बंद कर देते हैं. जब अगले साल इस मंदिर के कपाट खुलते हैं, तब मंदिर के पुजारियों को वह दीया जलता मिलता है, साथ ही फूल और प्रसाद भी ताजा रहते हैं. चलिए जानते हैं दक्षिण भारत में मशहूर इस मंदिर के बारे में.

कहां हैं ये मंदिर?
यह मंदिर बेंगलुरु से 180 किमी दूर है. इसे 12वी शताब्दी में बनवाया गया था. इस जगह को पहले सिहमासनपुरी के नाम से जाना जाता था. इस मंदिर की अपनी कई खासियत है. साथ ही इस मंदिर से जुड़ी कई किवदंतियां भी बहुत प्रसिद्ध हैं.

मंदिर का इतिहास
प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि यहां बहुत समय पहले एक राक्षस अंधकासुर हुआ करता था. उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और वरदान के रूप में अदृश्य होने का आशीर्वाद प्राप्त किया. इस वरदान को पाकर उसने ऋषि, मुनियों और मनुष्यों का जीवन जीना दूभर कर दिया. ऐसे में भगवान शिव ने उस राक्षस का वध करने का जिम्मा उठाया. लेकिन उस राक्षस के खून की एक-एक बूंद राक्षस बन जाते थे. तब उसके वध के लिए भगवान शिव ने तपयोग से योगेश्वरी देवी का निर्माण किया, जिन्‍होंने अंधकासुर का नाश कर दिया.

साल भर बाद भी फूल रहते हैं ताजा, जलता रहता दीया
यह मंदिर दीपावली पर 7 दिनों के लिए खोला जाता है और बालीपद्यमी के उत्सव के तीन दिन बाद बंद कर दिया जाता है. इस मंदिर के कपाट खुलने पर यहां हजारों की संख्या में भक्त मां जगदम्बा के दर्शन और उनसे आशीर्वाद पाने के लिए यहां पहुंचते हैं.

जिस दिन इस मंदिर के कपाट को बंद किया जाता है, उस दिन मंदिर के गर्भगृह में शुद्ध घी का दीपक जलाया जाता है. साथ ही मंदिर के गर्भगृह को फूलों से सजाया जाता है और चावल से बने व्यंजनों को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है.

स्थानीय लोग बताते हैं कि साल भर बाद जब दीपावली के दिन मंदिर के कपाट खोले जाते है तो मंदिर के गर्भगृह का दीया जलता हुआ मिलता है और देवी पर चढ़ाए हुए फूल और प्रसाद एकदम ताजा मिलते हैं.

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